वफा के पर्दे में क्या—क्या जफाएं देखी हैं
निगाहे—लुक पर अब मुझको एतमाद नहीं
मुझे यकीं है मगर दिल को क्या करूं कि
उसे
किसी के वादा—ए—फर्दा पे एतमाद नहीं
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दिल को बना हरम—नशीं, तौफे—हरम नहीं, न हो
मानीए—बदगी समझ, सूरते—बदगी न देख
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कोई रिंदी की इस जफें—नजर की वुसअतें देखे
हर इक टूटे हुए सागर को जामे—जम समझते हैं
निसारे—शमअ होकर बज्य में कहते हैं परवाने—
कोई समझे न समझे, हम मआले—गम समझते हैं
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नजअ में बहुत धीमी जुंबिशें नफस की हैं
है करीब मंजिल के आज कारवां अपना
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शबो—रोज मोहब्बत सीने में पोशीदा अगर्चो
है,
फिर भी
आहों में लरजते रहते हैं, अश्कों से नुमायां होते हैं
रुकते हैं कहीं दीवारों से, थमते हैं कहीं जंजीरों से
इजहारे—जुनू पर आमादा जब कैदिए—जिदा होते हैं
जी भर के तड़प लेने दे उन्हें, रह—रह के जरा जलने दे उन्हें
ऐ शमअ की लौ! ये परवाने इक रात के मेहमा
होते हैं
रुकते हैं कहीं दीवारों से, थमते हैं कहीं जंजीरों से
इजहारे—जुनू पर आमादा जब कैदिए—जिदा होते हैं
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खुशी खुशी में न गम में कोई मलाल मुझे
बना दिया है मोहब्बत ने बे—मिसाल मुझे
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कहीं मश्गले—असबाबे—सफर पीछे न रह जाए
शरीके—कारवा हो, इतिजामे—कारवा कब तक
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देखिए अब कौन—सा द्या जगाता है हमें
मुंह छुपा के सो रहे हैं दामने—साहिल से हम
सामने मंजिल है और आहिस्ता उठते हैं
कदम
पास आकर हो रहे हैं दूर फिर मंजिल से
हम
कामयाबी में भी है नाकामयाबे—जिदगी
ऐन मंजिल पर नहीं हैं आश्ना मंजिल से
हम
और मंजिल दूर नहीं है।
ऐन मंजिल पर नहीं हैं आश्ना मंजिल से
हम
कठिनाई हमारी यह है कि हम मंजिल से परिचित
नहीं हैं; अन्यथा
हम मंजिल पर ही हैं।
सामने मंजिल है और आहिस्ता उठते हैं
कदम
पास आकर हो रहे हैं दूर फिर मंजिल से
हम
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देख ऐ मुन्इम! यही था मुझमें—तुझमें इप्तियाज
तेरा कब्जा था जहां पर, मेरा कब्जा दिल पे था
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गाते गीत, सीते जूते। गुनगुनाते राम को, सीते जूते।
ऐसे जो आता है प्रभु के द्वार पर वही
स्वीकार होता है, वही प्रवेश
कर पाता है।
प्रार्थना का सार सूत्र है : जो तेरी
मर्जी है वह पूरी हो।
आज
इतना ही।
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