Friday, 5 June 2015

अजहू चेत गवांर (संत पलटूदास) प्रवचन-10

तैरते तिनके झुलाती धार है
डूबता कंकड़ बहुत लाचार है
कौन भारी और हलका कौन है
तौलना ही लहर का व्यापार है
एक काली डोर में अंबर घिरा
बंधनों में जीर्ण है सारी धरा
पांखुरी ने तो बहुत बांधा मगर
गंध ने माना नहीं यह दायरा।
…………………………………….


No comments:

Post a Comment