उमड़कर आ गये बादल
गगन में छा गये बादल!
गगन का उर उमड़कर ज्यों
धरा के पास आ पहुंचा
पुलकती दूब पर कुछ
फूल—से बिखरा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
उठी सौंधी भभक—सी एक
मिट्टी के कपोलों से
धरा के रूप—यौवन की
शिखा सुलगा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
गगन में छा गये बादल!
गगन का उर उमड़कर ज्यों
धरा के पास आ पहुंचा
पुलकती दूब पर कुछ
फूल—से बिखरा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
उठी सौंधी भभक—सी एक
मिट्टी के कपोलों से
धरा के रूप—यौवन की
शिखा सुलगा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
बुझेगी बिंदुओं से क्या
तृषा जो सिंधु जैसी है!
पपीहे की तृषा को और
भी भड्का गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
तृषा जो सिंधु जैसी है!
पपीहे की तृषा को और
भी भड्का गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
उधर कुछ मेह बरसा
नेह आंखों से इधर बरसा
हरे अंकुर तुम्हारी याद
के उकसा गये बादल
उमड़कर आ गये बादल!
व्यथा की भाप में सुख की
क्षणिक बिजली चमकती है!
मुझे भीगे दृगों से भेद
यह समझा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
नेह आंखों से इधर बरसा
हरे अंकुर तुम्हारी याद
के उकसा गये बादल
उमड़कर आ गये बादल!
व्यथा की भाप में सुख की
क्षणिक बिजली चमकती है!
मुझे भीगे दृगों से भेद
यह समझा गये बादल!
उमड़कर आ गये बादल!
मरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--18
फराहम करके मेरे दिल के अजजाए—परेशां को
मेरी बिखरी हुई हस्ती को सूरत बख्श दी तूने
कहां बाकी रहा था जिंदगी का हौसला मुझमें
मुझे इक बार फिर जीने की हिम्मत बख्श दी तूने
वो गम हो, मसर्रत हो, वो मरना हो कि जीना हो
मुझे हर हाल में अपनी जरूरत बख्श दी तूने
मेरी बिखरी हुई हस्ती को सूरत बख्श दी तूने
कहां बाकी रहा था जिंदगी का हौसला मुझमें
मुझे इक बार फिर जीने की हिम्मत बख्श दी तूने
वो गम हो, मसर्रत हो, वो मरना हो कि जीना हो
मुझे हर हाल में अपनी जरूरत बख्श दी तूने
यही गुरु करता है। तुम्हारे टुकड़ो को इकट्ठा कर देता है।
फराहम करके मेरे दिल के अजजाए—परेशां को।
वह जो टुकड़े—टुकड़े दिल था, वह जो परेशांनियोंमें बंटा हुआ, चिंताओं में बंटा हुआ दिल था, गुरु उसेइकट्ठाकरदेताहै।
फराहम करके मेरे दिल के अजजाए—परेशां को
मेरी बिखरी हुई हस्ती को सूरत बख्श दी तूने।
वह जो टूट—फूट गयी थी हस्ती, बिखर गयी थी, उसे फिर तूने रंग दे दिया, रूप दे दिया।
कहां बाकी रहा था जिंदगी का हौसला मुझमें
मुझे इक बार फिर जीने की हिम्मत बख्श दी तूने वो गम हो, मसर्रत हो, वो मरना हो कि जीना हो
मुझे हर हाल में अपनी जरूरत बख्श दी तूने।
गुरु सिर्फ तुम्हें जगा देता है तुम्हारी संभावनाओं के प्रति। गुरु जगा देता है तुम्हें सिर्फ तुम्हारी अनंतताओं के प्रति। गुरु तुम्हे सचेत कर देता है कि तुम उतने ही नहीं हो जितना तुमने अपने को समझा है। तुम सागर हो। तुम बूंद बने बैठे हो! बूंद होना तुम्हारी नियति नही, सागर होना तुम्हारी नियति है। आंनदित होओ, नाचो, मग्न होओ। यह जादू जो तुम पर छा रहा है और छाने दो।
फराहम करके मेरे दिल के अजजाए—परेशां को।
वह जो टुकड़े—टुकड़े दिल था, वह जो परेशांनियोंमें बंटा हुआ, चिंताओं में बंटा हुआ दिल था, गुरु उसेइकट्ठाकरदेताहै।
फराहम करके मेरे दिल के अजजाए—परेशां को
मेरी बिखरी हुई हस्ती को सूरत बख्श दी तूने।
वह जो टूट—फूट गयी थी हस्ती, बिखर गयी थी, उसे फिर तूने रंग दे दिया, रूप दे दिया।
कहां बाकी रहा था जिंदगी का हौसला मुझमें
मुझे इक बार फिर जीने की हिम्मत बख्श दी तूने वो गम हो, मसर्रत हो, वो मरना हो कि जीना हो
मुझे हर हाल में अपनी जरूरत बख्श दी तूने।
गुरु सिर्फ तुम्हें जगा देता है तुम्हारी संभावनाओं के प्रति। गुरु जगा देता है तुम्हें सिर्फ तुम्हारी अनंतताओं के प्रति। गुरु तुम्हे सचेत कर देता है कि तुम उतने ही नहीं हो जितना तुमने अपने को समझा है। तुम सागर हो। तुम बूंद बने बैठे हो! बूंद होना तुम्हारी नियति नही, सागर होना तुम्हारी नियति है। आंनदित होओ, नाचो, मग्न होओ। यह जादू जो तुम पर छा रहा है और छाने दो।
मरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--18
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मरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--18
बढ़के काबे से भी हंसी है कौन?
झुक रहा हूं सलाम करने को
झुक रहा हूं सलाम करने को
अब जाके आरजू का मुकम्मल हुआ है नक्श
सब मानने लगे कि मैं दीवाना हो गया।
सब मानने लगे कि मैं दीवाना हो गया।
क्या बचाते किसी सफीने को
अपनी किश्ती को खुद डुबो बैठे
अपनी किश्ती को खुद डुबो बैठे
जब खामोशी की मदद लेनी पड़ी
गुफ्तगू में वह मुकाम आ ही गया
गुफ्तगू में वह मुकाम आ ही गया
फिर कोई कैद न तेरे लिए बाकी रहती
तू अगरचे दाम से खुद अपनी रिहा हो जाता
अपनी अजमत का नहीं खुद तुझे गाफिल एहसास
बंदगी अपनी जो करता तो खुदा हो जाता
तू अगरचे दाम से खुद अपनी रिहा हो जाता
अपनी अजमत का नहीं खुद तुझे गाफिल एहसास
बंदगी अपनी जो करता तो खुदा हो जाता
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तारकों को रात चाहे भूल जाये,
रात को लेकिन न तारे भूलते हैं
दे भुला सरिता किनारों को भले ही,
पर न सरिता को किनारे भूलते हैं
आंसुओ से तर बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं—
हास पर संदेह कर लेना भले ही,
आंसुओ की धार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
रात को लेकिन न तारे भूलते हैं
दे भुला सरिता किनारों को भले ही,
पर न सरिता को किनारे भूलते हैं
आंसुओ से तर बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं—
हास पर संदेह कर लेना भले ही,
आंसुओ की धार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
लोग कहते हैं कि भौंरा गुनगुनाता,
किंतु मैं कहता कि वह है आह भरता
क्या पता रंगीन कलियों को कि उन पर
एक जीवन में भ्रमर सौ बार मरता!
तीर—सी चुभती बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुम से कर रहा हूं—
जीत पर संदेह कर लेना भले ही
पर हृदय की हार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
किंतु मैं कहता कि वह है आह भरता
क्या पता रंगीन कलियों को कि उन पर
एक जीवन में भ्रमर सौ बार मरता!
तीर—सी चुभती बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुम से कर रहा हूं—
जीत पर संदेह कर लेना भले ही
पर हृदय की हार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
अश्रु मेरे जा रहे मुझको गलाये
आग मेरी जा रही मुझको जलाये
रह न जाये द्वैत तुममें और मुझमें—
जा रहा हूं इसलिए हस्ती मिटाये!
सांझ—सी धुंधली बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं—
जिंदगी पर मत भले करना भरोसा,
आग मेरी जा रही मुझको जलाये
रह न जाये द्वैत तुममें और मुझमें—
जा रहा हूं इसलिए हस्ती मिटाये!
सांझ—सी धुंधली बिछुड़ने की घड़ी में
एक ही अनुरोध तुमसे कर रहा हूं—
जिंदगी पर मत भले करना भरोसा,
पर मरण—त्यौहार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
प्राण! मेरे प्यार पर विश्वास करना!
मरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--18
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