Friday, 5 June 2015

अजहू चेत गवांर (संत पलटूदास) प्रवचन–21

सच्चे साहिब से मिलने को
मेरा मनु लिहा बैराग है, जी।
मोह निसा में सोइ गई,
चोंक परी उठि जाग है, जी।।
दोड नैन बने गिरि के झरना,
भूषन बसन किया त्याग है, जी।
पलटू जीयत तन त्याग दिया,
उठी विरह की आगि है, जी।।13।।
 साहिब के दास कहाय यारो,
जगत् की आस न राखिए, जी।
समरथ स्वामी को जब पाया,
जगत् से दीन न माखिए, जी।।
साहिब के घर में कौन कमी,
किस बात को अंते आखिए, जी।
पलटू जो दुःख सुख लाख पैरे,
वही नाम सुधा-रस चाखिए जी।।14।।
 घर-घर से चुटकी मांगिके; जी
छुधा को चारा डारि दीजै।
फूटा इक तुम्बा पास राखौ,
ओढ़न को चादर एक लीजै।।
हाट बाट महजित में सोथ रहौ,
दिन रात सतसंग का रस पीजै।
पलटू उदास रहौ जक्त से ती,
पहिले बैराग यहि भांति की जै।।15।।
 जब मैं नाही तब वह आया,
मैं, ना वह, यह कौन मानै।
गूंगे में गुड़ खाई लिया,
जबान बिना क्या सिकत आनै।।
दरियाव और लहर तो दोय नाहीं,
समा और रोशनी कौन छानै।
पलटू भगवान की गति न्यारी,
भगवान की गति भगवान जाने ।।16।।
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चला जाता हूं हंसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियां हों, जिंदगी दुशवार हो जाए।
अगर सब आसान ही आसान हो, जिंदगी दुश्वार हो जाए, फिर जीना मुश्किल है। यह संन्यासी का भाव है।
चला जाता हूं हंसता खेलता मौजे हवादिस से
ये जो तूफान उठते हैं, ये जो अंधड़ आते हैं, यह जो सागर में बड़ी हलचल हो जाती है, नाव अब डूबी तब डूबी होने लगती है, यह मौजे हवादिस, यह जो दरिया का तूफानी रूप है, यह जो दरिया का तांडव नृत्य है, इसमें अपनी छोटी-सी डोंगी को लेकर चला जाता हूं हंसता। जो हंसता हुआ चलता जाए. . .।
हर नया तूफान एक नया अभियान है। हर नया तूफान एक नयी चुनौती है। हर नया तूफान परमात्मा की तरफ से एक आमंत्रण , कि उठ, इसके भी ऊपर ऊपर उठ।
चला जाता हूं हंसता खेलता मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियां हों, जिंदगी दुशवार हो जाए।
यह चित्त है संन्यासी का। असुरक्षा ही जो जीवन बना ले, अज्ञात ही जिसकी धुन हो जाएऐसा मजनू। अंधेरी रात जिसकी प्रेयसी हो जाए। लैला जिसकी प्रेयसी हो जाए।
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उम्र कैसे कटेगी सैफ यहां
रात कटती नजर नहीं आती।
एक-एक पल भक्त का मुश्किल में कटने लगता है। एक तरफ भक्त बड़ा आह्लादित है कि प्रभु की तरफ चल पड़ा और दूसरी तरफ बड़ी पीड़ा है कि मिलन कब होगा!
उम्र कैसे कटेगी सैफ यहां
रात कटती नजर नहीं आती।
और सब लुटा देता है। सब लुटा देता है! भूषन-बसन, जो कुछ भी है, सब धीरे-धीरे लुट जाता है।
बहारें लुटा दीं, जवानी लुटा दी
तुम्हारे लिए जिंदगी लुटा दी।
वह कुछ भी रोक नहीं रखता। रोक रख सकता ही नहीं। जो भी दे सकता है, दे ही देता है। रोकने का पाप कर ही नहीं सकता। क्योंकि वह उसी को काटेगा। वही अपराध बन जाएगा उसका। अगर उसने सब उसके लिए नहीं छोड़ दिया है तो वह खुद ही सोचेगा : मैं खुद ही कुछ पकड़े बैठा हूं अभी, और अगर प्यारा न आए तो शिकायत क्या! सब छोड़कर न आए तो शिकायत हो सकती है। तो हम गुहार मचा सकते हैं। तो हम चीख-पुकार मचा सकते हैं कि तेरे लिए सब लुटा दिया।
बहारें लुटा दीं, जवानी लुटा दी
तुम्हारे लिए जिंदगानी लुटा दी।
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तेरे फिराक की रातें कभी न भूलेंगी
मजे मिले इन्हीं रातों में उम्र भर के मुझे।
जब मैं नाहीं तब वह आया,
मैं, ना वह, यह कौन मानै।
गूंगे ने गुड़ खाइ लिया,
जबान बिना क्या सिफत आनै।।
दरियाव और लहर तो दोय नाहीं।
समा और रोशनी कौन छानै।
पलटू भगवान की गति न्यारी,
भगवान की गति भगवान जानै।।
इस अंतिम वचन पर हम पूरा करते हैं। यह अपूर्व वचन है।
समझो : जब मैं नाहीं तब वह आया।
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