Friday, 2 September 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--13)




मीरा से पुकारना सीखो
सूत्र:

सखीमेरी नींद नसानी हो।
पिय को पंथ निहारत सिगरीरैन विहानी हो।
सब सखियन मिलि सीख दईमन एक न मानी हो।
बिन देख्या कल नांहि पड़तजिय ऐसी ठानी हो।
अंगिअंगि व्याकुल भईमुख पिय—पिय बानी हो।
अंतर वेदन विरह कीवह पीड़ न जानी हो।
ज्यूं चातक घन कूं रटैमछरी जिमि पानी हो।
मीरा व्याकुल विरहिणीसुध—बुध बिसरानी हो।


डारि गयो मनमोहन फांसी।
अम्बुआ की डाली कोयल इक बोलैमेरो मरण अरू जग केरी हांसी।
विरह की मारी मैं बन—बन डोलूंप्राण तजूं करवत ल्यूं कासी।
मीरा के प्रभु हरि अविनासीतुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी।

प्यारे दरसन दीजो आएतुम बिन रह्यो न जाए।
जल बिन कमल चंद बिन रजनीऐसे तुम देख्या बिन सजनी।
व्याकुल व्याकुल फिरूं रैण दिनबिरह कलेजो खाए।
दिवस न भूख नींद नहिं रैणामुखसूं कथत न आवै वैणा।
कहा कहूं कछु कहत न आवैमिल कर तपत बुझाए।
क्यूं तरसाओ अंतरजामीआए मिलो किरपा कर स्वामी।
मीरा दासी जनम—जनम कीपड़ी तुम्हारे पांए।
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तू ऐसे सरखुशो सरमस्त मयकदे में आ
कि मुस्कुरा के तुझे हर नजर सलाम करे।
फिर ऐसी पी कि हो सदनाज तुझ पे साकी वो
वो फख्र मय को—तेरा एहतराम जाम करे।
खुशी से झूम उठे मयकदा जो पीरे मुगां।
नजर मिला के तेरा साथ फिर कलाम करे।
हयात रक्स करे नगमे रूह से उठें।
जो रक्से बादाकशी मयफरोश आम करे।
पिला के डाले जो रिंदों पे एक निगाहे गलत।
तमाम इशरतो ऐशे जहां हराम करे।  
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जो राहते जां है वो अलम मुझको मिला है
जो ऐने मुसर्रत है वो गम मुझको मिला है।
जिस गम से जहांगीर मोहब्बत हुई है पैदा
है हासिले कौनेन जो गम मुझको मिला है।
जिस साज के तारों से हुई राग की तखलीक
सद शुक्र कि वो साजे अलम मुझको मिला है।
सर चश्माए इल्ताको इनायातो नवाजिश
जो जाने करम है वो सितम मुझको मिला है।
जिस कुफ्र से ईमान की होती है इबारत
जो अस्ले यकीं है वो भरम मुझको मिला है।
पलते हैं जबीं में मेरे अब सैकड़ों सूरज
जब से तेरा ये नक्शे कदम मुझको मिला है।
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है दिल को क्यों करार मुझे कुछ पता नहीं
आंखें हैं अश्कबार मुझे कुछ पता नहीं
रौशन हुए हैं महर सिफ्त दागहाए दिल
है कौन शोलाबार मुझे कुछ पता नहीं
धड़कन इक एक दिल की है आवाजे पाए दोस्त
क्या है यही करारमुझे कुछ पता नहीं।
एहसासे कुरबे दोस्त है एहसास बेखुदी
क्या है विसाले यारमुझे कुछ पता नहीं
साकी की चश्मे मस्त है और मेरी तश्नगी
हैं और मय गुसारमुझे कुछ पता नहीं
नकहत है ताजगी है मुसर्रत है दमबदम
होगी यही बहारमुझे कुछ पता नहीं
क्या कर गई है एक नजर में निगाहे मस्त
है कोई होशियारमुझे कुछ पता नहीं।
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मोअज्जन कुलजमे पाकीजगी है दिल में मेरे
मैं बजाहिर तो गुनाहगार नजर आता हूं
नकहतो रंगे गुलिस्ता हैं रगो में मेरी
एक सूखा हुआ गो खार नजर आता हूं।

एक सरमस्तिए जावेद मुझे है हासिल
देखने को तो मैं हुशियार नजर आता हूं।

जिंदगी में मेरी कोनैन की वुसअत शामिल
बंदे हस्ती में गिरफ्तार नजर आता हूं।

रौनक अफरोज इक सुबहे दरक्शां मुझमें
गरचे महबूस शबे तार नजर आता हूं।

मुझसे बाबस्ता है सब कुवते तखलीके हयात
लागरो बेकसो लाचार नजर आता हूं।

लागरो बेकसो लाचार नजर आता हूं।
मेरी हस्ती में है तनवीरे जहां पोशीदा
पाबगिल सायाए दीवार नजर आता हूं।

इंबसात और मुसर्रत का हूं मैं सर चश्मा
गमे हस्ती का लिए बार नजर आता हूं।
और भीतर तो हर्ष ही हर्ष है।
इंबसात और मुसर्रत का हूं मैं सर चश्मा।

गमे हस्ती का लिए बार नजर आता हूं।
मिट चुका है मेरा एहसासे अना लेकिन मैं
मए पिंदार से सरशार नजर आता हूं।
हर तआल्लुक से है आजाद तबीयत मेरी
दामे दुनिया में गिरफ्तार नजर आता हूं।
मस्तो सरशार हूं हर वक्त खयाले हक में
काफिरो आसीओ मयखार नजर आता हूं।
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मीरा से पुकारना सीखो।

आज इतना ही।
जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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