चांद तारों की
हसीं छांव में
मेरे दिल तक
नूरो—निकहत की
कोई मौज बढ़ी
आती है
सरसराती हुई फूलों से
गुजरती है सबा
तेरी आहट, तेरी
आवाज चली आती
है
सांस में देर
से कलियों की
चटक है पैदा
आप इक फूल
की मानिंद खिला
जाता हूं
हाय यह कैफ,
कि मुमकिन ही
नहीं तेरे बगैर
दिल धड़कता है
तो मदहोश हुआ
जाता हूं
अपने बरबत के
जरा तार मिला
ले ऐ दिल!
उसके आने पै
कोई गीत तो
गाना होगा
लहजा—लहजा कोई
पुर सहर नजर
उठेगी
लमहा—लमहा कोई
जादू का फसाना
होगा
कैसी कर्मो में
मेरी रूह घुटी
जाती है
अब तो नजदीक
ही छागल की
सदा आती है
काश, तुम
शून्य होकर बैठ
सको तो उसके
पैरों में बंधे
हुए शर जल्दी
ही तुम्हें सुनायी
पड़ने लगें।
कैसी कर्मो में
मेरी रूह घुटी
जाती है
अब तो नजदीक
ही छागल की
सदा आती है
चांद तारों की
हसीं छांव में
मेरे दिल तक
नूरो—निकहत की
कोई मौज बढ़ी
आती है
तूफान आता
है—सौंदर्य का,
आनंद का। तूफान
की तरह आता
है परमात्मा। छोटी—छोटी बूंदाबादी नहीं
होती, मूसलाधार वर्षा
होती है। मगर
तुम शून्य होओ।
चांद—तारों
की हसी छांव
में मेरे दिल
तक
नूरो—निकहत
की कोई मौज
बढ़ी आती है
सरसराती हुई
फूलों से गुजरती
है सबा
तेरी आहट
तेरी आवाज चली
आती है
और फिर
तो वृक्षों से
गुजरती हुई हवा
में भी उसकी
ही आहट मालूम
होगी। फिर तो
तुम जहां जाओगे,
जहां देखोगे, वहीं
उसकी पगध्वनि सुनाई
पड़ने लगेगी।
सांस में
देर से कलियों
की चटक है
पैदा
और तुम्हारी श्वास—श्वास में कलियां
चटकने लगेंगी।
आप इक
फूल की मानिंद
खिला जाता हूं!
मांगो मत,
बिन मांगे बहुत
मिलता है और
जब परमात्मा बरसेगा,
तुम फूल की
तरह खिल जाओगे।
सांस में
देर से कलियों
की चटक है
पैदा
आप इक
फूल की मानिंद
खिला जाता हूं!
हाय यह
कैफ...
यह आनंद
इतना ज्यादा है,
सम्हाले नहीं सम्हलता।
हाय यह
कैफ, कि मुमकिन
ही नहीं तेरे
बगैर।
एक बात
निश्चित है कि यह
तो इतना आनंद
बरस रहा है,
तू जरूर ही
पास होगा, क्योंकि तेरे
बिना यह मुमकिन
ही नहीं है।
हाय यह
कैफ, कि मुमकिन
ही नहीं तेरे
बगैर
दिल धड़कता
है तो मदहोश
हुआ जाता हूं
अपने बरबत
के जरा तार
मिला ले ऐ
दिल!
अपनी वीणा
के, अपनी हृदय
की वीणा के
तार मिलाकर रखो।
अपने बरबत
के जरा तार
मिला ले ऐ
दिल!
उसके आने
पै कोई गीत
तो गाना होगा
लहजा—लहजा
कोई पुर सहर
नजर उठेगी
लमहा—लमहा
कोई जादू का
फसाना होगा
कैसी नग्मों
में मेरी रूह
घुटी जाती है
अब तो
नजदीक ही छागल
की सदा आती
है
आज इतना ही
मेरो हे जोगी
मरो (गोरख नाथ)
प्रवचन--16
तेरी पेशानिए—रंगी में झलकती है जो आग
तेरे रुखसार के फूलों में दमकती है जो आग
तेरे सीने में जवानी की दहकती है जो आग
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
तेरे रुखसार के फूलों में दमकती है जो आग
तेरे सीने में जवानी की दहकती है जो आग
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
तेरी आंखों में फरोजा हैं जवानी के शरार
लबे—गुलरंग पै रक्सां हैं जवानी के शरार
तेरी हर सांस में गलती हैं जवानी के शरार
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
लबे—गुलरंग पै रक्सां हैं जवानी के शरार
तेरी हर सांस में गलती हैं जवानी के शरार
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
हर अदा में यह जवा आतिशे—जज्वात की रौ
यह मचलते हुए शोले, यह तड़पती हुई लौ
आ मेरी रूह पै भी डाल दे अपना परतौ
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
यह मचलते हुए शोले, यह तड़पती हुई लौ
आ मेरी रूह पै भी डाल दे अपना परतौ
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
कितनी महरूम निगाहें हैं, तुझे क्या मालूम
कितनी तरसी हुई बाहें हैं, तुझे क्या मालूम
कैसी धुंधली मेरी राहें हैं, तुझे क्या मालूम
जिंदगी की यह हंसी आग मुझे भी दे—दे
कितनी तरसी हुई बाहें हैं, तुझे क्या मालूम
कैसी धुंधली मेरी राहें हैं, तुझे क्या मालूम
जिंदगी की यह हंसी आग मुझे भी दे—दे
आ कि जुल्मत में कोई नूर का सामी कर लूं
अपने तारीक शबिस्ता को शबिस्ता कर लूं
इस अंधेरे में कोई शमअ फरोजा कर लूं
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
अपने तारीक शबिस्ता को शबिस्ता कर लूं
इस अंधेरे में कोई शमअ फरोजा कर लूं
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
बारे—जुल्मात से सीने की फजा है बोझिल
न कोई साजे—तमन्ना, न कोई सोजे— अमल
आ कि मशअल से तेरी मैं भी जला लूं मशअल
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
न कोई साजे—तमन्ना, न कोई सोजे— अमल
आ कि मशअल से तेरी मैं भी जला लूं मशअल
जिंदगी की यह हसी आग मुझे भी दे—दे
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
हर लहरी को ज्वार न समझो!
जीवन की साधें अगणित हैं
सांसों की झोली सीमित है,
पथ चलते जो भी मिल जाये—
तुम उसको उपहार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
भौंरों से आराधन सीखो,
कोयल से स्वर—साधन सीखो;
यदि दो फूल खिले बगिया में—
तो आ गई बहार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
जीवन भर भटकाने वाली—
प्यास कहां है आंखों वाली?
जो कुछ प्याले में ढलता है
तुम उसको रसधार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
अलकों की छाया मोहक है,
नयनों की माया मादक है;
दो दिन के मीठे परिचय को
सपनों का आधार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
जीवन भर मृग—से भटकोगे,
बालू पर माथा पटकोगे;
मृगजल की चंचल लहरों को
छवि का पारावार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
दीपक राग नहीं बन पाये
आग न जीवन में लग जाये!
वीणा पर जो कुछ बजता है
उसको मेघ—मल्हार न समझो!
हर चितवन को प्यार न समझो!
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
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मेघहीन अंबर में नीलम का हास,
निर्मल सरित—सरोवर, मंथर वातास!
रह —रह झूम रहे हैं सरसों के खेत,
मंद —मंद मुसकाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
निर्मल सरित—सरोवर, मंथर वातास!
रह —रह झूम रहे हैं सरसों के खेत,
मंद —मंद मुसकाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
हरे —हरे पत्तों से बोझिल हर डाल,
लाल हुए लज्जा से कलियों के गाल!
भौंरों की गुजारे, कोयल की टेर
रंग— अबीर उड़ाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
लाल हुए लज्जा से कलियों के गाल!
भौंरों की गुजारे, कोयल की टेर
रंग— अबीर उड़ाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
पहन कल्पना आई वासंती चीर,
पाटल के सुमनों—सा सुकुमार शरीर!
तरुण— अरुण नयनों में काजल की रेख
मृदुल करतलों पर हैं मेंहदी के लेख!
केशों में मदमाती चंपा की गंध,
छमक रही पगपायल, गजगति मृदु मंद
नगर—नगर झनकाता वीणा के तार—
कवि के स्वर में गाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
पाटल के सुमनों—सा सुकुमार शरीर!
तरुण— अरुण नयनों में काजल की रेख
मृदुल करतलों पर हैं मेंहदी के लेख!
केशों में मदमाती चंपा की गंध,
छमक रही पगपायल, गजगति मृदु मंद
नगर—नगर झनकाता वीणा के तार—
कवि के स्वर में गाता आया मधुमास!
पीतांबर लहराता आया मधुमास!
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
अलकों की छाह बिना शायद पूनम भी काली हो जाये,
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
यह माटी से निर्मित काया अविराम स्नेह की भूखी है,
दीपक कैसे जल पाये, यदि वर्तिका प्राण की रूखी है।
रजनी की काली अलकों में उलझा हर तारा कहता है
है स्नेह नहीं वह कोष कि जो लुटने से खाली हो जाये।
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
दीपक कैसे जल पाये, यदि वर्तिका प्राण की रूखी है।
रजनी की काली अलकों में उलझा हर तारा कहता है
है स्नेह नहीं वह कोष कि जो लुटने से खाली हो जाये।
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
जीवन के सूने मंदिर में? आशा के पावन शंख बजे,
तुम आओ तो अंधियारे में किरणों के स्वर्णिम फूल खिलें।
चंदन—सी महक उठें सासें आंसू अक्षत बनकर बिखरे,
सपनों की राख तुम्हें छूकर कुमकुम की लाली हो जाये।
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
तुम आओ तो अंधियारे में किरणों के स्वर्णिम फूल खिलें।
चंदन—सी महक उठें सासें आंसू अक्षत बनकर बिखरे,
सपनों की राख तुम्हें छूकर कुमकुम की लाली हो जाये।
यदि साथ रहो मेरे तुम तो हर रात दीवाली हो जाये।
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
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कुछ विकल जगारों की लाली,
कुछ अंजन की रेखा काली,
ऊषा के अरुण झरोखों में
जैसे हो काली रात बसी!
दो नयनों में बरसात बसी!
बिखरी—बिखरी रूखी अलकें,
भीगी— भीगी भारी पलकें
प्राणों में कोई पीर बसी
मन में है कोई बात बसी!
दो नयनों में बरसात बसी!
भीगी— भीगी भारी पलकें
प्राणों में कोई पीर बसी
मन में है कोई बात बसी!
दो नयनों में बरसात बसी!
लज्जा की लतिके, डोलो तो
हे मधुभाषिणि! कुछ बोलो तो!
सुधि के इस भीगे आंचल में
किसकी निष्ठुर सौगात बसी!
दो नयनों में बरसात बसी!
हे मधुभाषिणि! कुछ बोलो तो!
सुधि के इस भीगे आंचल में
किसकी निष्ठुर सौगात बसी!
दो नयनों में बरसात बसी!
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
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नयन मधुकर आज मेरे
एक अनजानी किरण ने
गुदगुदी उर में मचा दी,
फूट प्राणों से पड़ा गुंजन सबेरे ही सबेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
एक अनजानी किरण ने
गुदगुदी उर में मचा दी,
फूट प्राणों से पड़ा गुंजन सबेरे ही सबेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
दूर की मधुगंध पागल
प्यास प्राणों में जगा दी
विश्व—मधुवन में लगाता फिर रहा मैं लाख फेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
प्यास प्राणों में जगा दी
विश्व—मधुवन में लगाता फिर रहा मैं लाख फेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
ये पलक—पांखें नशे में
झप रही हैं, खुल रही हैं
पुतलियां मदहोश—सी हैं, कंटकों को कौन हेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
झप रही हैं, खुल रही हैं
पुतलियां मदहोश—सी हैं, कंटकों को कौन हेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
दूर कुंजों की कली!
मुझसे नयन मेरे न छीनो!
तुम न घेरे हो इन्हें, पर है तुम्हारा रूप घेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
मुझसे नयन मेरे न छीनो!
तुम न घेरे हो इन्हें, पर है तुम्हारा रूप घेरे!
नयन मधुकर आज मेरे!
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
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ऐसा दिखता है कौन धुनी?
अव्यक्त आवरण में लिपटी
उस नृत्यमयी निर्वसन नटी
के चरणों से उठती, उर में
जिसने मधुध्वनि निष्कपित सुनी।
किसने छू पायी वह रेखा
जिसने वह बिंदुमुखी देखा,
ज्योतित निनाद प्राचीर तले,
प्राणों से मन की ईंट चुनी।
ऐसा दिखता है कौन धुनी?
जिसने वह बिंदुमुखी देखा,
ज्योतित निनाद प्राचीर तले,
प्राणों से मन की ईंट चुनी।
ऐसा दिखता है कौन धुनी?
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
कौन—सी उपलब्धियों से
इन मुखर विश्रब्धियों से
तार रस माते उलझते
बीन भी उन्मादिनी—सी।
इन मुखर विश्रब्धियों से
तार रस माते उलझते
बीन भी उन्मादिनी—सी।
सुख व्यथा आलोक तम,
चेतन अचेतन को भुलाती,
बज रही वर्जित स्वरों की
रागिनी अनुरागिनी—सी।
चेतन अचेतन को भुलाती,
बज रही वर्जित स्वरों की
रागिनी अनुरागिनी—सी।
फूल तारों के झरे क्यों
फूल करुणा के भरे क्यों,
क्यों हुई कातार में
काली अमा चंद्राननी—सी।
फूल करुणा के भरे क्यों,
क्यों हुई कातार में
काली अमा चंद्राननी—सी।
मेरो हे जोगी मरो (गोरख नाथ) प्रवचन--16
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