मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐं रिंद
कोई गिरते हुए पकड़ेगा न बाजू तेरा
मैकदा है यह.....
ये विचार तो शराब की तरह भुला लेने वाले हैं।
शराबघर है। मन मूर्च्छा है, बेहोशी है।
मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐ रिंद
विचार को जब पीने चलो तो बहुत सोच—समझ कर। ओंठ
से लगाया कि खतरा है। क्योंकि एक विचार के पीछे दूसरा आ रहा है। एक श्रृंखला है।
ऐसी श्रृंखला, जिसका कोई अंत नहीं।
मैकदा है यह समझबूझ के पीना ऐ रिंद
कोई गिरते हुए पकड़ेगा न बाजू तेरा
और अगर विचारों में गिरे, तो फिर कोई पकड़ने वाला नहीं है। क्योंकि जो पकड़
सकता था, वही गिर गया। जो संभल सकता
था, वही गिर गया।
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अजीजो सादा ही रहने दो लोह—ए—तुर्बत को
हमीं नहीं तो ये नक्या और निगार क्या होगा
अब कब्र को खोद रहे हैं, नक्या कर रहे हैं, सुंदर बना रहे हैं, हीरे —जवाहरातों से जड़ रहे हैं।
हमीं नहीं तो ये नक्या और निगार क्या होगा
अजीजो सादा ही रहने दो लोह—ए—तुर्बत को
मिट्टी में खुद ही मिल गये, तो अब संगमरमर की भी मजार हो तो क्या सार है!
खुद ही न बचे, तो अब और कुछ बचने का अर्थ
भी क्या होता है!
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हिचकी का तार टूट चुका रूह अब कहां
जंजीर खुलके गिर पड़ी दीवाना छूट गया
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अहबाब के काधे से लहद में उतर आए
किस चैन से सोए हुए हम अपने घर आए
और तब मौत दुश्मन नहीं मालूम होती है।
किस चैन से सोए हुए हम अपने घर आए
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ऐसे कुछ बदल गये हम
बेमानी अब
हर मौसम
रंग बरसे
या झड़ी लगे
वासंती ज्वार ज्वर जगे
कितु नहीं सरसेंगे अब
सपने पतझार के सगे
सुमनों की हार हो गयी
बदशकल बहार हो गयी
ऐसे कुछ छाया भ्रम—तम
धुंधलाया दिनकर का क्रम
ऐसे कुछ बदल गये हम
बेमानी अब हर मौसम
मन जब
उन्मन बेहाल हो
कैसे जीवन निहाल हो
सासों का काफिला लुटा
क्या अबीर क्या गुलाल हो
टेसू के फूल जल रहे
आग में पलास ढल रहे
ऐसे कुछ आख हुई नम
दृष्टि—दृष्टि लगती पुरनम
ऐसे कुछ बदल गये हम
बेमानी अब हर मौसम
फागुनी
धमार क्या करें
गूंजता खुमार क्या करें
तार—तार अश्रु से कसा
तान बेशुमार क्या करें
मीडों में भरा क्लेश है
केवल अवरोह शेष है
ऐसे कुछ राग गये थम
मौन हुआ असमय सरगम
ऐसे कुछ बदल गये हम
बेमानी अब हर मौसम
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सच कहा था तूने जाहिद जहर—ए—कातिल है शराब
हम भी कहते थे यही जब तक बहार आयी न थी
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पूछिए मयकशों से लुक—ए—शराब
यह मजा पाकबाज क्या जानें
वे जो पाएंगे शराब वे ही जानेंगे मजा।
यह मजा पाकबाज क्या जानें
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तुझको बरबाद तो होना था बहरहाल खुमार
नाज कर नाज कि उसने तुझे बरबाद किया
इसका रोना नहीं है क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका गम है कि बहुत देर में बरबाद किया
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हमसे पहले भी मुहब्बत का यही अंजाम था
कैस भी नाशाद था फरहाद भी नाकाम था
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आखिरी जाम में थी बात क्या ऐसी साकी
हो गया पी के जो खामोश वह खामोश रहा
अब आ गये हो तो घबडाओ मत। अब यह पागलपन तुम पर
छा रहा है तो डरो मत, हिम्मत करो, छा जाने दो। इसमें बाधा मत डालना। क्योंकि बहुत
हैं जो पास आकर भाग जाते हैं। भाग जाते हैं डर के कारण। लगता है कि खिंचे जा रहे
हैं। लगता है कि जल्दी ही अपने बस में न रह जाएंगे। इसके पहले कि बस खो जाए, भाग जाते हैं। फिर स्वभावत: जो मुझसे भाग जाते, उनको मुझसे भागने के लिए कई तर्क खोजने पड़ते, कारण खोजने पड़ते, कि क्यों छोड़ आए, क्यों भाग आए। अपने को भी धोखा देने के लिए उन्हें कई
इंतजाम मानसिक करने पड़ते है—बौद्धिक—कि क्यों भाग आए। लेकिन मैं जानता हूं बड़े —से
—बड़ा भय तुम्हें पैदा होगा वह यह कि कहीं ऐसा न हो कि तुम इसमें इतने उलझ जाओ कि
फिर इसके बाहर न जा सको।
आखिरी जाम में क्या बात थी ऐसी साकी
हो गया पी के जो खामोश वह खामोश रहा
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दूर से आए थे साकी सुनके मयखाने को हम
पर तरसते ही चले अफसोस पैमाने को हम
अगर पास न आए तो ऐसा ही होगा।
दूर से आए थे साकी सुनके मयखाने को हम
बड़े दूर से खबर सुनी थी मधुशाला की और आए थे।
पर तरसते ही चले अफसोस पैमाने को हम
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खोजती भौतिक क्षितिज आंखें यहां
कब्र से ज्यादा न कीमत ताज की
प्यार के पुख्ता धरातल पर बनाये थे महल
पर बिना आधार की मीनार से ढहते रहे
कहीं घर है न कहीं द्वार जिंदगी तेरा
करें किस ठौर इंतजार जिंदगी तेरा
मौत के पास तलक हाथ खींचकर लायी
मगर मरता न एतबार जिंदगी तेरा
जिस जिंदगी में सिवाय मौत के कुछ नहीं घटता, उस पर भी भरोसा किये चले जाते हो! और जिस
समर्पण से मृत्यु के माध्यम से भी महाजीवन घटता है, वहां भी डरते हो भयभीत होते हो, संकोच करते हो!
जिंदगी है अपने कब्जे में न अपने वश में मौत
आदमी मजबूर है और किस कदर मजबूर है
न जन्म तुम्हारे हाथ में है, न मौत तुम्हारे हाथ में है। सिर्फ एक चीज
तुम्हारे हाथ में है, वह है समर्पण। जन्म हो गया,मौत होकर रहेगी। समर्पण तुम चाहो तो हो सकता है, तुम चाहो तो नहीं होगा। सिर्फ एक बात के तुम
मालिक हो, वह है संन्यास।
जिंदगी है अपने कब्जे में न अपने वश में मौत
आदमी मजबूर है और किस कदर मजबूर है
नहीं, एक स्वतंत्रता भी है। एक बात है जहां मजबूरी नहीं है। वही
स्वतंत्रता संन्यास है।
आज इतना ही।
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