वो राग छेड़ तरन्नुम की जो करे तशकील
सुना वो नगमा जो तखलीक सोजो साज करे।
तेरा वजूद हकीकत को दे लबासे मजाज
कि जिसपे फखर बहार काएनात नाज करे।
तेरा गुजर हो चमन को नबीद रंगो बू
गुलों को फस्ले बहारों से बेनियाज करे।
तू ऐसे जी कि जमाना बइख्तयारे तमाम
तेरी गरीबी तेरी बेबसी पे नाज करे।
जिसे शिकायतें हों हुस्न से वो इश्क नहीं
हवस है लालाओ गुल में जो इम्तयाज करे।
कभी जो कहना पड़े कुछ तो ऐसी बात कहो
जो सबको अपने अहले नजर आशनाए राज करे।
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है बका का ख्वाहां तो तालिबे फना हो जा
जिंदगी के मुतलाशी मर्गे आशना हो जा
जीस्त के समझ मानी राज मौत का पा ले
मर के बेनिशां हो जा, जी के लापता हो जा।
वस्ले दोस्त के तालब वस्ले दोस्त की खातिर
आरजू हो सरतापा सरबसर दुआ हो जा
ख्वाहिशों से दुनिया की दिल को अपने कर खाली
होके उसका ही रह जा उसकी ही रजा हो जा
दिल में हो खयाल उसका आंख में हो जमाल उसका
गैर के तसव्वर से गैर आशना हो जा
शम्मे हुस्न से इसकी नूरे सिदक कर हासिल
शीशाए मोहब्बत में जल्वाए सफा हो जा
गैर और अपने का खुद ब खुद मिटेगा फरक
या मिटा दे अपना आप या खुद आशना हो जा
हर किसी से उल्फत कर, हर किसी की खिदमत कर
खादिमे बशर बन कर बंदए खुदा हो जा।
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तू आज तोड़ दे सब बुत उस एक बुत के सिवा
फसादो जंगो जदल तर्क कर मोहब्बत कर
कि आशतीओ मोहब्बत में खुदा की रजा
समझ ले सच्ची इबादत के आज मानी तू
तवहब्मायात के असनाम की न कर पूजा
खुदा को देख मुजस्सम खुदा के बंदों में
खलूसे खिदमते खल्के खुदा की मांग दुआ
यही है जिंदा खुदा जीता जागता माबूद
वो खाली हाथ रहेगा जो इसको पा न सका
इसी के आगे झुका दे सरे नमाज अपना
तू आज तोड़ दे सब बुत इस एक बुत के सिवा।
यही है जिंदा खुदा जीता जागता माबूद
यह जो जीता—जागता अस्तित्व है, यह जो प्रकृति है—यही है परमात्मा।
पूछते हो: "परमात्मा कहां है?'
यहां है!
यही है जिंदा खुदा जीता जागता माबूद
वो खाली हाथ रहेगा जो इसको पा न सका।
इसी के आगे झुका दे सरे नमाज अपना
तू आज तोड़ दे सब बुत इस एक बुत के सिवा।
आज इतना ही।
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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