जैसा कुछ चाहा था,
वैसा तो हुआ नहीं!
शब्दों की भीड़ और हम,
जलते संबंध और भ्रम।
चिटका है शीशा क्यों?
हमने तो छुआ नहीं।
जीने को खींचतान।
कहने को स्वाभिमानी।
आच बहुत है लेकिन,
आस -पास धुआ नहीं।
रीतापन अपना है
बाकी सब सपना है,
डूबे हैं जिसमें हम,
शायद वह कुआ नहीं जीवन को रीता-रीता अनुभव न करोगे तो क्या करोगे? अगर अस्वाभाविक ढंग से जीने की कोशिश की तो यही होगा-
रीतापन अपना है,
बाकी सब सपना है।
डूबे हैं जिसमें हम,
शायद वह कुआ नहीं।
जीवन में डूबो, जीवन के कुएं में डूबो। डरो मत! डर – डर कर कोई परमात्मा तक नहीं पहुंचता। केवल साहसी, दुस्साहसी उस तक पहुंचते हैं। और देन न करो।
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आज मानव का सुनहला प्राप्त है
आप विस्मृत का मृदुल आघात है
आज अलसित और मादकता भरे
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है
मानिनी हंसकर हृदय को खोल दो!
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो!
आज सौरभ में भरा उच्छवास है
आप कम्पित – भ्रमित सा वातास है
आज शतदल पर मुदित -सा झूलता
कर रहा अठखेलियां हिमहास है
लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड़ दो!
आज मिल लो, मान करना छोड़ दो!
आज मधुकर कर रहा मधुपान है
आज कलिका दे रही रसदान है
आज बौरों पर विकल बौरी हुई
कोकिला करती प्रणय का गान है
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो!
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो!
आज नयनों में भरा उत्साह है;
आज उर में एक पुलकित चाह है
आज श्वासों में उमड़कर बह रहा
प्रेम का स्वच्छंद मुक्त प्रवाह है
डूब जायें देवि, हम -तुम एक हो!
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो!
अभी तो प्रेम का निवेदन करो। अभी तो कोई द्वार खटखटाओ। अभी तो प्रेमी खोजो, प्रेयसी खोजो। अभी तो इस जगत को जियो। और त्वरा से जियो! जितनी त्वरा से जीयोगे उतने ही जल्दी इससे मुक्त होने की घड़ी आ जाएगी। जितनी अखंडता और समग्रता से जीयोगे उतना ही शीघ्र ब्रह्मचर्य का फूल खिलेगा। तुम्हारे खिलाने से नहीं, अपने – आप खिलेगा। तुम एक दिन पाओगे खिल गया। लक्ष्य नहीं है ब्रह्मचर्य-परिणाम है।
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वैसा तो हुआ नहीं!
शब्दों की भीड़ और हम,
जलते संबंध और भ्रम।
चिटका है शीशा क्यों?
हमने तो छुआ नहीं।
जीने को खींचतान।
कहने को स्वाभिमानी।
आच बहुत है लेकिन,
आस -पास धुआ नहीं।
रीतापन अपना है
बाकी सब सपना है,
डूबे हैं जिसमें हम,
शायद वह कुआ नहीं जीवन को रीता-रीता अनुभव न करोगे तो क्या करोगे? अगर अस्वाभाविक ढंग से जीने की कोशिश की तो यही होगा-
रीतापन अपना है,
बाकी सब सपना है।
डूबे हैं जिसमें हम,
शायद वह कुआ नहीं।
जीवन में डूबो, जीवन के कुएं में डूबो। डरो मत! डर – डर कर कोई परमात्मा तक नहीं पहुंचता। केवल साहसी, दुस्साहसी उस तक पहुंचते हैं। और देन न करो।
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आज मानव का सुनहला प्राप्त है
आप विस्मृत का मृदुल आघात है
आज अलसित और मादकता भरे
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है
मानिनी हंसकर हृदय को खोल दो!
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो!
आज सौरभ में भरा उच्छवास है
आप कम्पित – भ्रमित सा वातास है
आज शतदल पर मुदित -सा झूलता
कर रहा अठखेलियां हिमहास है
लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड़ दो!
आज मिल लो, मान करना छोड़ दो!
आज मधुकर कर रहा मधुपान है
आज कलिका दे रही रसदान है
आज बौरों पर विकल बौरी हुई
कोकिला करती प्रणय का गान है
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो!
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो!
आज नयनों में भरा उत्साह है;
आज उर में एक पुलकित चाह है
आज श्वासों में उमड़कर बह रहा
प्रेम का स्वच्छंद मुक्त प्रवाह है
डूब जायें देवि, हम -तुम एक हो!
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो!
अभी तो प्रेम का निवेदन करो। अभी तो कोई द्वार खटखटाओ। अभी तो प्रेमी खोजो, प्रेयसी खोजो। अभी तो इस जगत को जियो। और त्वरा से जियो! जितनी त्वरा से जीयोगे उतने ही जल्दी इससे मुक्त होने की घड़ी आ जाएगी। जितनी अखंडता और समग्रता से जीयोगे उतना ही शीघ्र ब्रह्मचर्य का फूल खिलेगा। तुम्हारे खिलाने से नहीं, अपने – आप खिलेगा। तुम एक दिन पाओगे खिल गया। लक्ष्य नहीं है ब्रह्मचर्य-परिणाम है।
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