सील की अवध, सनेह का जनकपुर,
सत्त की जानकी, ब्याह कीता।
मनहिं दुलहा बने आप रघुनाथजी,
ज्ञान के मौर सिर बांधि लीता।।
प्रेम-बारात जब चली है उमंगिकै,
छिमा बिछाय जनबांस दीता।
भूप अहंकार के मान को मर्दिक,
थीरता-धनुष को जाय जीता।।9।।
बाम्हन तो भए जनेउ को पहिरि कै,
बाम्हनी के गले कछु नाहिं देखा।
आधी सुद्रिनि रहै घर के बीच में,
करै, तुम खाहु यह कौन लेखा।।
सेख की सुन्नति से मुसलमानी भई,
सेखानी को नाहिं तुम कहौ सेखा।
आधी हिंदुइन रहै घरै बीच में,
पलटू अब दुहुन के मारु मेखा।।10।।
तुरुक लै मुर्दा को कब्र में गाड़ते,
हिंदू लै आग के बीच जारै।
पूरब वै गए हैं वै पच्छूं को,
दोऊ बेकूफ ह्वै खाक टारैं।।
वै पूजैं पत्थर को, कबर वै पूजते,
भटककै मुए दैं सीस मारैं।
दास पलटू कहै, साहिब है आप में
अपनी समझ बिनु दोउ हारैं।।11।।
संतन के बीच में टेढ़ रहें
मठ बांधि संसार रिझावते हैं।
दस बीस सिष्य परमोधि लिया,
सबसे वह गोड धरावते हैं।।
संतन की बानी काटिके, जी
जोरि-जोरिके आप बनावते हैं।
पलटू कोस चारि-चारि के गिर्द में, जी
सोइ चक्रवर्ती कहलावते हैं।।12।।
……………………………………………………………….
आज मौसम में वो एजाजे-मसीहाई है
दिल ने बीमारी-ए-हिजरा से सिफा पायी है
दिल की धड़कन से हम आहंग हैं यूं मौजे नसीम
जैसे उस शोख का पैगामे वफा लायी है।
जिस पर हसरत कदा-ए-यास का होता था गुमां
सब वो दिल मरकजे सद जलवाए रानायी है।
आयी है मुजदार अनवारे मसर्रत लेकर
ये जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या क्या
दिल को क्या क्या हब से अंजुमन आरायी है।
भक्त तो कहता है : बसंत छाया है! उसे कहां विवाद है! भक्त तो कहता हैः बसंत छाया है। वियोग का रोग मिट गया। आज मौसम में वो एजाजे मसीहाई है। आज तो वातावरण के कण-कण में जैसे पैगंबर मौजूद हुआ है, परमात्मा का संदेश आया है।
दिल ने बीमारी-ए-हिजरां से सिफा पायी है।
वियोग का रोग समाप्त हो गया, मिलन का स्वास्थ्य घटा है।
दिल की धड़कन से हम आहंग हैं यूं मौजे नसीम
और दिल धड़क रहा है आनंद से। हवाओं में बड़ी उत्फुल्लता है।
जैसे उस शोख का पैगामे वफा लायी है।
उस प्यारे की खबर लेकर हर हवा की लहर आ रही है।
जिस पै हसरत कदा-ए-यास का होता था गुमां
अब वो दिल मरकजे सद जलवाए रानायी है।
जहां सोचते थे कि कभी फूल न खिलेंगे, उस मरुस्थल में आज फूल खिले हैं। जहां संदेह होने लगा था कि रात कभी न टूटेगी, वहां सुबह हुआ है। जहां सोचते थे उदासी ही उदासी ही उदासी रहेगी, वहां आज आनंद उत्सव है।
आयी है मुजदाए अनवारे मर्सरत लेकर
यह जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है।
और हम तो सोचते थे यह अंधेरी काली घटा है, आज यह बात नहीं है। आज यह मस्त घटा है। और उल्लास और प्रकाश के पुंज की शुभ्र सूचना लेकर आयी है। इस अंधेरी घटा के पार भी सूरज झांक रहा है।
आयी है मुजदाए अनवारे मर्सरत लेकर।
यह खबर लेकर आयी है–उल्लास की, प्रकाश के पुंज की–कि सूरज पीछे आता ही है।
यह जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या-क्या!
कहां फुर्सत है प्रेमी को कि विवाद में पड़े!
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या-क्या
दिल को क्या-क्या हब्से अंजुमन आरायी है
यहां तो दिल में नृत्य हो रहा है। यहां तो शराब के चश्मे बह रहे हैं। यहां तो गीतों की झड़ी लगी है।
दिल को क्या क्या हब्से अंजुमन आरायी है।
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या क्या!
यहां तो कैसे प्यारे सपनों का जन्म हुआ है, यहां किसको फुर्सत है! लेकिन फिर भी भक्तों को भी कुछ कठोर बातें कहनी पड़ी हैं–तुम्हारे कारण। क्योंकि तुम ऐसी जगह उलझ गए हो कि अगर तुम्हें वहां से न तोड़ा जाए तो तुम ठीक जगह पहुंच ही न सकोगे।
दिल है वज्द में सर-सार बेखुदी में रक्सां है
टीस इश्क की जब से जख्माए रंगे जां है,
आज जाम में साकी आग जाए मैं भर दे,
दिल गुदाजे पिनहा कि लज्जतों का ख्वाहां है
जो टूट जाता है हर खिजां की योरिश का,
देख फिर गुलिस्तां में जोर से बहारां है
आज उलट गया शायद शोलाए नकाब उनका
आज जो भी जर्रा है रक्से मेहरे ताबां है,
मौजे नहकते गुल में जोरों गम का है आलम
आज सहने गुलशन में कौन यह खरामां है
बेसबब नहीं जाहिद चश्मे दिल की मदहोशी
हर अदा सितमगर की कैफियत बदामां है
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा! प्रेम की दुनिया में कहां कोई मंदिर है, कहां कोई मस्जिद है!
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है।
न यहां कोई काफिर है और न यहां कोई मुसलमान; यहां तो सिर्फ मुहब्बत है।
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा!
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है
धन्यवाद दो मुझे कि बात ही में तुम्हें ऐसी जगह ले आया, जहां मधुशाला है।
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
संतों ने अगर कभी खंडन किया तो सिर्फ इसलिए कि तुम्हें तोड़ लें उन जगहों से, जो गलत हैं। खंडन किया तो मंडन के लिए। अगर किसी बात को गलत कहा तो सिर्फ इसलिए कि ताकि सही तुम्हें दिखायी पड़ सके। गलत को गलत की तरह देख ले पर सही को देखने की सुविधा बनती है। अन्यथा भक्तों को कोई विवाद नहीं है, कोई शास्त्रार्थ नहीं है। उन्हें कोई रस नहीं है। न मंदिर में कोई झगड़ा है; न मस्जिद से कोई। न उन्हें फिक्र है कि तुम काफिर हो, हिंदू हो कि मुसलमान हो, ईमानदार हो–उन्हें तो सिर्फ एक ही फिक्र है और एक ही उनका लगाव है और एक ही उनका संदेह है : मुहब्बत। तुम्हारे जीवन में प्रेम है तो बस ठीक है। मस्जिद में रहो तो ठीक, मंदिर में रहो तो ठीक। इतना ही खयाल रहे कि प्रेम में रहो। और तुम्हारे जीवन में आनंद है, परमात्मा के प्रेम की मदहोशी है, तो बस ठीक। फिर तुम काबा जाओ कि कैलाश, कुछ अंतर नहीं पड़ता। फिर तुम कहीं भी रहो, कैसे भी रहो, किसी वेश में, किसी देश में, किसी रंग-ढंग में–सब चलेगा। मगर दो बातें खयाल कर लेना : परमात्मा के लिए प्रेम हो और परमात्मा के लिए आनंद हो। नाचता हुआ प्रेम हो। उत्फुल्ल प्रेम हो। कमल की तरह खिला हुआ प्रेम हो। फिर सब अपने-आप हो जाता है।
प्रेम के इन वचनों को अगर तुम समझते रहे समझते रहे, तो धीरे-धीरे मधुशाला के करीब निश्चित ही आ जाओगे।
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा!
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
आज इतना ही।
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सत्त की जानकी, ब्याह कीता।
मनहिं दुलहा बने आप रघुनाथजी,
ज्ञान के मौर सिर बांधि लीता।।
प्रेम-बारात जब चली है उमंगिकै,
छिमा बिछाय जनबांस दीता।
भूप अहंकार के मान को मर्दिक,
थीरता-धनुष को जाय जीता।।9।।
बाम्हन तो भए जनेउ को पहिरि कै,
बाम्हनी के गले कछु नाहिं देखा।
आधी सुद्रिनि रहै घर के बीच में,
करै, तुम खाहु यह कौन लेखा।।
सेख की सुन्नति से मुसलमानी भई,
सेखानी को नाहिं तुम कहौ सेखा।
आधी हिंदुइन रहै घरै बीच में,
पलटू अब दुहुन के मारु मेखा।।10।।
तुरुक लै मुर्दा को कब्र में गाड़ते,
हिंदू लै आग के बीच जारै।
पूरब वै गए हैं वै पच्छूं को,
दोऊ बेकूफ ह्वै खाक टारैं।।
वै पूजैं पत्थर को, कबर वै पूजते,
भटककै मुए दैं सीस मारैं।
दास पलटू कहै, साहिब है आप में
अपनी समझ बिनु दोउ हारैं।।11।।
संतन के बीच में टेढ़ रहें
मठ बांधि संसार रिझावते हैं।
दस बीस सिष्य परमोधि लिया,
सबसे वह गोड धरावते हैं।।
संतन की बानी काटिके, जी
जोरि-जोरिके आप बनावते हैं।
पलटू कोस चारि-चारि के गिर्द में, जी
सोइ चक्रवर्ती कहलावते हैं।।12।।
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आज मौसम में वो एजाजे-मसीहाई है
दिल ने बीमारी-ए-हिजरा से सिफा पायी है
दिल की धड़कन से हम आहंग हैं यूं मौजे नसीम
जैसे उस शोख का पैगामे वफा लायी है।
जिस पर हसरत कदा-ए-यास का होता था गुमां
सब वो दिल मरकजे सद जलवाए रानायी है।
आयी है मुजदार अनवारे मसर्रत लेकर
ये जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या क्या
दिल को क्या क्या हब से अंजुमन आरायी है।
भक्त तो कहता है : बसंत छाया है! उसे कहां विवाद है! भक्त तो कहता हैः बसंत छाया है। वियोग का रोग मिट गया। आज मौसम में वो एजाजे मसीहाई है। आज तो वातावरण के कण-कण में जैसे पैगंबर मौजूद हुआ है, परमात्मा का संदेश आया है।
दिल ने बीमारी-ए-हिजरां से सिफा पायी है।
वियोग का रोग समाप्त हो गया, मिलन का स्वास्थ्य घटा है।
दिल की धड़कन से हम आहंग हैं यूं मौजे नसीम
और दिल धड़क रहा है आनंद से। हवाओं में बड़ी उत्फुल्लता है।
जैसे उस शोख का पैगामे वफा लायी है।
उस प्यारे की खबर लेकर हर हवा की लहर आ रही है।
जिस पै हसरत कदा-ए-यास का होता था गुमां
अब वो दिल मरकजे सद जलवाए रानायी है।
जहां सोचते थे कि कभी फूल न खिलेंगे, उस मरुस्थल में आज फूल खिले हैं। जहां संदेह होने लगा था कि रात कभी न टूटेगी, वहां सुबह हुआ है। जहां सोचते थे उदासी ही उदासी ही उदासी रहेगी, वहां आज आनंद उत्सव है।
आयी है मुजदाए अनवारे मर्सरत लेकर
यह जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है।
और हम तो सोचते थे यह अंधेरी काली घटा है, आज यह बात नहीं है। आज यह मस्त घटा है। और उल्लास और प्रकाश के पुंज की शुभ्र सूचना लेकर आयी है। इस अंधेरी घटा के पार भी सूरज झांक रहा है।
आयी है मुजदाए अनवारे मर्सरत लेकर।
यह खबर लेकर आयी है–उल्लास की, प्रकाश के पुंज की–कि सूरज पीछे आता ही है।
यह जो गर्दूं पे स्यह मस्त घटा छायी है
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या-क्या!
कहां फुर्सत है प्रेमी को कि विवाद में पड़े!
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या-क्या
दिल को क्या-क्या हब्से अंजुमन आरायी है
यहां तो दिल में नृत्य हो रहा है। यहां तो शराब के चश्मे बह रहे हैं। यहां तो गीतों की झड़ी लगी है।
दिल को क्या क्या हब्से अंजुमन आरायी है।
रक्स करते हैं तस्सवर में नजारे क्या क्या!
यहां तो कैसे प्यारे सपनों का जन्म हुआ है, यहां किसको फुर्सत है! लेकिन फिर भी भक्तों को भी कुछ कठोर बातें कहनी पड़ी हैं–तुम्हारे कारण। क्योंकि तुम ऐसी जगह उलझ गए हो कि अगर तुम्हें वहां से न तोड़ा जाए तो तुम ठीक जगह पहुंच ही न सकोगे।
दिल है वज्द में सर-सार बेखुदी में रक्सां है
टीस इश्क की जब से जख्माए रंगे जां है,
आज जाम में साकी आग जाए मैं भर दे,
दिल गुदाजे पिनहा कि लज्जतों का ख्वाहां है
जो टूट जाता है हर खिजां की योरिश का,
देख फिर गुलिस्तां में जोर से बहारां है
आज उलट गया शायद शोलाए नकाब उनका
आज जो भी जर्रा है रक्से मेहरे ताबां है,
मौजे नहकते गुल में जोरों गम का है आलम
आज सहने गुलशन में कौन यह खरामां है
बेसबब नहीं जाहिद चश्मे दिल की मदहोशी
हर अदा सितमगर की कैफियत बदामां है
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा! प्रेम की दुनिया में कहां कोई मंदिर है, कहां कोई मस्जिद है!
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है।
न यहां कोई काफिर है और न यहां कोई मुसलमान; यहां तो सिर्फ मुहब्बत है।
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा!
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है
धन्यवाद दो मुझे कि बात ही में तुम्हें ऐसी जगह ले आया, जहां मधुशाला है।
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
संतों ने अगर कभी खंडन किया तो सिर्फ इसलिए कि तुम्हें तोड़ लें उन जगहों से, जो गलत हैं। खंडन किया तो मंडन के लिए। अगर किसी बात को गलत कहा तो सिर्फ इसलिए कि ताकि सही तुम्हें दिखायी पड़ सके। गलत को गलत की तरह देख ले पर सही को देखने की सुविधा बनती है। अन्यथा भक्तों को कोई विवाद नहीं है, कोई शास्त्रार्थ नहीं है। उन्हें कोई रस नहीं है। न मंदिर में कोई झगड़ा है; न मस्जिद से कोई। न उन्हें फिक्र है कि तुम काफिर हो, हिंदू हो कि मुसलमान हो, ईमानदार हो–उन्हें तो सिर्फ एक ही फिक्र है और एक ही उनका लगाव है और एक ही उनका संदेह है : मुहब्बत। तुम्हारे जीवन में प्रेम है तो बस ठीक है। मस्जिद में रहो तो ठीक, मंदिर में रहो तो ठीक। इतना ही खयाल रहे कि प्रेम में रहो। और तुम्हारे जीवन में आनंद है, परमात्मा के प्रेम की मदहोशी है, तो बस ठीक। फिर तुम काबा जाओ कि कैलाश, कुछ अंतर नहीं पड़ता। फिर तुम कहीं भी रहो, कैसे भी रहो, किसी वेश में, किसी देश में, किसी रंग-ढंग में–सब चलेगा। मगर दो बातें खयाल कर लेना : परमात्मा के लिए प्रेम हो और परमात्मा के लिए आनंद हो। नाचता हुआ प्रेम हो। उत्फुल्ल प्रेम हो। कमल की तरह खिला हुआ प्रेम हो। फिर सब अपने-आप हो जाता है।
प्रेम के इन वचनों को अगर तुम समझते रहे समझते रहे, तो धीरे-धीरे मधुशाला के करीब निश्चित ही आ जाओगे।
आशिकी की दुनिया में दैर क्या, हरम कैसा!
यहां फकत मुहब्बत है, कुफ्र है न ईमां है
दाद दे मुझे वाइज तुझको बातों बातों में
जिस जगह पे ले आया कूए मै फरोसां है।
आज इतना ही।
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