श्वास ने सहला अनेकों
बार उसके घाव धोये,
सजल रोमों में छिपा
संकल्प स्वप्नों ने संजोये;
मृदुल पलकों के तिमिर में खो गया है नीड़ सुधि का।
प्रणय के संगीत अधरों
ने सुना उसको बुलाया,
पलक-पुलिनों पर बिठा
सौगात अक्षय दे रिझाया;
तड़ित – आहों में अखंडित खो गया है नीर सुधि का।
अब नहीं कुछ शेष प्राणों
में व्यथा को छोड़ केवल,
सघन विस्मृति का उमड़ता
हृदय में आकाश पागल;
रह गया है शेष अब तो स्वप्न यह बेपीर सुधि का
……………………………………
सिर्फ मुश्किल ही नहीं,
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
प्यार तो मुमकिन ही नहीं
प्यार में गम न मिले
अपनी बस्ती हो कहीं
आंख पुरनम न मिले,
एक मंजिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
आज को कल न मिले,
कोई सागर हो यहां
नाव को जल न मिले,
एक साहिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
प्यास को दर न मिले,
रूप को छाह कहीं
उस को घर न मिले,
एक संगदिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
…………………………
बस मत कर देना अरे पिलानेवाले!
हम नहीं विमुख हो वापस जानेवाले!
अपनी असीम तृष्णा है-तेरा वैभव
अक्षय है अक्षय- अरे लुटानेवाले!
हम अलख जगाने आए तेरे दर पै!
हम मिट मिट जाने आए तेरे दर पै!
इस रिक्त पात्र को भर दे, भर दे, भर दे!
मदहोश हमें तू कर दे, कर दे, कर दे!
हम खड़े द्वार पर हाथ पसारे कब के
हो जायें अमर-ऐं अमर हमें तू वर दे!
है एक बिंदु में सिंधु भरा जीवन का;
परिपूरित कर दे मानस सूनेपन का!
फिर और! यहां पर पाना ही है खोना
हंसकर पीने में छिपा प्यास का रोना
चलने दे, सुख के दौर अरे चलने दे!
भर जाये दुख से उर का कोना-कोना!
अपना असीम अस्तित्व दिखा दे हमको!
बस लय हो जाना अरे सिखा दे हमको!
तेरी मदिरा का बूंद -बूंद दीवाना!
हम नहीं जानते अपना हाथ हटाना!
इस पथ का अथ है नहीं, न इसकी इति है
गति है, गति है, गति है बस बढ़ते जाना!
किस ओर चले, है हुआ कहां से आना?
किसने जाना, निज को किसने पहचाना?
माना कि कल्पना और ज्ञान है-माना!
पर अविश्वास का, भ्रम का यहीं ठिकाना!
है एक आवरण, बुना हुआ जिस में
दिन-रात और सुख -दुख का ताना-बाना!
उस ओर? व्यर्थ का यह प्रयास-जाने दे!
पाने दे, हम को मुक्ति हमें लाने दे!
निज आत्मघात कर जग को पछताने दे!
इस रिक्त पात्र को भर -दे, भर दे, भर दे!
मदहोश हमें तू कर दे, कर दे, कर दे!
हम खड़े द्वार पर हाथ पसारे कब के
हो जायें अमर-ऐं अमर, हमें तू वर दे!
है एक बिंदु में सिंधु भरा जीवन का
परिपूरित कर दे मानस सूनेपन का!
……………………………………………..
बार उसके घाव धोये,
सजल रोमों में छिपा
संकल्प स्वप्नों ने संजोये;
मृदुल पलकों के तिमिर में खो गया है नीड़ सुधि का।
प्रणय के संगीत अधरों
ने सुना उसको बुलाया,
पलक-पुलिनों पर बिठा
सौगात अक्षय दे रिझाया;
तड़ित – आहों में अखंडित खो गया है नीर सुधि का।
अब नहीं कुछ शेष प्राणों
में व्यथा को छोड़ केवल,
सघन विस्मृति का उमड़ता
हृदय में आकाश पागल;
रह गया है शेष अब तो स्वप्न यह बेपीर सुधि का
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सिर्फ मुश्किल ही नहीं,
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
प्यार तो मुमकिन ही नहीं
प्यार में गम न मिले
अपनी बस्ती हो कहीं
आंख पुरनम न मिले,
एक मंजिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
आज को कल न मिले,
कोई सागर हो यहां
नाव को जल न मिले,
एक साहिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
यह तो मुमकिन ही नहीं
प्यास को दर न मिले,
रूप को छाह कहीं
उस को घर न मिले,
एक संगदिल ही नहीं
ए मेरे दिल
जिंदगी और भी है।
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बस मत कर देना अरे पिलानेवाले!
हम नहीं विमुख हो वापस जानेवाले!
अपनी असीम तृष्णा है-तेरा वैभव
अक्षय है अक्षय- अरे लुटानेवाले!
हम अलख जगाने आए तेरे दर पै!
हम मिट मिट जाने आए तेरे दर पै!
इस रिक्त पात्र को भर दे, भर दे, भर दे!
मदहोश हमें तू कर दे, कर दे, कर दे!
हम खड़े द्वार पर हाथ पसारे कब के
हो जायें अमर-ऐं अमर हमें तू वर दे!
है एक बिंदु में सिंधु भरा जीवन का;
परिपूरित कर दे मानस सूनेपन का!
फिर और! यहां पर पाना ही है खोना
हंसकर पीने में छिपा प्यास का रोना
चलने दे, सुख के दौर अरे चलने दे!
भर जाये दुख से उर का कोना-कोना!
अपना असीम अस्तित्व दिखा दे हमको!
बस लय हो जाना अरे सिखा दे हमको!
तेरी मदिरा का बूंद -बूंद दीवाना!
हम नहीं जानते अपना हाथ हटाना!
इस पथ का अथ है नहीं, न इसकी इति है
गति है, गति है, गति है बस बढ़ते जाना!
किस ओर चले, है हुआ कहां से आना?
किसने जाना, निज को किसने पहचाना?
माना कि कल्पना और ज्ञान है-माना!
पर अविश्वास का, भ्रम का यहीं ठिकाना!
है एक आवरण, बुना हुआ जिस में
दिन-रात और सुख -दुख का ताना-बाना!
उस ओर? व्यर्थ का यह प्रयास-जाने दे!
पाने दे, हम को मुक्ति हमें लाने दे!
निज आत्मघात कर जग को पछताने दे!
इस रिक्त पात्र को भर -दे, भर दे, भर दे!
मदहोश हमें तू कर दे, कर दे, कर दे!
हम खड़े द्वार पर हाथ पसारे कब के
हो जायें अमर-ऐं अमर, हमें तू वर दे!
है एक बिंदु में सिंधु भरा जीवन का
परिपूरित कर दे मानस सूनेपन का!
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