Wednesday, 10 June 2015

मन ही पूजा मन ही धूप–(प्रवचन–3)(प्रवचन–4)

मन ही पूजा मन ही धूप–(संत रैदास) –(प्रवचन–4)

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एक नागरिक से
हमने प्रश्न किया,
आप नेताजी की तरह
सिर के बाल
कब मुंडा रहे हैं?
वह तुनक कर बोला,
भाई साहब,
आप हमारी हंसी
क्यों उड़ा रहे हैं?
वैसे ही
मंहगाई की जूतियों के
निरंतर प्रहार के बीच
बड़ी मुश्किल से
खोपड़ी पर
दोंचार बाल
उग पाते हैं……
जिन्‍हें
राजनीतिक गुर्गे
और उनके
पाले हुए मुर्गे
चुग जाते हैं।
उस पर भी
उनकी नजर बचा कर
अगर हम
अपनी खोपड़ी पर
कुछ बाल
बचा लेते हैं
तो वे
चुनाव खर्च का
उलटा उस्तरा चला कर
उन्हें भी
ठिकाने लगा देते हैं।
इसी कारण
इस खल्वाट खोपड़ी पर
एक भी बाल
नजर नहीं आता है!
हमारा तो
बिना मुंडन करवाए ही
मुंडन हो जाता है!
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फ्तारफ्ता यह जमाने का सितम होता है
एक दिन रोज मेरी उम्र से कम होता है
बाग रोता है असीरानेकफस को शायद
दामनेसज्जागुल सुबह को नम होता है
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हजार तरह तखथ्युल ने करवटें बदलीं
कफसकफस ही रहा, फिर भी आशिया न हुआ
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आग थे इकिदाएइश्क में हम
हो गए खाक, इन्तिहा है यह
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रंगेनिशात देख मगर मुत्मइन न हो
शायद कि यह भी हो कोई सूरत मलाल की
गुलशन बहार पर है, हंसो ऐं गुलो हंसों
जब तक खबर न हो तुम्हे अपने मआल की
अहसास अब नही है मगर इतना याद है
शक्लें जुदाजुदा थीं उरूजोजवाल की
रंगेनिशात देख……..
रंगेनिशात देख मगर मुत्मइन न हो
शायद कि यह भी हो कोई सूरत मलाल की
यह भी शायद दुख का एक आवरण हो, एक ढंग हो, एक सूरत हो।
गुलशन बहार पर है, हंसों ऐं गुलो हंसों
वसंत आ गया है, तो फूलो, हंसो!
जब तक खबर न हो तुम्हें अपने मआल की
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हुआ अहसास पैदा मेरे दिल में तकेंदुनिया का
मगर कब, जब कि दुनिया को जरूरत ही न थी मेरी
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अपनी हालत का खुद अहसास नहीं है मुझको
मैंने औरों से सुना है कि परेशान हूं मैं
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मुझे अहसास कम था वरना दौरेजिंदगानी में
मेरी हर सांस के हमराह मुझमें इंकलाब आया
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अपने ही हाथ से देदे जो तुझे देना है
मेरी तशहीर न फर्मा मुझे साइल न बना
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बुझा दे ऐ हवाएतुद मदफन के चिरागों को
सियहबस्ती में ये एक बदनुमा धब्बा लगाते हैं
मुरत्तब कर गया इक इश्क का कानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनू को दीवाना बताते हैं
उसी महफिल से मैं रोता हुआ आया हूं ऐ आसी
इशारों में जहां लाखों मुकद्दर बदले जाते हैं
बुझा दे ऐ हवाएतुद..
ऐ तेज हवा, बुझा दे।
मदफन के चिरागों को
ये समाधि पर जो चिराग जलाए हैं, ऐं तेज हवा, इनको बुझा दे।
सियहबस्ती में ये एक बदनुमा धब्बा लगाते हैं
इस अंधेरे की दुनिया में इन चिरणों से धब्बा लगता है। ये चिराग अच्छे नहीं लगते इस अंधेरी दुनिया में।
और लोग भी अजीब हैं, समाधि पर चिराग जलाते हैं! जब आदमी मर गया तब उसकी समाधि पर चिराग जलाते हैं। अरे चिराग जलाओ अपने भीतरजब जिंदा हो तब! जिंदगी का चिराग बनाओ।
बुझा दे ऐं हवाएतुंद मदफन के चिरागों को
सियहबस्ती में ये एक बदनुमा धब्बा लगाते हैं
मुरत्तब कर गया इक इश्क का कानून दुनिया में
वो दीवाने हैं जो मजनू को दीवाना बताते हैं
और जिन्होंने मजनू को दीवाना बताया है, वे दीवाने हैं; उन्हें पता ही नहीं जीवन के सत्य का। मजनू नहीं है दीवानाउसे प्रेम का राज पता चल गया है।
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उसी महफिल से मैं रोता हुआ आया हूं ऐ आसी
इशारों में जहां लाखों मुकद्दर बदले जाते हैं
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हजारों तरह अपना दर्द हम उनको सुनाते हैं
मगर तस्वीर को हर हाल में तस्वीर पाते हैं
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उम्मीदेअम्न क्या हो यारानेगुलिस्ता से
दीवाने खेलते हैं अपने ही आशिया से
बिजली कहा किसी ने, कोई शरार समझा
इक लौ निकल गई थी, दागेगमेनिहा से
नाकूस बनके मैंने चौंका दिया हरम को
पत्थर सनमकदे के जागे मेरी अजां से
मदारेहरअमलेनेकोबद है नीयत पर
अगर गुनाह की नीयत न हो गुनाह नहीं
नकाब उलट दिया मूसा ने तूर पर उनका
अगर गुनाह सलीके से हो, गुनाह नहीं
सच्चा परमात्मा मिल सकता है, उसका घूंघट भी उठाया जा सकता हैउठाने की तरकीब आनी चाहिए।
नाकूस बनके मैंने चौंका दिया हरम को
शंख का नाद कर दिया मैंने काबा में। काबा में शंखनाद नही किया जाता।
नाकूस बनके मैंने चौंका दिया हरम को
काबे में जाकर मैंने शंख बजा दिया और काबे के पत्थर को चौंका दिया।
पत्थर सनमकदे के जागे मेरी अजां से
और मैंने मंदिरों में जहां पत्थरों की मूर्तियां थीं, अजान पढ़ी, नमाज पढ़ी और मुर्दा मूर्तियों में प्राण डाल दिए।
असल में तुम्हारे भीतर प्राण हों तो तुम जहां हो वहीं तीर्थ है। तुम काबे में बैठ जाओ तो काबा तीर्थ है। और तुम कहीं और बैठ जाओ तो वहीं काबा आ जाए। काबा वहां है जहां प्रेम से भरा हुआ हृदय है, परमात्मा के प्रति समर्पित है।
अदबआमोज है मैखाने का जर्राजरी
सैकड़ों तरह से आ जाता है सिब्दा करना
इश्क पाबंदेवफा है, न कि पाबंदेरसूम
सर झुकाने को नहीं कहते हैं सिब्दा करना
सिर झुकाने मात्र को सिब्दा करना नहीं कहते, प्रार्थना करना नहीं कहते।
इश्क पाबंदेवफा है……..
इश्क में एक श्रद्धा तो है।
…….न कि पाबंदेरसूम
लेकिन किसी परंपरा और लीक में नहीं बंधा है प्रेम। प्रेम तो लीक से मुक्त है, परंपरा से मुक्त है। प्रेम तो स्वतंत्रता है, परतंत्रता नहीं।
अदबआमोज है मैखाने का जरीजर्रा
पीना आता हो, पियक्कड़ होना आता होतो फिर मैखाने का जर्राजर्रा भी अदब सिखाने वाला है, विनय सिखाने वाला है।
अदबआमोज है मैखाने का जर्राजर्रा
सैकड़ों तरह से आ जाता है सिब्दा करना
जरा प्रेम की मदिरा पीओ! किसी सदगुरु के मदिरालय में बैठो! हृदय को खोलो! उसकी शराब में डूबो! और सिब्दा करना आ जाएगा।
सैकड़ों तरह से आ जाता है सिब्दा करना
इसकी कोई बंधीबधाई व्यवस्थाएं नहीं है। प्रार्थना कोई बंधाबंधाया सूत्र नहीं है। मुक्ति किन्हीं
बंधेबंधाए सूत्रों से मिल भी नहीं सकती।
अदबआमोज है मैखाने का जर्राजर्रा
सैकड़ों तरह से आ जाता है सिब्दा करना
इश्क पाबंदेवफा है, न कि पाबंदेरसूम
सर झुकाने को नहीं कहते हैं सिब्दा करना
आज इतना ही।




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