Friday, 29 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता--(भाग--3) प्रवचन--15

शब्द तुमने रचे
जैसे मेंहदी रची
जैसे बैंदी रखी
शब्द तुमने रचे
प्रेम अक्षर थे ये दो अनर्थ के
अर्थ तुमने दिया
मैंयह जो ध्वनि थी
अंध बर्बर गुफाओं की
अपने को भर कर
उसे नूतन अस्तित्व दिया
बाहों के घेरे
ज्यों मंडप के फेरे
      ममता के स्वर
जैसे वेदी के मंत्र
गुंजरित मुंह अंधेरे
शब्द तुमने रचे
जैसे प्रलयंकर लहरों पर
अक्षयवट का एक पत्ता बचे
शब्द तुमने रचे।
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