Friday, 5 June 2015

अथातो भक्‍तिजिज्ञासा–भाग-2 (ऋषिवर शांड़िल्‍य) ओशो



मैं कोई मुल्क नहीं हूं कि जला दोगे मुझे
कोई दीवार नहीं हूं कि गिरा दोगे मुझे
कोई सरहद भी नहीं हूं कि मिटा दोगे मुझे
यह जो दुनिया का पुराना नक्शा
मेज पर तुमने बिछा रक्खा है
इसमें कावाक लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं
तुम मुझे इसमें कहा ढूंढते हो
मैं इक अरमान हूं दीवानों का
सख्तजां ख्वाब हूं कुचले हुए इंसानों का
लूट जब हद से सिवा होती है
जुल्म जब हद से गुजर जाता है
मैं अचानक किसी कोने में नजर आता हूं
किसी सीने से उभर आता हूं आज से पहले भी तुमने मुझे देखा होगा
कभी मशरिक में कभी मगरिब में
कभी शहरों में कभी गौवों में
कभी बस्ती में कभी जंगल में
मेरी तारीख ही तारीख है, जुगराफिया कोई भी नहीं
और तारीख भी ऐसी जो पढ़ाई तो जा नहीं सकती
लोग छुपछुप के पढ़ा करते हैं
कि मैं गालिब कभी मगलूब हुआ
कातिलों को कभी सूली पे चढ़ाया मैंने
और कभी आप ही मसलूब हुआ
फर्क इतना है कि कातिल मेरे मर जाते हैं
मैं न मरता हूं न मर सकता हूं
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लायी फिर इक लग्जिशेमस्ताना तेरे शहर में
फिर बनेंगी मस्जिदें मयखाना तेरे शहर में
आज फिर टूटेंगी तेरे घर की नाजुक खिड़कियां
आज फिर देखा गया दीवाना तेरे शहर में
जुर्म है तेरी गली से सर झुका कर लौटना
कुफ्र है पथराव से घबराना तेरे शहर में
शहनामे लिखे हैं खंडरात की हर इक इ ट पर
हर जगह है दफ्त इक अफसाना तेरे शहर में
कुछ कनीजें जो हरीमेनाज में हैं बारयाब
मांगती हैं जानोदिल नजराना तेरे शहर में
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कांपते ओठों पे पैमानेवफा क्या कहना
तुझको लाई है कहां लग्जिशेपा क्या कहना
मेरे घर में तेरे मुखड़े की जिया, क्या कहना
आज हर घर का दिया मुझको जलाना होगा
रूह चेहरों पे धुआ देख के शमाती है
झेंपीझेंपी सी मेरे लब पे हंसी आती है
तेरे मिलने की खुशी दर्द बनी जाती है
हमको हंसना है तो औरों को हंसाना होगा
सोईसोई हुई आंखों में छलकते हुए जाम
खोईखोई हुई नजरों में मुहब्बत का पयाम
लबेशीरीं पे मेरी तिश्नालबी का इनाम
जाने इनाम मिलेगा कि चुराना होगा
मेरी गर्दन पे तेरी संदली बांहों का ये हार
अभी आंसू थे इन आंखों में अभी इतना खुमार
मैं न कहता था मेरे घर में भी आएगी बहार
शर्त इतनी थी कि पहले तुझे आना होगा
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मैंने एक किरण देखी है
जो सविता है
मैंने एक हंसी सुनी है
जो कविता है
एक फूल देखा है मैंने
जो सचमुच कमल है
एक रंग देखा है मैंने
जो ठीक धवल है
सारे रंग जिसमें समाए हुए हैं
तपाए हुए सोने से अलग
हर तरह के होने से अलग
यह किरन यह हंसी
यह फूल यह रंग
मगर आनंद नहीं है मेरे जीवन का
क्योंकि मैं इसे
देखता रह गया हूं
छंद नहीं कर पाया हूं अभी।
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मरमरीमरमरी फूलों से उबरता हीरा
चांद की आच में दहके हुए सीमी मीनार
जेहने शायर से यह करता हुआ चश्मक पैहम
एक मलिका का जियापोशोफजाताब मजार
खुदबखुद फिर गये नजरों में बअंदाजेसवाल
वह जो रस्तों पे पड़े रहते हैं लाशों की तरह
खुश्क होकर जो सिमट जाते हैं बेरस आसाब
धूप में खोपडिया बजती हैं ताशों की तरह
दोस्त, मैं देख चुका ताजमहल
वापस चल
यह धड़कता हुआ गुंबद में दिलेशाहजंहा
यह दरोंबाम पे हंसता हुआ मलिका का शबाव
जगमगाता है हर इक तह से मजाकेतफरीक
और तारीख उढाती है मुहब्बत की नकाब
चांदनी और यह महल आलमेहैरत की कसम
दूध की नहर में जैसे उबाल आ जाये
ऐसे सैयाह की नजरों में छुपे क्या यह समा
जिसको फरहाद की किस्मत का खयाल आ जाये
दोस्त में, देख चुका ताजमहल
वापस चल
यह दमकती हुई चौखट यह तिलापोश कलस
इन्हीं जल्वों ने दिया कब्रपरस्ती को रिवाज
माहोअंजुम भी हुए जाते हैं मजबूरेसजूद
वाह आरामगहेमालिकएमाबूद मिजाज
दीदनी कस्त नहीं दीदनी तक्सीन है यह
रूएहस्ती पे धुआ, कब्र पे रक्सेअनवार
फैल जाये इसी रौजे का जो सिमटा दामन
कितने जानदार जनाजों को भी मिल जाये मजार
दोस्त, मैं देख चुका ताजमहल
वापस चल
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किसे यह होश सुराही कहा है जाम कहा
निगाहे पीरेमुगा से बरस रही है शराब
तुम डुबो। मीरा ने कहा है मीरा पी गयी बिन तौले। मीरा मगन भई अब क्या बोले? बिना तीले पी जाओ, लाभलोभ छोड़ो। वह लाभलोभ सब तौलना है। तराजू लिए बैठी है मुक्ति, वह अपना तौल रही है, कितना मिला, कितना नहीं मिला;इसलिए उदास है। दुर्भाग्य की बात है, लेकिन इस आश्रम में जितने भारतीय है, अधिकतम उदास हैं। जो गैरभारतीय हैं, वे प्रसन्न है, आनंदित है।
तेरा मैंखार तेरी मस्त निगाहों की कसम
साकिये बिन पिये मसरूर हुआ जाता है
यह ऐसी शराब है कि बिना पीये नशा चढ़ा सकता है। सिर्फ द्वार तुम्हारा खुला हो;खिड़कीदरवाजे खोलो। शकीलकूइरयेमंजिल से नाउम्मीद न हो
अब आयी जाती है मंजिल अब आयी जाती है
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मैं शोला थामगर यों राख के त्हे ने सर कुचला
कि इक सीलेसे पेचोखम में ढल जाना पड़ा मुझको
मैं बिजली थामगर वह बर्फआगी बदलिया छायी
कि दबकर उन चट्टानों में पिघल जाना पड़ा मुझको
मैं तूफां थामगर क्या कहिये उस तिश्ना समंदर को
कि सर टकरा के साहिल ही से रुक जाना पड़ा मुझको
मैं आंधी थामगर वह ख्वाबआलूदा फजा पायी
कि खुद अपनी ही ठोकर खाकर झुक जाना पड़ा मुझको
मगर अब इसका रोना क्या है, क्या था देखिये क्या हूं
मैं इक ठहरा हुआ शोला हूं इक सिकुड़ी हुई बिजली
असर नश्वोनुमा पर डाल ही देता है गहवारा
मैं एक सिमटा हुआ तूफौ हूं इक सहमी हुई आधी
मगर माबूदेबेदारी! कहीं फितरत बदलती है
धुएं को गर्म होने दे, भड़कना अब भी आता है
मेरी जानिब से इतमीनान रख, आतिशनवा रहबर
जरा बादल तो टकराए कड़कना अब भी आता है
थपेड़े ही, यूं ही पैहम थपेड़े, मौजेआजादी
बहा दूंगा मताएकिश्तेमहकूमी, बहा दूंगा
झकोले, ही यही बरहम झकोले सरसरेहस्ती
हिला दूंगा तजाहेजीस्त की चूलें, हिला दूंगा
मैं शोला थामगर यों राख के तूदे ने सर कुचला। मैं तो अंगारा था, लेकिन राख का ढेर इस तरह मेरे ऊपर सवार हो गया कि मैं भूल ही गया कि मैं कौन हूं। ऐसी तुम्हारी दशा है।
मैं शोला थामगर यों राख के तूदे ने सर कुचला
कि इक सीलेसे पेचोखम में ढल जाना पड़ा मुझको
मैं बिजली थामगर यह बर्फआगी बदलिया छायी
ये बर्फीली बदलिया आ गयीं, मैं तो बिजली था।
मगर यह बर्फआगी बदलिया छायी
कि दबकर उन चट्टानों में पिघल जाना पड़ा मुझको
मैं तूफां थामगर क्या कहिये उस तिश्ना समंदर को
प्यासे समंदर को क्या कहें!
मैं तूफां थामगर क्या कहिये उस तिश्ना समंदर को
कि सर टकराके साहिल ही से रुक जाना पड़ा मुझको
मैं आंधी थामगर वह ख्वाबआलूदा फजा पायी
ऐसी गहरी नींद आ गयी, ऐसी गहरी नींद की संभावना पायी थी
मैं आंधी थामगर वह ख्वाबआलूदा फजा पायी
कि खुद अपनी ही ठोकर खाकर झुक जाना पड़ा मुझको
मगर अब इसका रोना क्या है, क्या था, देखिए क्या हूं
मैं इक ठहरा हुआ शोला हूं इक सिकुड़ी हुई बिजली
असर नश्वोनुमा पर डाल ही देता है गहवारा
मैं इक सिमटा हुआ तूफां हूं इक सहमी हुई
आधी यही तुम हो, यही सब हैं।
मैं इक सिमटा हुआ तूफां हूं
इक सहमी हुई आधी
मगर माबूदेबेदारी!
मगर हे परमात्मा!
कहीं फितरत बदलती है
कहीं स्वभाव बदलता है!
मगर माबूदेबेदारी! कहीं फितरत बदलती है
तूफान तूफान रहता है, कितना ही सिकुड़ जाए। और अंगारा अंगारा रहता है, कितना ही राख में दब जाए। और आधी आधी रहती है, कितनी ही नींद में खो जाए।
मगर माबूदेबेदारी! कहीं फितरत बदलती है
धुएं को गर्म होने दे, भड़कना अब भी आता है
मेरी जानिब से इतमीनान रख, आतिशनवा रहबर
जरा बादल तो टकराए, कड़कना अब भी आता है
जरा मौके की तलाश है, ठीक समय ठीक अवसर, ठीक भूमि मिल जाए, ठीक सत्संग मिल जाए, तो अभी राख गिर जाए और अंगारा फिर प्रकट हो जाए। ठीक साथ मिल जाए ठीक हाथ मिल जाए, तो जो बिलकुल भूल गया है, जो बिलकुल विस्मृत हो गया है, वह पुन: याद आ जाए; फिर दीया जल जाए।
मेरी जानिब से इतमीनान रख आतिशनवा रहबर
जरा बादल तो टकराए, कड़कना अब भी आता है
मगर माबूदेबेदारी! कहीं फितरत बदलती है
धुएं को गर्म होने दे, भड़कना अब भी आता है
थपेड़े, ही, यूं ही पैहम थपेड़े, मौजेआजादी
थपेड़े आते रहें, आने दे;
स्वतंत्रता की लहरें आती रहें, आने दे
थपेड़े, ही, यूं ही पैहम थपेड़े, मौजेआजादी
बहा दूंगा मताएकिश्तीमहकूमी बहा दूंगा
आने दे स्वतंत्रता की लहरों को, इन थपेड़ों को आते रहने दे लगातार, तो यह जो दासता की संपदा है, यह जो कूड़ाकर्कट गुलामी का इकट्ठा हो गया है
बहा दूंगा मताएकिश्तीमहकूमी, बहा दूंगा
झकोले, ही यही बरहम झकोले, सरसरेहस्ती
जीवन की यह गर्म हवा आने दे।
हिला दूंगा तजाहेजीस्त की चूलें, हिला दूंगा
जीवन की असंगतियों की जो बुनियाद है, उसे हिला दूंगा।
हिला दूंगा तजाहेजीस्त की चूलें, हिला दूंगा
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मंजिलों के करीब होकर भी
मंजिलों की है जुस्तजू बाकी
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मैकदे पर तश्नगी छा जाएगी।
एक मैकश भी अगर प्यासा रहा
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जहां आंसू गिरे इक चश्मएजमजम वहां उबला
पड़ी बुनियाद काबे की, जहां मैंने जबीं रख दी
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कहीं अटका मन मेरा भी।
दिन डूबा, दिन के साथ जगत
का कोलाहल डूबा,
कुछ मतलब रखता है
अब तो मेरा भी मंसूबा,
तारे मेरे मन की गलियों
में दीप जलाते हैं।
मेरे भावों में रंग भरता
गोधूलि अंधेरा भी।
झुरमुठ में अटका चांद,
कहीं अटका मन मेरा भी।
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मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय, तुम आते तब क्या होता
मौन रात इस भांति कि जैसे
कोई गत वीणा पर बजकर
अभीअभी सोईखोई सी
सपनों में तारों सिर घर
और दिशाओं से प्रतिध्वनियां
जाग्रत सुधियोंसी आती हैं,
कान तुम्हारे तान कहीं से
यदि सुन पाते, तब क्या होता
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय, तुम आते तब क्या होता।
बैठ कल्पना करता हूं
पग चाप तुम्हारी
मग से आती,
रगरग से चेतनता खुलकर
आंसू के कणसी झर जाती
नमक डलीसा गल अपनापन
सागर में धूलमिलसा जाता
अपनी बाहों में भरकर, प्रिय,
कंठ लगाते तब क्या होता।
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय, तुम आते तब क्या होता।
प्रतीक्षा को मधुर बनाओ। प्रतीक्षा का माधुर्य समझो। इंतजार का मजा है। परमात्मा की याद है। परमात्मा की प्रतीक्षा है। पुकारों, रोओ, राह देखो। राह भी मधुर है। विरह भी प्यारा है। इस भाव को संजोओ। इस भाव को जगाओ। इस भाव में रचोपचो। और जितनी गहरी प्रतीक्षा होगी उतनी जल्दी घटना घट जाती है। और जीतना अधैर्य होगा, इतनी देर लग जाती है।
इस सूत्र को स्मरण रखना।
जितना अधैर्य, उतनी देर। जितना धैर्य, उतनी जल्दी।
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