Sunday, 31 May 2015

अष्‍टावक्र: महागीता (भाग--5) प्रवचन--7

फिर आ गए राजाधिराज चाबुक घुमाते
सफेद घोड़े दौड़ातेसूरज का मुकुट झिलमिलाते
फिर बच्चे फूल बीनने लगे
क्या मैं कभी जाड़े की सुगंध से छूती नहीं?
बंधी ही रहूंगी गरमाहट की इच्छा से?
हर बार हर साल धूप की भाप बर मोम—सी घुलूंगी?
खोदूंगी स्पर्श—निरपेक्ष स्व?
इस असहायता से मुक्त हो जाऊं,
विदेह हो आऊं
फिर आ गए राजाधिराज चाबुक घुमाते
सफेद घोड़े दौड़ातेसूरज का मुकुट झिलमिलाते?
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जागते में जागता भागता हूं
अंधेरी गुफा में खोजता हुआ दरार
चौड़ाने को
झांकने को पार
जागने को
यह तुम जिसको जागरण कहते हो यह जागरण नहीं है।
जागते में जागता भागता हूं
अंधेरी गुफा में खोजता हुआ दरार
चौड़ाने को
झांकने को पार
जागने को
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जो देखासपना था
अनदेखा अपना था
जो—जो तुमने देखा हैसब सपना है। दृश्यमात्र सपना है। यही तो पूरब की अपूर्व धारणा है माया की। माया का अर्थ है :
जो देखासपना था
अनदेखा अपना था
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हम वे लोग हैं जो घोल दें खुशबू हवा में
जो काल के निष्‍ठूर हृदय पर
उंगलियों से लिख दें अमिट लेख
हम वे लोग हैं जो मौत की ठंडी उंगलियों में
भर दें जिंदगी के गीत
हम हवाओं में तैरते
इस पार से उस पार तक अनिर्बंध
हम वे लोग हैं जिन्हें छांट दो तो
अमरबेल—सा उग आएं
जिन्हें बांध दो तो गंध—सा बस जाएं
जिन्हें जला दो तो आकाश में छा जाएं
हम तुम्हारी आत्माओं की प्रज्वलित शिखाएं
तुम्‍हारी आवाज के आधार का मूलतत्‍व
तुम्‍हारी मुट्ठियों में रची—बसी आस्‍थाएं
हम वे लोग हैं जो हवा में भर जाते हैं
अवाम में छा जाते हैं
होठों पर भा जाते हैं
चेहरों पर आ जाते हैं
हम वे लोग हैं जो घोल दें खुशबू हवा में
जो काल के निष्ठुर हृदय पर
उंगलियों से लिख दें अमिट लेख
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दुख को बहुत सहेज कर रखना पड़ा हमें
सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया
अब सबसे पूछता हूं बताओ तो कौन था
वह बदनसीब शख्स जो मेरी जगह जीया!
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