Sunday, 31 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता (भाग--5) प्रवचन--12

एक तहजीब है दोस्ती की
एक मियार है दुश्मनीका
दोस्तों ने मुरब्बत न सीखी
दुश्मनों को अदावत तो आए —
एक स्तर है दोस्ती काऔर एक स्तर होता है दुश्मनी का भी। तुम तो दोस्ती भी करते हो तो भी कुछ स्तर नहीं होता। सदगुरु दुश्मनी भी करते हैं तो भी एक स्तर होता है।
एक तहजीब है दोस्ती की
एक मियार है दुश्मनी का
एक दुश्मनी का भी तल है। एक दुश्मनी की भी खूबी हैरहस्य है।
एक तहजीब है दोस्ती की
एक संस्कृति है दोस्ती कीएक संस्कृति है दुश्मनी की भी।
एक मियार है दुश्मनी का
दोस्तों ने मुरब्बत न सीखी
दुश्मनों को अदावत तो आए
तुम तो गलत दोस्त चुन लेते होसदगुरु ठीक दुश्मन भी चुनते हैं। लड़ने का बड़ा मजा है। लेकिन खयाल रखना,अदावत की भी एक तहजीब हैएक संस्कृति है। अदावत सिर्फ अदावत ही नहीं है।
=====================================================
इल्मो—तहजीब तारीखो—मंतब
लोग सोचेंगे इन मसलों पर
जिंदगी के मुसक्कल कदे में
कोई अहदे—फरागत तो आए
ज्ञान और सभ्यता. इल्म—औ—तहजीब तारीख—औ—मंतब : इतिहास और दर्शनलोग सोचेंगे इन मसलों पर। लोग सोचते रहे हैंसोचते रहेंगे।
जिंदगी के मुसक्कल कदे में
कोई अहदे—फरागत तो आए
यह जो जिंदगी का बंधा हुआ घर हैयह जो कारागृह जैसी हो गई जिंदगी...।
जिंदगी के मुसक्कल कदे में
कोई अहदे—फरागत तो आए
लेकिन कुछ अवकाश मिले इस श्रम से भरी जिंदगी में। कोई खाली रिक्त स्थान आएजहां थोड़ी देर को हम जिंदगी के ऊपर उठ सकेंजहां थोड़ी देर हम जिंदगी के पार देख सकें। कोई झरोखा खुले।
==================================
कांप उठें कसरेशाही के गुंबद
थरथराए जमीं मोबदों की
कूचागर्दों की वहशत तो जागे
गमजदों को बगावत तो आए
कांप उठें कसरेशाही के गुंबद
राजमहलों की मीनारें कांप जाएं। मंदिरों—मस्जिदों की मीनारें कांप जाएं।
थरथराए जमीं मोबदों की
और मंदिरों की जमीनमस्जिदों की जमीन थरथराए।
कूचागर्दों की वहशत तो जागे
और गलियों में जो आवारा घूम रहे हैंजीवन की गलियों में जो आवारा भटक दे हैं—
कूचागर्दों की वहशत तो जागे
उनकी नींद तो टूटे किसी तरह।
गमजदों को बगावत तो आए
और ये दुखी लोग किसी तरह विद्रोही बनें। इसलिए आलोचना हैनिंदा जरा '' प्र नहीं।
=============================================
दिल उसको पहले ही नाजो—अदा से दे बैठे
हमें दिमाग कहां हुस्न के तकाजे का?
===============================================
तुम्हें पहले पहल देखा तो दिल कुछ इस तरह धड्का
कोई भूली हुई सूरत मुझे याद आ गई जैसे
=============================
रात भर दीदाए—नमनाक में लहराते रहे
सांस की तरह से आप आते रहे जाते रहे
=============================
रहरवे—राहे—मुहब्बत रह न जाना राह में
लज्जते—सहरानवर्दी दूरि—ए—मजिल में है
हे प्रेममार्ग के पथिक! राह में रह मत जाना।
लज्जते—सहरानवर्दी दूरि—ए—मजिल में है
=======================
अब इत्तदाए—इश्क का आलम कहां हफीज
कश्ती मेरी डुबो कर वह साहिल उतर गया
==========================
कोई मोती गूंथ सुहागिन तू अपने गलहार में
मगर विदेशी रूप न बंधने वाला है सिंगार में
एक हवा का झोंकाजीवन दो क्षण का मेहमान है
अरे ठहरना कहांयहां गिरवी हरेक मकान है
व्यर्थ सुनहली धूप और यह व्यर्थ रुपहली चांदनी
हर प्रकाश के साथ किसी अंधियारे की पहचान है
चमकीली चोली चुनरी पर मत इतरा यूं सांवरी
सबको चादर यहां एक सी मिलती चलती बार में
सुनते रहो।
चमकीली चोली चुनरी पर मत इतरा यूं सांवरी
सबको चादर यहां एक सी मिलती चलती बार में
=============================
बाग है यह हर तरह की वायु का इसमें गमन है
एक मलयज की वधू तो एक आधी की बहन है
यह नहीं मुमकिन कि मधुऋतु देख तू पतझर न देखे
कीमती कितनी ही चादर होपड़ी सब पर शिकन है
दो बरन के सूत की माला प्रकृति है किंतु फिर भी
एक कोना है जहां श्रृंगार सबका है बराबर
      फूल पर हंस कर अटक तो शल को रोकर झटक मत
ओं पथिकतुझ पर यहां अधिकार सबका है बराबर
कोस मत उस रात को जो पी गई घर का सवेरा
रूठ मत उस स्वप्न से जो हो सका जग में न तेरा
खीझ मत उस वक्त परदे दोष मत उन बिजलियों को
जो गिरीं तब—तब कि जब—जब तू चला करने बसेरा
सृष्टि है शतरंज औ हैं हम सभी मोहरे यहां पर
शाह हो पैदल कि शह पर वार सबका है बराबर
फूल पर हंस कर अटक तो शूल को रोकर झटक मत
ओ पथिक! तुझ पर यहां अधिकार सबका है बराबर
====================================



No comments:

Post a Comment