जैसे प्रेम पहचाना जाता है वैसे ही
गुरु की आंख पहचानी जाती है।
जीवन एक श्लोक है जिसका सबसे सीधा
भाष्य प्यार है
प्राण-प्राण जिसकी धड़कन है, कंठ-कंठ जिसकी पुकार है
जीवन एक श्लोक है जिसका सबसे सीधा
भाष्य प्यार है।
प्रथम शब्द पर्याय जन्म का और अंतिम
संदर्भ मरण का
एक यही है मंत्र कि जिसको दोहराता
जग बार-बार है।
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किताबें पढ़ीं, मन का मंथन किया
खूब सोचा-समझा और जांचा
लेकिन ज्ञान का रास्ता मुझे रास
नहीं आता है।
बिल्कुल शुद्ध हिंदी में पुकारता
हूं
तब भी आराध्य पास नहीं आता है
चारों ओर से हारा हुआ
मैं पराजय का गीत गाता हूं
अपना टूटा हुआ अहंकार
तुम्हारे चरणों पर चढ़ाता हूं
अपना यह ज्ञान वापिस लो
और देवता, मुझे मुक्ति दो!
अपना यह ज्ञान वापिस लो, और देवता, मुझे मुक्ति दो!
प्रेम से तुम आए हो, प्रेम से तुम जाओगे। ज्ञान ने
तुम्हें अटकाया है। न तो ज्ञान के कारण तुम संसार में आए हो और न ज्ञान के कारण
तुम संसार से जा सकोगे। जिस कारण आए ही नहीं उस कारण जाओगे कैसे?
प्रेम लाता।
प्रेम ले जाता।
ज्ञान अटकाता।
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फुगां को वस्ल में आराम क्या हो
जुदाई का तसव्वर बंध रहा है
तब तो तुम सुख में भी आराम न पाओगे।
आनेवाले सुख की तो बात छोड़ो; आ गए
सुख में भी तुम आराम न पाओगे।
फुगां को वस्ल में आराम क्या हो
जुदाई का तसव्वर बंध रहा है।
तब तुम जानोगे : यह जो मिलन हुआ है, इसमें भी क्या खाक आराम, क्योंकि विदाई का क्षण करीब आ रहा
है। अभी तो जो मिला नहीं है उसकी आशा में जी रहे हो। और समझ जब आती है तो जो मिल
भी जाता है, उसमें
भी आशा नहीं रहती; उसकी
भी विदाई का क्षण करीब आए जा रहा है, जल्दी विदा होना पड़ेगा। रात आ गई, सुबह होगी। सुबह हो गई, सांझ होगी। जिंदगी बदलती चली जाती
है। यहां कोई चीज थिर नहीं है। सब बदल रहा है। इस सारे बदलते हुए वर्तुल के बीच
में सिर्फ एक चीज थिर है–समाधि, चैतन्य, साक्षी। उस एक को पा लो, तो तुमने सब पा लिया। उस एक को
गंवाया तो सब गंवाया।
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