Friday, 29 May 2015

अष्‍टावक्र महागीता--(भाग-2) प्रवचन--6

तंग आ चुका हूं सिद्दते—जहदे—हयात से।
मुतरिब! शुरू कोई मोहब्बत का राग कर।

                     बे—गोता कैसे मिलता हमें गौहरे —मुराद
हम तैरते रहे सदालहरों के झाग पर।
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अब तो इस मंजिल पर आ पहुंचे हैं तेरी चाहत में,
खुद को तुझ में पाते हैं हमतुझको खुद में पाते हैं।
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जमाले—निगारां पे अशआर कह कर,
करारे—दिले — आशिकां हो गए हम।
शनासा—ए—राजे—जहां हो गए हम,
तो बेफिक्रे —सूदो —जिया हो गए हम।
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