जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।
ओशो
पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--11)
म्हारो जनम—मरन को साथी, थानें नहिं बिसरूं दिन—राती।
तुम देख्यां बिन कल न पड़त है, जानत मेरी छाती।
ऊंची चढ़—चढ़ पंथ निहारूं, रोवै अखियां राती।
यो संसार सकल जग झूंठो, झूंठा कुल रा न्याती।
दोउ कर जोड़यां अरज करत हूं सुण लीजो मेरी बाती।
यो मन मेरो बड़ो हरामी, ज्यूं मदमातो हाथी।
सतगुरु हस्त धरयो सिर ऊपर, अंकुस दे समझाती।
पल—पल तेरा रूप निहारूं, हरि चरणां चित राती।
मोहे लागी लगन गुरु चरनन की।
चरण बिना कछुवै नहिं भावै, जग माया सब सपनन की।
भवसागर सब सूखि गयो है, फिकर नहीं मोहे तरनन की।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आस वही गुरु सरनन की।
होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुवति व्रजनारी।
चंदन केसर छिड़कत मोहन, अपने हाथ बिहारी।
भरि—भरि मूठि गुलाल लाल चहुं देत सवन पै डारी।
छैल—छबीले नवल कान्ह, संग स्यामा प्राण प्यारी।
गावत चार धमार राग तंह दै दै कल करतारी।
फागु जु खेलत रसिक सांवरो, बाढ़यो ब्रज रस भारी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, मोहन लाल बिहारी।
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हां, छलकती हुई शराब आए
जोश में फिर मेरा शबाब आए
फिर थिरकते हुए उठें नगमे
हाथ में इश्क का रुबाब आए
हर तरफ से निगाहे शौक को आज
इक शगुफ्ता हसीं जवाब आए
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जिस दिल की हर तड़प थी नई जिंदगी मुझे
जां बख्शो जां नवाज वो अब दिल नहीं रहा
है दर्द अब भी दर्द मगर वो कसक नहीं
अपना वो अब जिगर नहीं वो दिल नहीं रहा
है बर्क अब भी दुश्मने खिर्मन मगर मुझे
जाने न क्यों कोई गमे हासिल नहीं रहा।
जब से हुआ हूं खाके कफे पाए दोस्त में
मुझको खयाले जादाओ मंजिल नहीं रहा।
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जिस दिल की हर तड़प थी नई जिंदगी मुझे
जां बख्शो जां नवाज वो अब दिल नहीं रहा
है दर्द अब भी दर्द मगर वो कसक नहीं
अपना वो अब जिगर नहीं वो दिल नहीं रहा
है बर्क अब भी दुश्मने खिर्मन मगर मुझे
जाने न क्यों कोई गमे हासिल नहीं रहा।
जब से हुआ हूं खाके कफे पाए दोस्त में
मुझको खयाले जादाओ मंजिल नहीं रहा।
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