आज पराया हुआ जा रहा है मुझ से मेरा अपनापन
पथ भूले राही-सा व्याकुल भटक रहा मेरा जीवन
ले अंगड़ाई जगी वेदना, जाग गया सोया क्रंदन
डूब चला विश्वास जभी से टूट चले मन के बंधन,
कैसे चले सांस की दुल्हन, निपट
अकेली राहों में
कदम कदम पर व्यथा ठगोनी विषधर पाल गयी
आज उभर आयी अधरों पर फिर से सहमी करुण कथा
वाणी से अधिकार मांगता गीत अधूरे जीवन का
देखो आज बिखर न जाए संचित भावों की माला
टूट न जाए छंद, अबोली रह जाए मन की भाषा
बुझी आरती थकी पुजारिन, मंदिर
के पट बंद हुए
कौन सुहागिन स्वर्ण-कलश पर दीपक बाल गयी!
बुझी आरती, थकी पुजारिन, मंदिर के पट बंद हुए
कौन सुहागिन स्वर्ण-कलश पर दीपक बाल गयी!
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यह जी चाहता है कि कुछ कर दिखाएं,
कोई नज्म लिखें, कोई गीत गाएं
जो यह भी न हो तो उसे याद करके
किसी कुंज में बैठकर गम के आंसू बहाएं
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आज जी भर कर देख लो तुम चांद को
क्या पता यह रात फिर आए न आए
दे रहे लौ स्वप्न भीगी आंख में
तैरती हो ज्यूं दीवाली धार पर
ओंठ पर कुछ गीत की लड़ियां पड़ीं
हंस पड़े जैसे सुबह पतझार पर
पर न यह मौसम रहेगा देर तक
हर घड़ी मेरा बुलावा आ रहा
कुछ नहीं अचरज अगर कल ही यहां
विश्व मेरी धूल तक पाए न पाए
आज जी भर कर देख लो तुम चांद को
क्या पता यह रात फिर आए न आए।
ठीक क्या किस वक्त उठ जाए कदम
काफिला कर कूच दे इस ग्राम से
कौन जाने कब मिटाने को थकन
जा सुबह मांगे उजाला शाम से
काल के अद्वैत अधरों पर धरी
जिंदगी यह बांसुरी है चाम की
क्या पता कल श्वास के स्वरकार को
साज यह आवाज यह भाए न भाए
आज जी भर देख लो तुम चांद को
क्या पता यह रात फिर आए न आए।
यह सितारों से जड़ा नीलम नगर
बस तमाशा है सुबह की धूप का
यहां बड़ा-सा मुस्कुराता चंद्रमा
एक दाना है समय के सूप का
है नहीं आजाद कोई भी यहां
पांव में हर एक के जंजीर है
जन्म से ही जो परायी है मगर
सांस का क्या ठीक कब गाए न गाए
आज जी भर देख लो तुम चांद को,
क्या पता यह रात फिर आए न आए।
स्वप्ननयना इस कुमारी नींद का
कौन जाने कल सबेरा हो न हो
इस दीए की गोद में इस ज्योति का
इस तरह फिर से बसेरा हो न हो
चल रही है पांव के नीचे धरा
और सर पर घूमता आकाश है
धूल तो संन्यासिनी है सृष्टि से
क्या पता वह कल कुटी तक छाए न छाए
आज जी भर देख लो तुम चांद को
क्या पता यह रात फिर आए न आए।
हाट में तन का पड़ा मन का रतन
कब बिके किस दाम पर अज्ञात है
किस सितारे की नजर किसको लगे
ज्ञात दुनिया में किसे यह बात है
है अनिश्चित हर एक दिवस हर एक क्षण
सिर्फ निश्चित है अनिश्चितता यहां
इसलिए संभव बहुत है, प्राण
कल चांद आए चांदनी लाए न लाए
आज जी भर कर देख लो तुम चांद को
क्या पता यह रात फिर आए न आए।
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