Sunday, 31 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता--(भाग--6) प्रवचन--13

चाहे बरसे जेठ अंगारे
      या पतझर हर फूल उतारे
      अगर हवा में प्यार घुला है
      हर मौसम सुख का मौसम है

जिसके पास शब्द हैं जितने
उतना उससे अर्थ दूर है
पट घूंघट का नहींरूप तो
आत्मा का जलता कपूर है

दुनिया क्या है एक वहम है
शबनम में मोती होने का
और जिंदगानी है जैसे
पीतल पर पानी सोने का

किंतु प्यार यदि साथ सफर में
तो सचमुच इस मृत्यु—नगर में
शाम सुबह की एक कसम है
मरण मद्य का नया जनम है

चाहे बरसे जेठ अंगारे
या पतझर हर फूल उतारे
अगर हवा में प्यार घुला है
हर मौसम सुख का मौसम है
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नाशाद किसे कहते हैं और शाद किसे
मजबूर किसे कहते हैं आजाद किसे
एक दिल है कि सौ भेष बदलता है 'फिराक'
बरबाद किसे कहते हैं आबाद किसे
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हिर्स और हवसे—हयाते—फानी न गयी
इस दिल से हवाए—कामरानी न गयी
है संगे—मजार पर तिरा नाम रवी
मरकर भी उमीद—ए—जिदगानी न गयी
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रक्खा है किसी की आस रहने ही में क्या
रक्खा है किसी के पास रहने ही में क्या
आदत—सी पड़ गयी है शायद वरना
रक्खा है 'फिराकउदास रहने ही में क्या
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सोचता हूं जब कभी संसार यह आया कहां से
चकित मेरी बुद्धि कुछ भी न कह पाती
और तब कहता हृदय अनुमान तो होता यही है
घट अगर है तो कहीं घटकार भी होगा
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अफसोस हमारी उम्र रोते गुजरी
नित दिल से गुबारे—गम ही धोते गुजरी
देखा न कभी ख्वाब में अपना यूसुफ
हर चंद तमाम उम्र सोते गुजरी
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टेर रही प्रिया—
तुम कहां?
किसकी यह छाह
और किसके ये गीत रे
सिहर रहा जिया—
तुम कहां?
किसके ये कांटे हैं
किसके ये पात रे
बिहर रहा हिया—
तुम कहा गुम
बिरम गये पिया
तुम कहां?
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तेरे जमाल की तस्वीर खींच दूं लेकिन
जबां में आंख नहीं आंख मे जबाँ नहीं
होता है राजे—इश्क,— ओ—मुहब्बत इन्हीं से फाश
आंखें जबां नहीं हैं मगर बेजबा नहीं
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गुलशन में फिरूं कि सैर सहरा देखूं
या मादनो —कोहो —दस्तो —दरिया देखूं
हर जी तेरी कुदरत के हैं लाखों जल्ये
हेरां हूं कि दो आंखों से क्या—क्या देखूं
जिस दिन थोड़ा अनुभव होगा उस दिन तुम पाओगेहर तरफ उसी के हजारों —हजार उत्सव हो हैं
हर जां तेरी कुदरत के हैं लाखों जल्वे
हैरां हूं कि दो आंखों से क्या—क्या देखूं
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धर लिये प्यासे अधर पर आह के सागर
प्यास पूरी इस मरुस्थल की नहीं होती
पी लिया इस उम्र ने वह प्रेम—गंगाजल
अब इसे इच्छा किसी जल कीनहीं होती
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प्यास पूरी इस मरुस्थल की नहीं होती
पी लिया इस उम्र ने वह प्रेम—गंगाजल
अब इसे इच्छा किसी जल की नहीं होती
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प्राण का यह दीप जलने के लिए है
प्यार से अंतर पिघलने के लिए है
बन अकिंचन पांवड़े पलकें बिछाए
कान अपना ध्यान आहट पर लगाए
पुलकमय हर अंग होने को समर्पण
आप मनभावन करो पावन वचन—मन
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यह किसका तबस्तुम है फिजी में साकी
यह किसकी जवानी है घटा में साकी
यह कौन बजा रहा है शीरीं बरबत
भीगी हुई बारिश की हवा में साकी
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मेरे साकी शराबे —साफी देना
हो जिससे गुनाह की तलाफी देना
उतरे न खुमार जिंदगी भर जिसका
ऐसी देना और इतनी काफी देना
मांगोप्रेम की शराब।
उतरे न खुमार जिंदगी भर जिसका
ऐसा नशा मांगो जो फिर उतरे न। चढ़े तो चढ़ेउतरे न।
ऐसी देना और इतनी काफी देना
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यारो खता मुआफ मेरी मैं नशे में हूं
सागर में मय है मय में नशा मैं नशे में हूं
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आशंका है तुम्हें
जिस दुर्घटना की
घट चुकी है वह
पहले ही भीतर
केवल आएगा तैरकर
गत आगत की सतह पर
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नीरव की अर्चा रव से
जीवन की चर्चा शव से
जैसे कोई शोरगुल से आशा कर रहा है शांति की। ऐसे कोई शव से बातें कर रहा है जीवन की। नीरव की अर्चा रव से
जीवन की चर्चा शव से
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नर! बन नारायण
स्वर! बन रामायण
और तब तुम अचानक पाओगेतुम्हारे भीतर जो तुमने नर की तरह जाना थावह नारायण है। और जो तुमने स्वर की तरह जाना थावह रामायण है।
शरीर तो मिट्टी है। मिट्टी से बना हैमिट्टी में विदा हो जाएगा।
मिट्टी नीरव
मिट्टी कलरव
मिट्टी कट भव
मिट्टी चिर नव
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तिफ्ली देखी शबाब देखा हमने
हस्ती को हवा बेआब देखा हमने
जब आंख हुई बंद तो उकदा यह खुला
जो कुछ भी देखा सो ख्वाब देखा हमने
अभी तुम जिसे जिंदगी समझ रहे हो वह सपने से ज्यादा नहीं।
जब आंख हुई बंद तो उकदा यह खुला
मरते वक्त तुम जानोगेजब आंख सच में बंद होगी तब यह राज खुलेगा—
जो कुछ भी देखा सो ख्वाब देखा हमने
जिंदगी जिसको समझते थेवह सपना सिद्ध हुई। और इस जिंदगी के भीतर जो सत्य छिपा थासपने में इतने उलझे रहे कि सत्य को कभी देखा नहीं।
कुछ पद और नसीहत ने भी तामीर न की
दुनिया के किसी काम में ताखीर न की
दिन रात यहीं के साज और सामी में रहे
जाना है कहां कुछ इसकी तदबीर न की
फिर भटकोगे। मौत से मत घबड़ाओअगर तुम्हारे जीवन में सच में ही समझने की कोई आकांक्षा है तो इतनी बात समझ लो कि यह जिसे तुम जिंदगी समझ रहे हो—
दिन रात यहीं के साज और सामी में रहे
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 जब तक कुछ अपनी कहूं सुनूं जग के मन की
तब तक ले डोली द्वार विदा— क्षण आ पहुंचा
फूटे भी तो थे बोल न स्वांस क्वांरी के
गीतों वाला इकतारा गिरकर टूट गया
हो भी न सका था परिचय दृग का दर्पण से
काजल आंसू बनकर छलका और छूट गया
इतनी जल्दी सब हो जाएगा। ज्यादा देर नहीं लगेगी।
जब तक कुछ अपनी कहूं सुनूं जग के मन की
तब तक ले डोली द्वार विदा — क्षण आ पहुंचा
कह भी न पाओगे अपने मन कीसुन भी न पाओगे अपने मन की और पाओगे कि आ गयी डोली। अर्थी उठने लगी,बंधने लगी।
फूटे भी तो थे बोल न स्वांस क्वांरी के
गीतों वाला इकतारा गिरकर टूट गया
इकतारा बज भी कहां पाता और टूट जाता है। कहां कौन कह पाता है जो कहना था! कहां कौन हो पाता है जो होना था!
हो भी न सका था परिचय दृग का दर्पण से
आंख अभी दर्पण से मिल भी न पायी थी
काजल आंसू बनकर छलका और छूट गया
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आगे पीछे एक दिवस
आना ही होगा तेरे द्वारे
इसीलिए जीवन भर मैंने
नहीं गेह पर दिये किवाडे
लेकर कोई कर्ज सीस
तेरे गोकुल जाना न उचित था
यही सोच सौ—सौ हाथों से
बांटे जग को चांद—सितारे
लेकिन इस संन्यासीपन का
फल यह सिर्फ मिला दुनिया से
आंसू तक सब रेहन हो गये
अर्थी तक नीलाम हो गयी
मैंने तो सोचा था अपनी
सारी उमर तुझे दे दूंगा
इतनी दूर मगर थी मंजिल
चलते —चलते शाम हो गयी
यहां तो सब लुट जाएगा।

आंसू तक सब रेहन हो गये
अर्थी तक नीलाम हो गयी

 यहां तो सब चुक जाएगा। यहां तो सब छूट जाएगा।
अर्थी तक नीलाम हो गयी

 यहां तो कुछ बचेगा नहीं। इसलिए मैं तुम्हें सांत्वना नहीं देता। मैं तुम्हें झकझोरना चाहता हूं। मैं तो तुम्हारी सांत्वनाएं छीन लेना चाहता हूं। मैं तो तुमसे कहता हूं, मौत निश्चित है। मौत होनेवाली है। मौत कल होगी। आने वाले क्षण में हो सकती है। बचो मतस्वीकार करो। और जितनी देर क्षण बचे हैंइनको तुम जीवन की तलाश में लगा दो। अंतस—जीवन की तलाश में। वहा है किरण अमृत कीशाश्वत की। और वह तुम्हारी किरण है। मिल सकतीतुम उसके मालिक हो। तुमने दावा नहीं किया है दावा करो! घोषणा करो। शरीर से अपने को थोड़ा हटाओचैतन्य में थोड़े जयों।

हरि ओंम तत्सत्।
आज इतना ही।


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