Thursday, 28 May 2015

अष्‍टावक्र महागीता--(भाग-2) प्रवचन--10




रहीम का एक वचन है
कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग
वह डोलत रस आपने उनके फाटत अंग।
केले का वृक्ष और बेर का वृक्षदोनों का साथ—साथ होना ज्यादा दिन चल नहीं सकता।
कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग
वह डोलत रस आपने.......
बेर तो अपने आनंद में मग्न हो कर डोलता है।
उनके फाटत अंग।
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जा का हाल सुनाएंजजा की बात करें,
खुदा मिला हो जिन्हेंवो खुदा की बात करें।
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लाख तुम ऐसी कोशिशें करोतुम जीतोगे नहीं। यह सब सोच—विचार ही है।
मुझे अपनी पस्ती की शरम है
तेरी रिफअतों का खयाल है
मगर अपने दिल को मैं क्या करूं?
इसे फिर भी शौक—ए—विसाल है।
तुम लाख समझोशर्मिंदा होओअपराधी अनुभव करो गलती हो रही हैपाप हो रहा है—फिर भी कुछ फर्क नहीं पड़ता।
मगर अपने दिल को मैं क्या करूं?
इसे फिर भी शौक—ए—विसाल है।
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हरेक चेहरा खुद एक खुली किताब है यहां,
दिलों का हाल किताबों में ढूंढता क्यों है?
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