Saturday, 30 May 2015

अष्‍टावक्र महागीता--(भाग--4) प्रवचन--15

प्रभु—मंदिर यह देह री!
क्षिति की क्षमता जल की समता
पावक दीपक जाग्रत ज्योतित
निशि—दिन प्रभु का नेह री!
प्रभु—मंदिर यह देह री!
गगन असीमित पवन अलक्षित
प्रभु कर उनसे पल—पल रक्षित
यह पंचमहला गेह री।
प्रभु—मंदिर यह देह री।!
अतिथि पधारोभाग्य सवारो
क्षण भर को कंचन छवि पाये
चरण बिछी यह खेह री!
प्रभु —मंदिर यह देह री!
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तुम गा दो,
मेरा गान अमर हो जाये।
मेरे वर्ण—वर्ण विश्रृंखल
चरण—चरण भरमाये
गूंज—गूंज कर मिटने वाले
मैंने गीत बनाये
कूक हो गई स्प गगन की
कोकिल के कंठों पर
तुम गा दो,
मेरा गान अमर हो जाये।
दुख से जीवन बीता फिर भी
शेष अभी कुछ रहता
जीवन की अंतिम घड़ियों में भी
तुमसे यह कहता
सुख की एक सांस पर होता
है अमरत्व निछावर
तुम छू दो,
मेरा प्राण अमर हो जाये।
तुम गा दो,
मेरा गान अमर दो जाये।
तुम रखो बांसुरी प्रभु के चरणों में। तुम रख दो वीणा। तुम अपना कंठ भी उसे दे दो।
कूक हो गई स्प गगन की
कोकिल के कंठों पर
तुम गा दो,
मेरा गान अमर हो जाये।
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 पिया खोलो किवाड़
पिया खोलो किवाड़!
कोयल की गंजी पुकारें
बगिया में मरमर
दुनिया में जगहर
उतरी किरण की कतारें
पिया खोलो किवाड़
पिया खोलो किवाड़!
कोयल की गंजी पुकारें
कलियों में गुनगुन
गलियों में रुन—झुन
अंबर से गाती बहारें
पतझर को भूली
हर डाली फूली
बीती को हम भी बिसारें
गूंगी थीं घड़ियां
गीतो की कड़ियां
वीणा को फिर झनकारें
माना कि दुख है
विधना विमुख है
आओ उसे ललकारे
पिया खोलो किवाड़
पिया खोलो किवाड़!
कोयल की गंजी पुकारें।
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पंथ जीवन काचुनौती दे रहा है हर कदम पर
आखिरी मंजिल नहीं होती कहीं भी दृष्टिगोचर
धूल से लदस्वेद से सिंचहो गई है देह भारी
कौन —सा विश्वास मुझको खींचता जाता निरंतर
पंथ क्यापद की थकन क्यास्वेद—क्या क्या?
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
एक भी संदेश आशा का नहीं देते सितारे
प्रकृति ने मंगल—शकुन पथ में नहीं मेरे संवारे
विश्व का उत्साहवर्धक शब्द भी मैंने सुना कब
किंतु बढ़ता जा रहा हूं लक्ष्य पर किसके सहारे
विश्व की अवहेलना क्याअपशकुन क्या?
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
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कोकिला अपनी व्यथा जिससे जताये
सुन पपीहा पीर अपनी भूल जाये
वह करुण उदगार तुमको दे सकूंगा
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा
प्राप्त मणि—कंचन नहीं मैंने किया है
ध्यान तुमने कब वहा जाने दिया है
आंसुओ का हार तुमको दे सकूंगा
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा
फूल ने खिल मौन माली को दिया जो
बीन ने स्वरकार को अर्पित किया जो
मैं वही उपहार तुमको दे सकूंगा
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा
आ उजेली रात कितनी बार भागी
सो उजेली रात कितनी बार जागी
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई
ओ अंधेरे —पाख क्या मुझको डराता
अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता
प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई
हास में मेरे नहाई यह जुन्हाई
प्राण! केवल प्यार तुमको दे सकूंगा
तुम प्रेम ले आयेसब ले आये! तुम शून्य ले आये तो समर्पण ले आयेसमाधि ले आये। कुछ और चाहिए नहीं। इससे और बड़ी कोई भेंट हो नहीं सकती है।
यही तुम्हें सिखा रहा हूं कि किस भाति प्रेम बन जाओकिस भांति शून्य बन जाओ। तुम शून्य बन जाओ तो परमात्मा तुम्हारे भीतर उतर आये।
धन्य हैं वे जो मिट जाते हैंक्योंकि प्रभु को पाने के वे ही अधिकारी हो जाते हैं। अभागे हैं वे जो नहीं मिट पाते,क्योंकि वे भटकेंगे और प्रभु को कभी पा न सकेंगे। मिटो—पाना हो तो।
वर्षा होती है पहाड़ों परपहाड़ खाली रह जाते हैंक्योंकि पहले से ही भरे हैं। झीलें भर जाती हैंक्योंकि खाली हैं।
तुम अगर खाली हाथ ले कर आ गये हो तो तुम भरे हाथ ले कर लौटोगे। भरे हाथ लाने की कोई जरूरत नहीं है। भरे हाथ आने की कोई जरूरत नहीं है।
तो घबड़ाओ मत। शून्य ले आयेसब ले आये। प्रेम ले आयेसब ले आये।

हरि ओंम तत्सत्!

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