Sunday, 31 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता (भाग--5) प्रवचन--9

मैं सजदे में नहीं थाआपको धोखा हुआ होगा
अब कोई दुख और पीड़ा में झुक जाए और तुम समझो कि नमाज पढ़ रहा हैकि पूजा कर रहा है।
यह सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं थाआपको धोखा हुआ होगा
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तुमकी निहारता हूं सुबह से ऋतंभरा
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा
या धूप में अठखेलियां हर रोज करती है
एक छाया सीढ़ियां चढ़ती—उतरती है
मैं तुम्हें छूकर जरा—सा छेड़ देता हूं
और गीली पाँखुरी से ओस झरती है
तुम कहीं पर झील होमैं एक नौका हूं
इस तरह की कल्पना मन में उभरती है
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