Friday, 29 May 2015

अष्‍टावक्र महागीता--(भाग-2) प्रवचन--7


तब बुला जाता मुझे उस पार जो
दूर के संगीत—सा वह कौन है?
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प्राणों के अंतिम पाहुन!

चांदनी धुला अंजन—सा
विद्युत मुस्कान बिछाता
सुरभित समीर पंखों से
उड़ जो नभ में घिर आता
वह वारिद तुम आना बन!

ज्यों श्रौत पथिक पर रजनी
छाया—सी आ मुस्काती
भारी पलकों में धीरे
निद्रा का मधु खुलकाती
त्यों करना तुमबेसुध जीवन!

अज्ञात लोक से छिप—छिप
ज्यों उतर रश्मिया आतीं
मधु पीकर प्यास बुझाने
फूलों के उर खुलवातीं
छिप आना तुम छाया तन!
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दूर दिल से सब कदूरत हो गई है
जीस्त कितनी खूबसूरत हो गई है!
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इस कदर सतही है दुनिया की मसर्रत
दिल को फिर गम की जरूरत हो गई है।
यूं बसी है मुझमें तेरी याद साजन
मेरे मन—मदिर की मूरत हो गई है।
तेरी याद ने दिल को चमका दिया,
तेरे प्यार से यह सभा सज गई है।
जबाँ पर न आया कोई और नाम,
तेरा नाम ही रात—दिन भज गई है।
मेरे दिल में शहनाई—सी बज गई है।
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यह एक शब की तडूफ हैसहर तो होने दो
बहिश्त सर पे लिए रोजगार गुजरेगा।
फिजा के दिल से परअपशा है आरजू —ए—गुबार
जरूर इधर से कोई शहसवार गुजरेगा।
'नसीमजागोकमर को बांधो
उठाओ बिस्तर कि रात कम है।
रात तो गुजर ही जाएगी। तैयारी करो!
'नसीमजागोकमर को बांधो
उठाओ बिस्तर कि रात कम है।
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एकटि नमस्कारे प्रभु,
एकटि नमस्कारे!
सकल देह लूटिए पडूक
तोमार ए संसारे
घन श्रावण—मेघेर मतो
रसेर भारे नम नत
एकटि नमस्कारे प्रभु,
एकटि नमस्कारे!
समस्त मन पडिया थाक,
तव भवन—द्वारे
नाना सरेर आकल धारा
मिलिए दिए आत्महारा
एकटि नमस्कारे प्रभु,
एकटि नमस्कारे!
समस्त गान समाप्त होक,
नीरव पारावारे
हंस येमन मानस—यात्री
तेमन सारा दिवस—रात्रि
एकटि नमस्कारे प्रभुएकटि नमस्कारे!
समस्त प्राण स्टे चलूक महामरण—पारे!
स्वामी आनंद सागरेर प्रणाम!

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