मिट्टी भी हंसती है, ऐसा
सुनकर मैं हंसता था पहले
फूलों का परिवार देखकर
अब विश्वास हुआ है मुझको
कितनी कलियों की आंखों में
गूंज रही खुशबू की गीता
कितने फूलों के ओंठों पर
लिखी हुई रंगों की कविता
खुशबू के हस्ताक्षर करती
डोल रहीं तितली—बालाएं
सोन जुही के कानों में कुछ
कहती भंवरों की मालाएं
वासंती घूंघट के भीतर
छिपे हुए हैं मधु के प्याले
मानो रेशम को बस्ती में
खुली पड़ी हों मधुशालाएं
मिट्टी भी हंसती है, ऐसा
सुनकर मैं हंसता था पहले
फूलों का परिवार देखकर
अब विश्वास हुआ है मुझको
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प्राणहीन पादप से
लिपट गयी लता
अतीत से कितनी
आगत को ममता
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रूप ढला
रस बहा
संग लगा
रंग रहा
सब ढल जाता है, सब नष्ट हो जाता है, लेकिन रंग लगा रह जाता है। जैसे बगीचे से गुजरे, बगीचा तो गुजर गया लेकिन वस्त्रों में थोड़ी
बगीचे की सुगंध अटकी रह जाती है। ऐसी स्मृतियां हैं। खिलौने टूटते हैं, मरते नहीं
मां ने कहा,
पर बालक रोता रहा
बच्चे का तो खिलौना भी टूट जाए तो वह रोता है।
जैसे कोई मृत्यु घट गयी। बच्चे का खिलौना टूट जाए तो रोता है,और ज्ञानी वस्तुत: मौत घट जाए, खुद भी मर जाए तो भी नहीं रोता है, आंख पर आंसू नहीं आते हैं। बच्चे को खिलौने में
भी लगता है मौत घट गयी और ज्ञानी को वास्तविक मौत में भी लगता है—मौत कैसे घट सकती
है!
रति
भोगी की मति
योगी की गति
वही है ऊर्जा, अलग— अलग तो नहीं। रति—यह जो काम है, मन की वासना है। भोगी की मति—इसी कामना में
भोगी का मन ड़बता रहता है। डुबकियां लगाता रहता है। अब जो तुम कर भी नहीं सकते, उसकी कल्पना में ड़बे हो। जो हो भी नहीं सकता, उसकी योजना बना रहे हो। शेखचिल्लीपन छोड़ो।
रति
भोगी की मति
योगी की गति
और योगी यह समझकर कि जो हुआ वह भी व्यर्थ था, सपने जैसा आया और गया, अब उसमें क्या रखा! जब था तब भी सपना था, समझदार को। और नासमझ को, जब नहीं है तब भी सच मालूम हो रहा है। तो जिस
रति में भोगी ड़ब जाता,बंध जाता, उसी रति को समझकर योगी गतिमान हो जाता। रति
विरति बने
यही काम्य,
आवृत्ति बने,
यह कामना
और फिर—फिर वही कर लूं जो किया, ऐसी आवृत्ति की आकांक्षा का नाम ही कामना है।
जो एक बार कर लिया, ठीक से कर लिया, देख लिया, समझ लिया, उससे सदा के लिए मुक्ति हो
जानी चाहिए। लेकिन फिर—फिर करूं, इसका मतलब है कि ठीक से किया
नहीं।
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बीत गये
प्यारे रतनारे दिन बीत गये
रीत गये
आंखों के खारे छिन रीत गये
अरुणाए अधरों के
मखमल से चुंबन ने
मोड़ दिया पाल
काजल की डोरी से
बंधी—बंधी मछली ने
छोड़ दिया ताल
द्वारे पर
बहरे हरकारे बिन गीत गये
बीत गये
प्यारे रतनारे दिन बीत गये
रीत गये
आंखों के खारे छिन रीत गये
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अभावतुल्य
ओ, प्यार की तिलिस्म उपलब्धियो
यहां हूं मैं
यहां फिर मुझे खोजो
मेरे गाते हुए इरादों में।
मनाओ
मेरी आशाओं को मनाओ
कि अभी न रूठे
अभी बहुत कुछ है
जिंदगी के वादों में
आखिर तक आदमी सोचता चला जाता है, अभी कुछ और भोग लें, अभी कुछ और भोग लें। अभी बहुत कुछ है
जिंदगी के वादों में।
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मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला
मैं नहीं पहले दिनों का प्यार भूला
गोद में ले मोद से मुझको लसो तो
आज मन—वीणा प्रिये फिर से कसो तो
मन भूलता ही नहीं। फिर—फिर जवान होता रहता है।
फिर—फिर लौटकर तरंगें उठती रहती हैं। फिर—फिर पुराने राग—रंग देख लेने का मन होने
लगता है।
अभी तक ढूंढती है उर्वरा सुरगंध फूलों में
सहमकर टूटकर बीती अधूरी बात कानों की
अभी तक है चुराती आंख जैसे चांदनी भू से
अभी तक आड़ ज्यों की त्यों सितारों के मचानों
से
नहीं बासे हुए हैं रूप के पगचिह्न कुंजों में
हवाओं पर खिंचे हैं मुग्ध पलकों के झुके साये
समय के गाल पर सूखी नहीं विश्वास की बूंदें
अभी तक शून्यता का वक्ष सांसों से धड़क जाए
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बीत चली संध्या की बेला।
धुंधली प्रतिपल पड़ने वाली
एक रेख में सिमटी लाली
कहती है समाप्त होता है
सतरंगे बादल का मेला।
बीत चली संध्या की बेला।
अंतरिक्ष में आकुल, आतुर
कभी इधर उड़, कभी उधर उड़
पंथ नीड़ का खोज रहा है
पिछड़ा पंछी एक अकेला।
बीत चली संध्या की बेला।
कहती है समाप्त होता है
सतरंगे बादल का मेला।
पंथ नीड़ का खोज रहा है
पिछड़ा पंछी एक अकेला।
बीत चली संध्या की बेला।
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जुनूं के मशरबे —रंगी को इख्तियार करो
खिरद के जामा—ए—कोहना को तार—तार करो
मिले हैं रूठे हुए दोस्त गर्मजोशी से
सलोनी रुत के लिए शुक्रे—कर्दगार करो
जुनू के मशरबे —रंगी को इख्तियार करो
जिंदगी का जो मदमाता, मस्त उन्माद, रंगों से भरा हुआ तोर—तरीका है.।
जुनू के मशरबे —रंगी को इख्तियार करो
यह जो फूलों, पक्षियों की गुनगुनाहट का, झरनों के शोर का, समुद्र की लहरों का, आकाश के चांद—तारों का जो उन्मत्त उत्सव है, जीवन का यह जो ढंग है, इसे इख्तियार करो।
जुनूं के मशरबे —ली को इख्तियार करो
खिरद के जामा—ए—कोहना को तार—तार करो
यह बुद्धि की बकवास को तोड़ो, तार—तार उखाड़ कर अलग कर दो।
खिरद के जामा—ए—कोहना को तार—तार करो
मिले हैं रूठे हुए दोस्त गर्मजोशी से
जैसे बिछड़े हुए दो दोस्त मिल जाते हैं। तो फिर
थोड़े ही फिक्र करते अतीत की या भविष्य की। मिले हैं रूठे हुए दोस्त गर्मजोशी से
सलोनी रुत के लिए शुक्रे —कर्दगार करो
तो इस अदभुत ऋतु के लिए, इस क्षण के लिए परमात्मा का धन्यवाद करो।
छोड़ो यह फिकर। बहुत बार प्रश्न आते हैं
तुम्हारे कि क्या हम पहले भी साथ थे? अभी साथ नहीं हो पा रहे, और पहले भी साथ थे इसकी चिंता में पड़े हो! थे भी साथ तो
क्या सार? नहीं थे साथ तो क्या फर्क? अभी साथ हो लो, यह जो दो क्षण हमारे हाथ में हैं, साथ—साथ चल लो। इस क्षण एकात्म सध जाने दो।
जुनूं के मशरबे —रंगी को इख्तियार करो
खिरद के जामा—ए—कोहना को तार—तार करो
मत लाओ बुद्धि की इन बातों को बीच में।
मस्ती ही में पाये दिल हस्ती का इर्फान
ख्वाब में जैसे जाए मिल अनदेखा भगवान
जहां मस्ती है, वहां मंदिर है। और मस्ती तो सदा अभी और यहां होती है, अतीत और भविष्य में नहीं।
मस्ती ही में पाये दिल हस्ती का इर्फान
और जहां तुम ड़ब जाते किसी मस्ती में, वहीं अस्तित्व के संदेश मिलने शुरू होते हैं।
ख्वाब में जैसे जाए मिल अनदेखा भगवान
और मस्ती में ही पहली दफा अनदेखा दिखायी पड़ता, अदृश्य दृश्य होता है।
बस गयी मन में तेरे मस्तमिलन की खुशबू
मेरे एहसास पे छाया रहा तेरा जादू
झूमता फिरता रहा तेरी मधुर यादों में
मुझ पे एक नशे का आलम रहा बेजामो —सुबू
अगर तुम जरा मौका दो मुझे, उतरने दो तुम्हारे हृदय में, तो बिना पीए तुम पर शराब हावी हो जाए। झूमता
फिरता रहा तेरी मधुर यादों में
मुझ पे एक नशे का आलम रहा बेजामो—सुबू
बिना पीए एक शराब तुम पर हावी हो जाए।
बस गयी मन में तेरे मस्तमिलन की खुशबू
मेरे एहसास पे छाया रहा तेरा जादू
मत सोच—विचार में पड़ो, मत सिद्धात बीच में लाओ, मेरे और तुम्हारे बीच सिद्धात न हों, शास्त्र न हों; मेरे और तुम्हारे बीच कोई धारणा, कोई तर्क न हों; मेरे और तुम्हारे बीच कुछ भी न हो, एक शून्य का सेतु बन जाए, तो छंद उठे, तो गीत जगे। और उसी मस्ती में शायद तुम्हें पहली दफे अनुभव
हो जीवन के परम सत्य का।
जीवन उत्सव है और उत्सव में ही हम जान पाते हैं
कि जीवन क्या है।
आज इतना ही।
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