अष्टावक्र: माहागीता--भाग-1 (ओशो) प्रवचन--15
यह तीसरा फरेबे—मुहब्बत है मालती,
मैं
आज फिर फरेबे—मुहब्बत में आ गया।
प्रेमी अपनी प्रेयसी से, किसी मालती से कह रहा है :
यह
तीसरा फरेबे—मुहब्बत है मालती,
यह तीसरी बार भ्रम हो रहा है।
मैं
आज फिर फरेबे—मुहब्बत में आ गया।
रुखसार
दिलशिकार हैं आंखें हैं दिलनशीं
शोलाजने—खिरद
है तेरा हुस्ने—आतशीं।
मैं
सोचता रहा, मैं बहुत सोचता रहा,
लेकिन
तेरा जमाल, नजर में समा गया।
पहले भ्रमों की भी याद है। पहले और मालतिया
धोखा दे गईं। यह तीसरा भ्रम है; दो मालतिया आ चुकीं, जा चुकीं।
मैं
सोचता रहा, मैं बहुत सोचता रहा,
लेकिन
तेरा जमाल नजर में समा गया।
गो
जानता हूं यह भी तमन्ना का है फरेब,
गो
जानता हूं यह भी तमन्ना का है फरेब,
गो
मानता हूं राहे—मुहब्बत है पुरनसेब,
यह सब झूठ, यह सब सपना, यह सब फरेब—यह सब जानता हूं।
लेकिन
बगैर इसके भी चारा नहीं मेरा,
इसके बिना भी चलता नहीं।
लेकिन
बगैर इसके भी चारा नहीं मेरा,
कछ
भी बजुज फरेब सहारा नहीं मेरा।
और इन भ्रमों के सिवाए कोई सहारा ही नहीं मालूम
होता, सपनों के सिवाए कोई जिंदगी
ही नहीं मालूम होती।
तुझ—सी
परी जमाल हसीनाओं के बगैर,
मैं
हूं सनमपरस्त, गुजारा नहीं मेरा।
मैं
आज फिर फरेबे—मुहब्बत में आ गया
यह
तीसरा फरेबे—मुहब्बत है मालती।
तीसरा क्या, तीसवां, तीन सौवां, तीन हजारवा—मगर फरेब जारी रहता है।
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मंजर रहीने—यास है, नाजिर उदास है,
मंजिल
है कितनी मुसाफिर उदास है।
परवाज
में कब आएगी रिफअत खयाल की
नारस
हैं बालो—पर, ताइर उदास है।
तख्तीके
शाहकार का इम्कां नहीं अभी,
अशआर
बेकरार है, शायर उदास है।
मुद्दत
से यात्री को तरसती है मूर्ति,
सुनसान
कोहसार का मंदिर उदास है।
एहसासो—फिक्र
दोनों का हासिल है इस्तिराद
शायर
है महूवे —यास मुवक्सिर उदास है।
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