Sunday, 21 June 2015

भज गोविंदम मुढ़मते (आदि शंक्राचार्य) प्रवचन--10





हो न हो अब आ गई मंजिल करीब
रास्ते सुनसान नजर आते हैं
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माइले-दैरो-हरम तूने यह सोचा भी कभी
जिंदगी खुद ही इबादत है अगर होश रहे
माइले-दैरो-हरम...
ओ मंदिर और मस्जिद की तरफ झुकने वाले!
                ...तूने यह सोचा भी कभी
जिंदगी खुद ही इबादत है अगर होश रहे
फिर कोई और प्रार्थना नहींकोई पूजा नहींफिर कोई और ध्यान ही नहीं।
जिंदगी खुद ही इबादत है अगर होश रहे
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सौदागरी नहींये इबादत खुदा की है
ऐ बेखबरजजा की तमन्ना भी छोड़ दे
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दैरो-हरम भी मंजिले-जानां में आए थे
उस प्यारे की खोज में मंदिर और मस्जिद भी बीच में आ गए थे।
पर शुक्र है कि बढ़ गए दामन बचा के हम
पर हम अपना दामन बचाए और बढ़ गए।
बहुत कुछ आएगा राह मेंबस जरा सा दामन बचा कर--उसी को मैं होश कह रहा हूं। शंकर ने सावधानी कहामहा सावधानी कहा। जागे हुए! फिर तुम्हें कोई भी न रोक पाएगा। दुकान बेचारी बहुत कमजोर हैमंदिर-मस्जिद भी न रोक पाएंगे। किताबेंबही-खाते ना-कुछ हैंवेद-कुरान भी न रोक पाएंगे।
दैरो-हरम भी मंजिले-जानां में आए थे
उस प्यारे के रास्ते पर बहुत कुछ बाधाएं आईं। मंदिर और मस्जिद तक बाधाएं बन कर खड़े हो गए।
पर शुक्र है कि बढ़ गए दामन बचा के हम
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