मेरी सीमायें बतला दो
यह अनंत नीला नभमंडल
देता मूक निमंत्रण प्रतिपल
मेरे चिर चंचल पंखों को
इनकी परिमिति परिधि बता दो
मेरी सीमायें बतला दो
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सोचते हो, कोई तुम्हें इस हरी घास पर अकेला बैठा हुए देखे?
सारी दुनिया से तुमको कुछ अलग लेखे!
उठो इस एकांत से दामन छुडाओ, इस महज शांत से
चलो उतर कर नीचे की सड़क पर
जहां जीवन सिमट कर बह रहा है साहस की दिशा में
जहां अतर्कित प्रेम कठोरताओं पर तरल है
सबके बीच में जीवन सरल है
उठो इस एकांत से दामन छुडाओ, इस महज शांत से
जो न शक्ति देता है, न श्रद्धा, सिर्फ उदास बनाता है।
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सबके बीच में जीवन सरल है
उठो इस एकांत से दामन छुडाओ, इस महज शांत से,
जो न शक्ति देता है, न श्रद्धा, सिर्फ उदास बनाता है,
न, तटस्थ होने लायक कमजोर तुम अभी नहीं हुए
लहरें गिनने के दिन भी आ सकते हैं
मगर हाथ जब तक पतवार उठा सकते हैं
कंठ—स्वर जब तक हैया—हो गा सकते हैं
तब तक ऐसी अनंत तटस्थता शर्मनाक है
तटस्थता की तुम्हारे मन पर कैसी बुरी धाक है
उठो सिमट कर बहते हुए जीवन में उतरो
घाट से हाट तक, हाट से घाट तक आओ—जाओ
तूफान के बीच में गाओ
मत बैठो ऐसे चुपचाप तट पर
परमात्मा हैया—हो गा रहा है
तुम्हें उसकी आवाज सुनाई नहीं पड़ती!
माना कि तुम बहरे हो मगर इतने तो नहीं,
और अंधे हो मगर इतने तो नहीं,
परमात्मा सब तरफ हैया—हो गा रहा है
पतवार चला रहा है।
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जान सकता हूं अगर साहस करूं
श्रृंखला वह जो पवन में वहि में तूफान में है
और चल उत्ताल सागर में
जान सकता हूं अगर साहस करूं
चेतना का रूप वह
जिसमें वृक्ष से झर कर
मही पर पत्ते गिरते हैं
सातवें के बाद और पहले के रंग के पहले
अंधेरा ही अंधेरा है
शब्द के उपरात केवल स्तब्धता है
गज उसकी जतुक सुनते हैं
कि सुनते मीन सागर के हृदय के
इंद्रियों की स्पर्श रेखा के पार
घूमते हैं चक्र अणुओं तारकों परमाणुओं के
जिंदगी जिनसे बुनी जाती
जिन अगम गहराइयों से भागते हैं
छोड़ कर उनको कहीं आश्रय नहीं मिलता।
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यह एक रश्मि!
पर छिपा हुआ है इसमें ही
ऊषा बाला का अरुण रूप
दिन की सारी आभा अनूप
जिसकी छाया में सजता है
जग राग—रंग का नवल साज
यह एक रश्मि!
यह एक बिंदु!
पर छिपा हुआ है इसमें ही
जल श्यामल मेघों का वितान
विद्युत बाला का बज गान
जिसको सुन कर फैलाता है
जग पर पावस निज सरस राज
यह एक बिंदु!
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यह भूमि भली
यह बहुत जली
यह और न अब
जल को तरसे घन बरसे
घन बरसे
भीग धरा गमके
घन बरसे
पर्वत भीगे
घर छत भीगे
भीगे बन
खेत कुटी झरसे
घन बरसे
घन बरसे
भीग धरा गमके
घन बरसे!
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जो भेंट चला था मैं ले कर
हाथों में, कबकी कुम्हलाई
नैनों ने सींचा उसे बहुत
लेकिन वह फिर भी मुरझाई
तब से पथ पुष्पों से निर्मित
कितनी मालायें सूख चुकीं
जिस पग से मैं आया उस पर
पाओगे बिखरी बिखराई
कुम्हला न सकी मुरझा न सकी
लेकिन अर्चन की अभिलाषा!
मैं चुनता हूं हर फूल
अटल विश्वास लिए
ये पूज न पायें प्रेय चरण
लेकिन दुनिया इनकी श्रद्धा को
एक समय पूजेगी ही!
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