मेरी हस्ती का मुहब्बत में फना हो
जाना
वो मेरा नाजिस-ए-अरबाग-ए-वफा हो
जाना
उनको हम जिंदा-ए-जावेद कहा करते हैं
जानते हैं जो मुहब्बत में फना हो
जाना।
केवल वे ही लोग अमरत्व को उपलब्ध
होते हैं।…..
उनको हम जिंदा-ए-जावेद कहा करते हैं
जानते हैं जो मुहब्बत में फना हो
जाना।
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हुआ आज दुश्मन जमाना मेरा
मेरी साफगोई खता हो गई
ढले गम सभी अशआर में मेरे
सजा मेरे हक में जजा हो गई।
हुआ आज दुश्मन जमाना मेरा
मेरी साफगोई खता हो गई।
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तेरे जब्र की इंतिहा ही नहीं
मेरे सब्र की इंतिहा हो गई।
–“तेरे अत्याचार का कोई अंत ही नहीं
है।’ तुम्हें
ऐसे ही लगता है।
तेरे जब्र की इंतिहा ही नहीं
मेरे सब्र की इंतिहा हो गई।
–” और मेरा संतोष चुका जा रहा है, मेरा धीरज चुका जा रहा है और तेरे
अत्याचार का कोई अंत नहीं’ ऐसा
तुम्हें लगता है।
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नहीं छोड़ पाया मैं अपनी खुदी
हां अकसर यह मुझसे खता हो गई।
बस, लेकिन असली खता एक है, भूल एक है।
नहीं छोड़ पाया मैं अपनी खुदी
हां, अकसर यह मुझसे खता हो गई।
मगर वही खता, वही भूल बड़ी से बड़ी भूल है, सब भूलों की भूल है। एक खुदी चली
जाए, एक
अहंकार चला जाए, फिर
तो दुःख भी सौभाग्य है। और अहंकार बना रहे तो सुख भी सौभाग्य नहीं है। अहंकार चला
जाए तो कांटे भी फूल हैं। और अहंकार बना रहे तो फूल भी कांटे हो जाते हैं।
आज
इतना ही।
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