Friday, 5 June 2015

अजहू चेत गवांर (संत पलटूदास) प्रवचन–11

 मन मिहीन कर लीजिए, जब पिउ लागै हाथ।।
जब पिउ लागै हाथ, नीच ह्वै सब से रहना।
पच्छापच्छी त्याग उंच बानी नहिं कहना।।
मान-बड़ाई खोय खाक में जीते मिलना।
गारी कोउ दै जाय छिमा करि चुपके रहना।।
सबकी करै तारीफ, आपको छोटा जान।
पहिले हाथ उठाय सीस पर सबकी आनै।।
पलटू सोइ सुहागनी, हीरा झलकै माथ।
मन मिहीन कर लीजिए, जब पिउ लागै हाथ ।।16।।

पानी काको देइ प्यास से मुवा मुसाफिर।।
मुवा मुसाफिर प्यास, डोर ओ लुटिया पासै।
बैठ कुवां की जगत, जतन बिनु कौन निकासै।।
आगै भोजन धरा थारि में खाता नाहीं।
भूख-भूख करै सोर, कौन डारै मुखमाहीं।।
दीया बाती तेल आगि है नाहिं जरावै।
खसम खोया है पास, खसम को खोजन जावै।।
पलटू डगरा सूध, अटकिकै परता गिर-गिर।
पानी काको देइ प्यास से मुवा मुसाफिर।।17।।

संत-चरन को छोड़िकै, पूजत भूत बैताल।।
पूजत भूत बैताल, मुए पर भूतइ होई।
जेकर जहवां जीव, अंत को होवै सोई।।
देव पितर सब झूठ, सकल यह मन की भ्रमना।
यही भरम में पड़ा, लगा है जीवन-मरना।।
देई-देवा सेव परमपद केहिने पावा।
भैरों दुर्गा सीव बांधिकै नरक पठावा।।
पलटू अंत घसीटिहैं, चोटी धरि-धरि काल।  
संत-चरन को छोड़िकै, पूजत भूत बैताल।।18।।
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प्यार करना तो बहुत आसान, प्रेयसी,
अंत तक उसका निभाना ही कठिन है,
है बहुत आसान ठुकराना किसी को,
है मुश्किल भूल भी जाना किसी को,
प्राण दीपक बीच सांसों की हवा में
याद की बाती जलाना ही कठिन है
प्यार करना तो बहुत आसान, प्रेयसी,
अंत तक उसका निभाना ही कठिन है।
स्वप्न बन क्षण भर किसी स्वप्नि लमयन के
ध्यान मंदिर में किसी मीरां मगन के
देवता बनना नहीं मुश्किल, मगर
सब भार पूजा का उठाना ही कठिन है
प्यार करना तो बहुत आसान, प्रेयसी,
अंत तक उसका निभाना ही कठिन है
चीख चिल्लाते सुनाते विश्वभर को
पार कर लेते सभी बीहड़ डगर को,
विष-बुझे पंथ पर कटु कंटकों की
हर चुभन पर मुस्कराना ही कठिन है
प्यार करना तो बहुत आसान, प्रेयसी,
अंत तक उसका निभाना ही कठिन है।
छोड़ नैया वायु-धारा के सहारे
हैं सभी ही सहज लग जाते किनारे
धार के विपरीत लेकिन नाव खे कर
हर लहर को तट बनाना ही कठिन है
प्यार करना तो बहुत आसान, प्रेयसी,
अंत तक उसका निभाना ही कठिन है।
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सूनी-सूनी सांस की सितार पर
गीले-गीले आंसुओं के तार पर
एक गीत सुन रही है जिंदगी
एक गीत गा रही है जिंदगी
चढ़ रहा है सूर्य उधर, चांद इधर ढल रहा है
झर रही है रात यहां, प्रात वहां खिल रहा है
जी रही है एक सांस, एक सांस मर रही है
बुझ रहा है एक दीप, एक दीप जल रहा
इसलिए मिलन-विरह के विहान में,
एक दीया जला रही है जिंदगी, एक दीया बुझा रही है जिंदगी।
रोज फूल कर रहा है धूल के लिए सिंगार
और डालती है रोज धूल फूल पर अंगार
कूल के लिए लहर विकल मचल रही है
किंतु कर रहा है कूल बूंद-बूंद पर प्रहार,
इसलिए घृणा-विदग्ध प्रीति को
एक क्षण हंसा रही है जिंदगी, एक क्षण रुला रही है जिंदगी।
एक दीप के लिए पतंग कोटि मिट रहे हैं
एक मीत के लिए असंग मीत छूट रहे हैं,
एक बूंद के लिए गले ढले हजार मेघ
एक अश्रु से सजी सौ सपन लिपट रहे,
इसलिए सृजन विनाश संधि पर
एक घर बसा रही है जिंदगी, एक घर मिटा रही है जिंदगी।
सो रहा है आसमान, रात रो रही है खड़ी
जल रही बहार कली नींद में जड़ी पड़ी
धर रही है उम्र की उमंग कामना शरीर
टूट कर बिखर रही है यह सांस की लड़ी-लड़ी
इसलिए चिंता की धूप-छांह में
एक पल सुला रही है जिंदगी, एक पल जगा रही है जिंदगी।
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