Sunday, 7 June 2015

मन ही पूजा मन ही धूप–(संत रैदास)–(प्रवचन–1)


वफा के पर्दे में क्याक्या जफाएं देखी हैं
निगाहेलुक पर अब मुझको एतमाद नहीं
मुझे यकीं है मगर दिल को क्या करूं कि उसे
किसी के वादाफर्दा पे एतमाद नहीं
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दिल को बना हरमनशीं, तौफेहरम नहीं, न हो
मानीएबदगी समझ, सूरतेबदगी न देख
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कोई रिंदी की इस जफेंनजर की वुसअतें देखे
हर इक टूटे हुए सागर को जामेजम समझते हैं
निसारेशमअ होकर बज्य में कहते हैं परवाने
कोई समझे न समझे, हम मआलेगम समझते हैं
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नजअ में बहुत धीमी जुंबिशें नफस की हैं
है करीब मंजिल के आज कारवां अपना
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शबोरोज मोहब्बत सीने में पोशीदा अगर्चो है, फिर भी
आहों में लरजते रहते हैं, अश्कों से नुमायां होते हैं
रुकते हैं कहीं दीवारों से, थमते हैं कहीं जंजीरों से
इजहारेजुनू पर आमादा जब कैदिएजिदा होते हैं
जी भर के तड़प लेने दे उन्हें, रहरह के जरा जलने दे उन्हें
ऐ शमअ की लौ! ये परवाने इक रात के मेहमा होते हैं
रुकते हैं कहीं दीवारों से, थमते हैं कहीं जंजीरों से
इजहारेजुनू पर आमादा जब कैदिएजिदा होते हैं
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खुशी खुशी में न गम में कोई मलाल मुझे
बना दिया है मोहब्बत ने बेमिसाल मुझे
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कहीं मश्गलेअसबाबेसफर पीछे न रह जाए
शरीकेकारवा हो, इतिजामेकारवा कब तक
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देखिए अब कौनसा द्या जगाता है हमें
मुंह छुपा के सो रहे हैं दामनेसाहिल से हम
सामने मंजिल है और आहिस्ता उठते हैं कदम
पास आकर हो रहे हैं दूर फिर मंजिल से हम
कामयाबी में भी है नाकामयाबेजिदगी
ऐन मंजिल पर नहीं हैं आश्ना मंजिल से हम
और मंजिल दूर नहीं है।
ऐन मंजिल पर नहीं हैं आश्ना मंजिल से हम
कठिनाई हमारी यह है कि हम मंजिल से परिचित नहीं हैं; अन्यथा हम मंजिल पर ही हैं।
सामने मंजिल है और आहिस्ता उठते हैं कदम
पास आकर हो रहे हैं दूर फिर मंजिल से हम
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देख ऐ मुन्इम! यही था मुझमेंतुझमें इप्तियाज
तेरा कब्जा था जहां पर, मेरा कब्जा दिल पे था
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गाते गीत, सीते जूते। गुनगुनाते राम को, सीते जूते।
ऐसे जो आता है प्रभु के द्वार पर वही स्वीकार होता है, वही प्रवेश कर पाता है।
प्रार्थना का सार सूत्र है : जो तेरी मर्जी है वह पूरी हो।
आज इतना ही।
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