चरण पर चढ़ कर जला ले,
भक्ति की तू आरती।
प्रार्थना के गीत झरने दे,
हृदय से भारती।
प्रेम के ये फूल सारे,
भेंट कर दे चरण पर।
रात भर जलती रहो,
बन तू पिया की आरती।
पलकों में काट लूंगी,
रात पिय के प्यार की।
आज मधुबन में रचेगी,
राम कृष्ण भारती।
तुम ह्रदय में बीन छोड़ो,
झूम कर गांऊ पिया।
प्राण में पीयूस भर दो,
झूम कर पीयूं पिया।
कविता की दृष्टि से चाहे यह बहुत
महत्वपूर्ण न हो, क्योंकि
कृष्णानंद भारती कोई कवि नहीं हैं मगर भाव भर दिए हैं। गीत उठा है!
तुम हृदय में बीन छेड़ो,
झूम कर गाऊं पिया!
प्राण में पीयूष भर दो,
झूम कर पीयूं पिया!
यह तो प्रीति का मार्ग है धर्म। यह
तो प्रेम की पराकाष्ठा है!
आज मंदिर में तुम्हारी
मैं स्वयं प्रतिमा बनूंगी।
प्रेम के दीपक जला कर,
आरती तेरी करूंगी।
तुम हृदय के देवता हो,
प्राण के श्रृंगार हो तुम।
अश्रु चरणों पर चढ़ा कर,
नमन मैं तेरा करूंगी।
तुम मिलो तो जिंदगी
छक कर नहाए, गीत गाए।
प्यार के माणिक, पिया!
अनुराग उर के पद धरूंगी।
मैं बसाऊंगी तुझे दिल में,
जला कर प्रेम— बाती।
कल्पना के पंख लेकर
अब पिया मैं क्या करूंगी?
आस में रो—रो गंवाई,
प्यास बढ़ती जा रही है।
जिंदगी प्रभु! सौंप पद पर,
वरण मैं तेरा करूंगी।
शून्य मंदिर में पिया!
प्रतिमा तुम्हारी मैं बनूंगी।
अता ही पूणा अता ही धूप
प्रेम के सिंदूर से प्रिय।
मांग अपनी मैं भरूंगी।
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