Thursday, 4 June 2015

अजहू चेत गवांर (संत पलटू दास) प्रवचन–1

कौन करै बनियाई, अब मोरे कौन करै बनियाई।।
त्रिकुटी में है भरती मेरी, सुखमन में है गादी।
दसवें द्वारे कोठी मेरी, बैठा पुरुष अनादी।।
इंगलापिंगला पलरा नौ, लागी सुरति की जोति।
सत्त सबद की डांडी पकरौं, तौलौं भरभर मोती।।
चांदसुरज दोउ करैं रखवारी, लगी सत्त की ढेरी।
तुरिया चढ़िके बेचन लागा, ऐसी साहिबी मेरी।।
सतगुरु साहिब किहा सिपारस, मिली राम मुदियाई।
पलटू के घर नौबत बाजत, निति उठ होति सबाई।।
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नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार।।
कैसे उतरे पार पथिक विश्वास न आवै।
लगै नहीं बैराग यार कैसे कै पावै।।
मन में धरै न यान, नहीं सतसंगति रहनी।
बात करै नहिं कान, प्रीति बिन जैसी कहनी।।
छूटि डगमगि नाहिं, संत को वचन न मानै।
मूरख तजै विवेक, चतुरई अपनी आनै।।
पलटू सतगुरु सब्द का, तनिक न करै विचार।
नाव मिली केवट नहीं, कैसे उतरै पार।।
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