Sunday, 31 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता--(भाग--5) प्रवचन--13

हंसकर दिन काटे सुख के
हंस—खेल काट फिर दुख के दिन भी
मधु का स्वाद लिया है तो
विष का भी स्वाद बताना होगा
खेला है फूलों से वह
शूलों को भी अपनाना होगा
कलियों के रेशमी कपोलों को
तूने चूमा है तो फिर
अंगारों को भी अधरों पर
धर कर रे मुसकाना होगा
जीवन का पथ ही कुछ ऐसा
जिस पर धूप—छांव संग रहती
सुख के मधुर क्षणों के संग ही
बढ़ता है चिर दुख का क्षण भी
हंस कर दिन काटे सुख के
हंस—खेल काट फिर दुख के दिन भी
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क्या-क्या हुआ है हमसे जुनू में न पूछिए
उलझे कभी जमीं से कभी आसमा से हम
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जिसे हम खोजने लगते हैं वही मिलता है।
जिसे हम खोजने लगते हैं वही मिल सकता है।

 आज इतना ही।

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