Friday, 2 September 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--15)



सूत्र:

हेरी! मैं तो दरद दिवानीमेरो दरद न जाणे कोइ।
घायल की गति घायल जाणेकी जिन लाई होइ।
जौहरि की गति जौहरि जाणेकी जिन जौहर होइ।
सूली ऊपर सेज हमारीसोवण किस विधि होइ।
गगन मंडल पे सेज पिया कीकिस विधि मिलना होइ।
दरद की मारी बन बन डोलूंबैद मिल्या नहिं कोइ।
मीरा के प्रभु पीर मिटेगीजब बैद सांवलिया होइ।

बंसीवारा आज्यो म्हारो देसथांरी सांवरी सूरत बाला भेस।
आऊं—आऊं कर गया सांवराकर गया कौल अनेक।
गिणता—गिणता घस गई जीम्हारी आंगलिया की रेख।
मैं बैरागण आदि की जीथारि म्हारि कदको सनेस।
बिन पाणी बिन सावण सांवराहो गई धोए सफेद।
जोगण होकर जंगल हेरूंतेरो नाम न पायो भेस।
तेरी सूरत के कारण मैं तोधारया छे भगवा भेस।
मोरमुकुट पीतांबर सोहेघूंघरवाला केस।
मीरा के प्रभु गिरधर नागरमिल्यां मिटेगा क्लेस।
बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहब रीझैसो ही भेष धरूंगी।
शील संतोष धरूं घट भीतरसमता पकड़ रहूंगी।
जाको नाम निरंजन कहिएताको ध्यान धरूंगी।
गुरु के ज्ञान रंग तन कपड़ामन मुद्रा पैरूंगी।
प्रेम प्रीत सूं हरिगुण गाऊं चरणन लिपट रहूंगी।
या तन की मैं करूं कींगरीरसना नाम कहूंगी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागरसाधा संग रहूंगी।

हेरी! मैं तो दरद दिवानीमेरो दरद न जाणे कोइ।
घायल की गति घायल जाणेकी जिन लाई होइ।
जौहरि की गति जौहरि जाणेकी जिन जौहर होइ।
हेरी! मैं तो दरद दिवानीमेरो दरद न जाणे कोइ।
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सिसकता हुआ मन अभी चुप हुआ है
जरा ठहरोअभी मत रुलाओ
लगी चोट जब से तभी से रुदन है
बहुत ही कसक है बहुत ही जलन है
न आंसू थमे हैं नहीं दर्द कम है
भरेगा नहीं कि यह ऐसा जखम है
गए चोट करके पुनः लौट आए
कि कितने निठुर हो तुम्हें क्या बताएं
अभी घाव गीला है पीड़ा बहुत है
इसे फिर न छू लो न फिर से दुखाओ।
बहुत नींद तेरी झुकी पर न पलकें
गई भाल पर छा परेशान अलकें
कि बेचैन करवट शिकन हर चिढ़ाती
कि घायल की पीड़ा रही है बढ़ाती
कि पल भर हुआ है अभी पीर चुप है
सपन देखता प्राण का कीर चुप है
कि आंखें रुआंसी अभी ही लगी हैं
सपन यह न टूटे अभी मत जगाओ।
शलभ की लगन है जला दीप आया
मचल ज्वाल चूमी अधर को जलाया
कि बलिदान पर भी मिटी है न दूरी
अभी अर्चना है हृदय की अधूरी
गड़ी फांस मन में कि सोने न देगी
अभी पंख झुलसे सभी तन न झुलसा
निठुर दीप तुम यह अभी मत बुझाओ
सिसकता हुआ मन अभी चुप हुआ है।
जरा ठहरोअभी मत रुलाओ।

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जीवन की गलियों में
हम तो चुपचाप रहे।
मिलन बहुत प्यारा है
विरह बहुत खारा है
जीवन की प्याली में
दोनों ही साथ रहे
जीवन की गलियों में
हम तो चुपचाप रहे।
आंसू में थिरकन है
आहों में कंपन है
जीवन की लहरों पर
आशा की नाव बहे
जीवन की गलियों में
हम तो चुपचाप रहे।
लिखना मजबूरी है
खुद से भी दूरी है
अब तक तो गीतों ने
मन के ही दर्द कहे
जीवन की गलियों में
हम तो चुपचाप रहे।
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आऊं—आऊं कर गया सांवराकर गया कौल अनेक।
जब भी आशा—लहरों के हाथों नैया सौंपी
तूफानों से मिल तट ने सपने नीलाम किए
जानी—अनजानी भूलों का कर्ज चुकाने में।
सौंधी माटी जैसी सुघर उमरिया बीत चली
संबंधों के चौराहे पर किरण अकेली है
सुबह—सुबह पनघट पर नवल गगरिया रीत चली
किसने चाहा नहीं अमा के द्वार दिवाली हो
किंतु तिमिर की गलियों में दीपक बदनाम हुए
अश्रु—धरा पर गीतों के बिरवों को प्राण मिले
अनबोली अभिशप्त विवशता डाल—डाल फूली
ढलते वैरागी दिन जैसी प्रीत बावरी है
मेरी ही परछाई मुझको अनायास भूली
ठिठक गए विश्वासों के पग सर्पीले पथ पर
अनब्याही अल्हड़ निष्ठा कब तक निष्काम जिए
तन की अंजुरी में मन पारे जैसा बिखर गया
चपला की चितवन सुरधनु को बांध नहीं पाई
तरुछाया को मीत मान कर जीना मुश्किल है 
बिना प्यार की छांव जिंदगी कभी न मुस्काई।
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ये तुझसे किसने कहा गम से दिल तबाह नहीं
ये और बात कि मेरे लबों पे आह नहीं
वो एक मैं कि सरापा सवाल हूं कब से
वो एक तू कि तुझे फुरसते निगाह नहीं
ये तुझसे किसने कहा कि गम से दिल तबाह नहीं?
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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