ज्ञान से लड़ै रजपूत सोई।
छमात्तलवार से जगत् को बसि करै
प्रेम की जुज्झ मैदान होई।।
लोभ औ मोह हंकार दल मारिकै
काम औ क्रोध ना बचै कोई।
दास पलटू कहै तिलकधारी सोई,
उदित तिहूं लोक रजपूत सोई।।5।।
गाय-बजाय के काल को काटना,
और की सुन कछु आप कहना।
हंसना-खेलना बात मीठी कहै,
सकल संसार को बस्सि करना।।
खाइए-पीजिए मिलैं सो पहिरिए,
संग्रह औ त्याग में नाहिं परना।
बोलु हरिभजन को मगन ह्वै प्रेम से
चुप्प जब रहौ तब ध्यान धरना।।6।।
सुंदरी पिया की पिया को खोजती,
भई बेहोश तू पिया कै कै।
बहुत सी पदमिनी खोजती मरि गई,
रटत ही पिया पिया एक एकै।।
सती सब होती हैं जरत बिनु आगि से,
कठिन कठोर वह नाहिं झांकै।
दास पलटू कहै सीस उतारिकै
सीस पर नाचु जो पिया ताकै।।7।।
पूरब ठाकुरद्वारा पच्छिम मक्का बना,
हिंदु औ तुरक दुह ओर धाया।
पूरब मूरति बनी पच्छिम में कबुर है,
हिंदू औ तुरक सिर पटकि आया।।
मूरति औ कबुर ना बोलै ना खाय कछु,
हिंदू औ तुरक कहा पाया।
दास पलटू कहै पाया तिन्ह आप में
मूए बैल ने कब घास खाया।।9।।
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धरा पर लुटाया नहीं प्यार अब तक
अरी मौत अपना कदम तू हटा ले
समय की तृषित आत्मा के अधर पर,
अभी तो सुधा-बूंद बनना मुझे है,
अभी तो किसी झोंपड़ी की अमा में
मधुर चांदनी-सी उतरना मुझे है,
किसी नव कली को उठा धूल में से
बनाया नहीं देव-श्रृंगार अब तक
अरी मौत अपना कदम तू हटा ले।
हुई मौन आंसू-भरा गीत गाकर
उसी आंख में अब सपन तो बसा लूं,
बिना प्यास के चल रहा जो अकेला
ज़रा उस पथिक की थकन तो मिटा लूं,
किसी की लुटी-सी बुझी जिंदगी में
मनाया नहीं दीप-त्यौहार अब तक,
अरी मौत अपना कदम तू हटा ले।
चलेंगे बहुत इस कंटीली डगर पर
ज़रा बीन कर शूल पथ साफ कर लूं
बुरा कुछ किया है, बुरा कुछ सहा है
ज़रा माफ हो लूं, ज़रा माफ कर लूं
किसी की बहकती नजर को बदल कर
दिखाया न रंगीन संसार अब तक
अरी मौत अपना कदम तू हटा ले।
अभी खेत-खलिहान चौपाल पनघट
नदी के किनारे ज़रा घूम लूं मैं
उमड़ती धुमड़ती बरसती धटा में
ज़रा भींग लूं मैं, ज़रा झूम लूं मैं,
उमर घट रही है, सफर बढ़ रहा है
उठी पर हृदय से न झंकार अब तक
अरी मौत अपना कदम तू हटा ले
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सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला
जब तक रही बाहर उमर की बगिया में
जो भी आया द्वार चांद लेकर आया
पर जिस दिन झर गई गुलाबों की पंखुरी
मेरा आंसू मुझ तक आते शरमाया
जिसने चाहा, मेरे फूलों को चाहा
नहीं किसी ने लेकिन शूलों को चाहा
मेला साथ दिखानेवाले मिले बहुत
सूनापन बहलानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
कोई रंग-बिरंगे कपड़ों पर रीझा
मोहा कोई मुखड़े की गोराई से
लुभा किसी को गई कंठ की कोयलिया
उलझा कोई केशों की घुंघराई
जिसने देखी, बस मेरी डोली देखी
नहीं किसी ने पर दुल्हन भोली देखी
तन के तीर तैरनेवाले मिले सभी
मन के घाट नहानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
लेकिन दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
मैं जिस दिन सोकर जागा, मैंने देखा
मेरे चारों ओर ठगों का जमघट है
एक इधर से एक उधर से लूट रहा
छिन-छिन रीत रहा मेरा जीवन-घट है
सबकी आंख लगी थी गठरी पर मेरी
और मची थी आपस में मेरात्तेरी
जितने मिले, सभी बस धन के चोर मिले
लेकिन हृदय चुरानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
रूठी सुबह डिठौना मेरा छुड़ा गयी,
गयी ले गयी, तरुणायी सब दोपहरी
हंसी खुशी सूरज चंदा के बांट पड़ी,
मेरे हाथ रही केवल रजनी गहरी,
आकर जो लौटा कुछ लेकर ही लौटा
छोटा और हो गया यह जीवन छोटा,
चीर घटानेवाले ही सब मिले यहां,
घटता चीर बढ़ानेवाला नहीं मिला
सुख के साथी मिले हजारों ही लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
उस दिन जुगनू एक अंधेरी बस्ती में
भटक रहा था इधर-उधर भरमाया-सा
आसपास था अंतहीन बस अंधियारा
केवल था सिर पर निज लौ का साया-सा,
मैंने पूछाः तेरी नींद कहां खोयी?
वह चुप रहा, मगर उसकी ज्वाला रोयी
नींद चुरानेवाले ही तो मिले यहां
कोई गोद सुलानेवाला नहीं मिला।
सुख के साथी मिले हजारों ही, लेकिन
दुःख में साथ निभानेवाला नहीं मिला।
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“सुंदरी पिया की पिया को खोजती
भई बेहोश तू पिया कै-कै।
बहुत-सी पदमिनी खोजती मरि गई
रटत ही पिया पिया एक एकै।।
सती सब होति हैं जरत बिनु आगि से
कठिन कठोर वह नाहिं झांकै।
दास पलटू कहै सीस उतारि कै,
सीस पर नाचुं जो पिया ताकै।।’
बड़ा प्यारा वचन!
“सुंदरी पिया की पिया को खोजती
भई बेहोश तू पिया कै कै।’
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