प्रेम के सघन कुंजों में
उदासी की गहरी छांव तले
आओ पल दो पल बैठ संतप्त मन को
थोड़ा—सा बांट लें
श्वासों के गांव में छाये हुए यादों के कोहरे
को
आपसी मिलापों से आओ हम छांट लें
भूले अनुबंधों को, बिखरे संबंधों को
आंसू के धागों में फिर से हम गाठ लें
वीरानी पलकों में सपनों का दर्प कहां
उजड़े—से जीवन में मधुमासी पर्व कहा
पता नहीं फिर हम मिलें, या न मिलें
कम—से—कम अपने ही सायों में
आओ घड़ी दो घड़ी ही काट लें।
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