Friday, 5 June 2015

अजहू चेत गवांर (संत पलटू दास) प्रवचन–9

सोई सती सराहिए, जरै पिया के साथ।।जरै पिया के साथ, सोइ है नारि सयानी।रहै चरन चित लाय, एक से और न जानी।।जगत् करै उपहास, पिया का संग न छोड़ै।प्रेम की सेज बिछाय, मेहर की चादर ओढ़ै।ऐसी रहनी रहै तजै जो भोग-विलासा।मारै भूख-पियास याद संग चलती स्वासा।।रैन-दिवस बेरोस पिया के रंग में राती।तन की सुधि है नाहिं, पिया संग बोलत जाती।।पलटू गुरु परसाद से किया पिया को हाथ।सोई सती सराहिए, जरै पिया के साथ।। तुझे पराई क्या परी अपनी आप निबेर।।अपनी आप निबेर, छोड़ि गुड़ विस को खावै।कूवां में तू परै, और को राह बतावै।।औरन को उजियार, मसालची जाय अंधेरे।त्यों ज्ञानी की बात, मया से रहते घेरे।।बेचत फिरै कपूर, आप तो खारी खावै।घर में लागी आग, दौड़ के घूर बुतावै।पलटू यह सांची कहै, अपने मन को फेर।तुझे पराई क्या परी, अपनी और निबेर।। पलटू नीच से ऊंच भा, नीच कहै ना कोय।।नीच कहै ना कोय, गए जब से सरनाई।नारा बहिके मिल्यो गंग में गंग कहाई।।पारस के परसंग, लोह से कनक कहावै।आगि मंहै जो परै, जरै आगइ होइ जावै।।राम का घर है बड़ा, सकल ऐगुन छिप जाई।जैसे तिल को तेल फूल संग बास बसाई ।।भजन केर परताप तें, तन मन निर्मल होय।पलटू नीच से ऊंच भा, नीच कहै न कोय।।……………………………………………………………………….
गंधराज यहां कहां?
खुश्बू भर छायी हैहवा की लहरियों के संग तैर आयी है।फलों के संपुट में सधी नहींसीमा के घेरे में बंधी नहींदूर-दूर फैला अवकाश नाप लायी हैगंधराज यहां कहां ?
खुश्बू भर छायी है।………………………………………………
किसको पाती लिखूं और किस परदेसी का पंथ निहारूं?
कैसे मन बहलाऊं? मेरी बगिया सूनी, आंगन सूनामेरे साथी केवल दो हैं: प्यासी धरती, गगन उदासाराह निहारें व्याकुल आंखें; मन भी प्यासा, तन भी प्यासालेकिन मेरा प्राण-पपीहा कैसे अपन पी को टेरे?
आशाओं के बादल बीते, सपनों का सावन सूनाचारों ओर पड़े हैं लाखों मिट्टी के बेजान खिलौने,
सारी रात बुलाने मुझको कितने ही बेशर्म बिछौने,
अकसर माकी थे बिंदिया रो-रोकर मुझको यूं कहती है
किस पर मान करूं सखी, मेरे बिछुवे सूने कंगन सूनाहै पूनम की रात मगर मैं कैसे पग में पायल बांधूंकिसकी मुरली की धुन सुन लूं, किस कान्हा पर तन-मन वारूंयमुना के तट पर चिर-परिचित बंसी-वट भी मौन खड़ा हैकैसे रास रचाऊं, मेरी सांसों का वृंदावन सूना!किसको पाती लिखूं और किस परदेसी का पंथ निहारूं?
कैसे मन बहलाऊं? मेरी बगिया सूनी, मेरा आंगन सूनापुरवाई तन को झुलसाए, खिलता चांद देख अलसाऊंलहरों का गीत सताए, हंसते फूल देख मुरझाऊं,
एकाकीपन से घबरा कर दोनों नयन मूंद लूं, लेकिनकिसका रूप निहारूं? मेरे अंतरतम का दर्पन सूनाकिस पर मान करूं सखी, मेरे बिछुवे सूने, कंगन सूनाहै पूनम की रात, मगर मैं कैसे पग में पायल बांधूं?
किसकी मुरली की धुन सुन लूं, किस कान्हा पर तन-मन वारूं?
यमुना के तट पर चिर-परिचित बंसी-वट भी मौन खड़ा हैकैसे रास रचाऊं, मेरी सांसों का वृंदावन सूनाकिसका रूप निहारूं, मेरे अंतरतम का दर्पन सूना!……………………………………………………………………………….
यह आना कोई आना है कि बस रसमन चले आए।यह मिलना खाक मिलना है कि दिल से दिल नहीं मिलता।…………………………………………………………………………….
वहां कितनों को तख्तोत्ताज का उर्मां है, क्या कहिए।जहां साइल को अकसर कासा-ए-साइल नहीं मिलता।वहां कितनों को तख्तोत्ताज का उर्मां है, क्या कहिए।…………………………………………………………………….
शिकस्ता-पा को मुज्दा, खस्तगाने-राह को मुज्दाकि रहबर को सुरागे-जादहे-मंजिल नहीं मिलता।……………………………………………………………………

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