किसने कहा-वह फूल है?
किसने कहा-वह शूल है?
प्रात: हुई-सब रूप है,
प्रात: हुई-सब रंग है,
दिन का प्रकाश उछाह है,
दिन का प्रकाश उमंग है।
पर मौन सूनी सी अमा,
निज ‘नास्ति ‘ की ले कालिमा,
निःश्वास भर कर कह उठी-
‘जो कुछ यहां वह भूल है!’
तब चेतना ने ज्ञान ले
नभ पर यहां मानव चढ़ा
रवि-शशि बने उसके नयन,
निःसीम को उसने गढ़,
पर वह अचानक रुक गया,
पर शीश उसका झुक गया,
ले गोद में उसका धरा
ने कह दिया- ‘तू धूल है!’
---------------------------------
वह एक छोटा-सा विहग
अपनी उमंगों से उमैं
निज पंख फैला चल पड़ा
उस नील नभ को नापने!
उर में भरा उल्लास था,
स्वर में भरा उच्छ्वास था
संगीत जीवन का रचा
उसकी विसुध प्रति सांस ने!
थे मौन गिरी-पर्वत खड़े
थे मौन वन -उपवन पड़े
वह गा रहा, वह जा रहा,
था सामने, बस सामने!
ऊंचा अधिक उड़ता गया,
ओझल हुई उससे धरा,
पर सामने निःसीम था,
उसके लगे पर कापने!
में तो संन्यास की यात्रा सुगम मालूम होती है, सरल मालूम होती है। शुरू-शुरू में तो ध्यान शांतिदायी। शुरू- शुरू होता है।
लेकिन एक ऐसी घड़ी
आती है उड़ते -उड़ते
ऊंचा अधिक उड़ता गया,
ओझल हुई उससे धरा,
पर सामने निःसीम था,
उसके लगे पर कापने!
---------------------------
तेरे लिए ही मैं सरजाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!
तूने बांधी महा सगाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!
----------------------------------
कितना मोहक रूप,
नयन ही बतलाके,
कितनी पागल प्यार,
सपन ही समझाएंगे।
हर पपड़ी है एक जलाधि
की शेष निशानी,
कितनी गहरी प्यास, अधर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
पल-पल का है साथ,
मगर पल-पल की दूरी,
फीका स्वर्ण -प्रभात,
विफल संध्या सिंदूरी।
तन छूती जलधार
मगर जीवन रेतीला,
तट के मन की पीर लहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
संध्या की थाली में
कितने दीप हैसे थे,
पावस की स्याही ने
कितने दीप डसे थे!
किस कुर्बानी ने
सूरज की भाग्य लिखा था-
ऊषा की रंगीन नजर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
प्रतिभा वाले बीज
अंगारों में पलते हैं।
गीतों वाले फूल
अश्रु-तट पर खिलते हैं।
मधुर मिलन का पता
विरह-पुर में पाओगे,
मधु-मदिरा का मोल जहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
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किसने कहा-वह शूल है?
प्रात: हुई-सब रूप है,
प्रात: हुई-सब रंग है,
दिन का प्रकाश उछाह है,
दिन का प्रकाश उमंग है।
पर मौन सूनी सी अमा,
निज ‘नास्ति ‘ की ले कालिमा,
निःश्वास भर कर कह उठी-
‘जो कुछ यहां वह भूल है!’
तब चेतना ने ज्ञान ले
नभ पर यहां मानव चढ़ा
रवि-शशि बने उसके नयन,
निःसीम को उसने गढ़,
पर वह अचानक रुक गया,
पर शीश उसका झुक गया,
ले गोद में उसका धरा
ने कह दिया- ‘तू धूल है!’
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वह एक छोटा-सा विहग
अपनी उमंगों से उमैं
निज पंख फैला चल पड़ा
उस नील नभ को नापने!
उर में भरा उल्लास था,
स्वर में भरा उच्छ्वास था
संगीत जीवन का रचा
उसकी विसुध प्रति सांस ने!
थे मौन गिरी-पर्वत खड़े
थे मौन वन -उपवन पड़े
वह गा रहा, वह जा रहा,
था सामने, बस सामने!
ऊंचा अधिक उड़ता गया,
ओझल हुई उससे धरा,
पर सामने निःसीम था,
उसके लगे पर कापने!
में तो संन्यास की यात्रा सुगम मालूम होती है, सरल मालूम होती है। शुरू-शुरू में तो ध्यान शांतिदायी। शुरू- शुरू होता है।
लेकिन एक ऐसी घड़ी
आती है उड़ते -उड़ते
ऊंचा अधिक उड़ता गया,
ओझल हुई उससे धरा,
पर सामने निःसीम था,
उसके लगे पर कापने!
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तेरे लिए ही मैं सरजाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!
तूने बांधी महा सगाई
मैं तो पर गई ओ हरजाई!
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कितना मोहक रूप,
नयन ही बतलाके,
कितनी पागल प्यार,
सपन ही समझाएंगे।
हर पपड़ी है एक जलाधि
की शेष निशानी,
कितनी गहरी प्यास, अधर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
पल-पल का है साथ,
मगर पल-पल की दूरी,
फीका स्वर्ण -प्रभात,
विफल संध्या सिंदूरी।
तन छूती जलधार
मगर जीवन रेतीला,
तट के मन की पीर लहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
संध्या की थाली में
कितने दीप हैसे थे,
पावस की स्याही ने
कितने दीप डसे थे!
किस कुर्बानी ने
सूरज की भाग्य लिखा था-
ऊषा की रंगीन नजर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
प्रतिभा वाले बीज
अंगारों में पलते हैं।
गीतों वाले फूल
अश्रु-तट पर खिलते हैं।
मधुर मिलन का पता
विरह-पुर में पाओगे,
मधु-मदिरा का मोल जहर से जान सकोगे।
चरणों का इतिहास डगर से जान सकोगे।
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