देख मत तू यह कि तेरे
कौन दायें कौन बायें
तू चला चल बस, कि सब
पर प्यार की करता हवाएं
दूसरा कोई नहीं, विश्राम
है दुश्मन डगर पर
इसलिए जो गालियां भी दे
उसे तू दे दुआएं
बोल कड़वे भी उठा ले
गीत मैले भी घुला ले
क्योंकि बगिया के लिए
गुंजार सबका है बराबर
फूल पर हंसकर अटक तो
शूल को रोकर झटक मत
ओ पथिक! तुझ पर यहां
अधिकार सबका है बराबर
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तुम्हारे रूप के अनुरूप संज्ञाएं चयन कर लूं
तुम्हारी ज्योति—किरणें देखने लायक नयन कर लूं
अभी अच्छी तरह आंखर अढ़ाई पढ़ नहीं पाया
प्रेम की व्याकरण का और गहरा अध्ययन कर लूं
निकल पाया नहीं बाहर अहम् के इस अहाते से
जरा ये बांह धरती और ये आंखें गगन कर लूं
तुम्हारे रूप के अनुरूप संज्ञाएं चयन कर लूं
तुम्हारी ज्योति —किरणें देखने लायक नयन कर लूं
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हवा हू
हवा में वसती हवा हूं
वही,
ही वही जो
धरा का वसती सुसंगीत मीठा गुजाती फिरी हूं
वही,
हा वही जो
सभी प्राणियों को
पिला प्रेम— आसव जिलाए हुए हूं? कसम रूप की है
कसम प्रेम की है
कसम इस हृदय की
सुनो बात मेरी,
बड़ी बावली हूं
अनोखी हवा हूं
बड़ी मस्तमौला, नहीं कुछ फिकर है बड़ी ही निडर हूं
जिधर चाहती हूं
उधर घूमती हूं
मुसाफिर अजब हूं
न घर—बार मेरा
न उद्देश्य मेरा
न इच्छा किसी की
न आशा किसी की
प्रेमी
न दुश्मन
जिधर चाहती हूं उधर घूमती हूं? हवा हूं
हवा में वसती हवा हूं
जहां से चली मैं
जहां को गयी मैं
शहर, गांव, बस्ती
नदी, रेत, निर्जन
हरे खेत, पोखर
झुलाती चली मैं,
झुमाती चली मैं,
हंसी जोर से मैं
हंसी सब दिशाएं
हंसे लहलहाते
हरे खेत सारे
हंसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी
वसती हवा में
हंसी सृष्टि सारी
हवा हूं
हवा में
वसती हवा हूं।
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