मैं बनाऊं घर इसी मझधार में
अगम जल की सोनमछरी मन बसी।
गढ़ा उसको किसी चतुर सुनार ने
नये सांचे में ढली वह कामिनी
रंग ऐसा भर दिया करतार ने
दिपे सोना अंग जैसे दामिनी।
प्राण की हर पोर में उसकी चुभन।
ज्यों अंगूठी अंगुली में हो कसी।
जब हटे जल का रुपहला आवरण
दिख जाए वह सलोनी एक क्षण।
दृष्टि की आराधना साकार हो।
ज्योति—पुलकित हो उठे वातावरण।
दिशाएं हैं मौन उसके ध्यान में
चेतना के लोक की वह उर्वशी।
बनिज नौकाएं लुटाएं लाख धन
गीत मांझी के करें अनगिन गुहार।
व्यर्थ हैं ये सभी आकर्षण मुझे।
मैं न जाऊं छोड़ कर यह अगम धार।
प्रीत की बंसी इसी जल में लगे—
मूढ़ जग चाहे उड़ाए जो हंसी।
मैं बनाऊं घर इसी मझधार में
अगम जल की सोनमछरी मन बसी।
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संन्यासी संसार में है और संसार का नहीं है।
शादाबिए जमाले बुतां मेरे दिल में है
बेताबिए जनूं जदगां मेरे दिल में है
दरियाए इम्बसात रवां मेरे दिल में है
तूफाने सोजो आहो फुगां मेरे दिल में है
नाचे कोई तो नाचता हूं मैं भी उसके साथ।
कूहे निशाते हर दो जहां मेरे दिल में है
तड़पे कोई तो मैं भी तड़फता हूं उसके साथ
जिन्नो बशर का दर्दे निहां मेरे दिल में है
होता हुआ भी सबका किसी का नहीं हूं मैं
इक बंद सोज बर्के तपां मेरे दिल में है
हैं वुसअतों से वुसअतें मुझमें—यही नहीं
इक वुसअते मकानो जमां मेरे दिल में है
लब पै मेरे सकूते मुसलसल है मोअजन
इक शोरे मावराए बयां मेरे दिल में है
जो परदाए नमूद में छिप कर है जौफिशां
इक रंग इसका अयां मेरे दिल में है
एहले नजर को जिसने गजल खां किया वो खुद
सरशारो मस्त नगमा कुनां मेरे दिल में है।
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न हैं चांद—सूरज न कोई सितारे
कहीं रोशनी का निशां तक नहीं है
खलाए फजा की है बस बेकरानी
जहां नक्शे मौहूम आलम का साया
है अम्बवाजे हस्ती के दामन में रक्सां
खला मन की है मौज दर मौज पैदा
खुदी की जबरदस्त रौ चल रही है
इसी रौ में दुनिया बहे जा रही है
कभी डूबती है कभी तैरती है
ये सारा हजूमें नक्शे खयाली
है मौहूम सायों का रक्से तमाशा
हुआ वतने तखलीक में फिर से गायब
रहा सिर्फ एहसास बाकी खुदी का
रही मोअजन सिर्फ इक रौ अना की
वो देखो अना की भी रौ रुक गई है
खला से खला अब गले मिल रही है
बयां ऐसी हालत का मुमकिन नहीं है
ये आलम तो अदराक से मावरा है
ये दिल जिस दिल पै गुजरे वही जानता है
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खला मन की है मौज दर मौज
खुदी की जबरदस्त रौ चल रही है
इसी रौ में दुनिया बहे जा रही है
कभी डूबती है कभी तैरती है
ये सारा हजूमे नक्शे खयाली
यह सब काल्पनिक है, सब सपने जैसा है।
है मौहूम सायों का रक्से तमाशा
हुआ वतने तखलीक में फिर से गायब
रहा सिर्फ एहसास बाकी खुदी का
रही मोअजन सिर्फ इक रौ अना की
सब खो गया; सिर्फ एक तरंग बची—अहंकार की।
रही मोअजन सिर्फ इक रौ अना की
वो देखो अना की भी रौ रुक गई है
खला से खला अब गले मिल रही है
बयां ऐसी हालत का मुमकिन नहीं है
ये आलम तो अदराक से मावरा है
यह घटना बुद्धि के परे है।
ये आलम तो अदराक से मावरा है
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कहां कहां तू फिरेगा भटकता आवारा
न इस जहां से न उससे मिलेगा कोई पता
नहीं है दोनों जहानों में कोई तेरे सिवा
तू अपने आप में खोकर खुद अपने आप को पा
खुदी में देख खुदा ओम् ओम् तत् सत् ओम्
तुझे जहान में संन्यासी कम ही समझेंगे
यहां के लोग हिकारत से तुझको देखेंगे
हर एक बात पै तेरी हंसी उड़ाएंगे
तुझे सताएंगे, पागल तुझे पुकारेंगे
दुआएं सबको दिए जा तू ओम् तत् सत् ओम्
और दुआ यही देना कि प्रभु करे, तुम भी पागल हो जाओ!
खोजने की व्यर्थता समझो। जिसे तुम खोज रहे हो, वह तुममें छिपा बैठा है।
जिससे हर दो जहां मुनव्वर हैं
तेरे इस हुस्न की जमा हूं मैं
नाज है अपनी जिस अदा पै तुझे
इसका इक अक्से हश्र जा हूं मैं
मैं तेरी आरजू की हूं तशकील
शौक तेरा, तेरी दुआ हूं मैं
तेरा ही नगमाए निशात हूं मैं
तेरे ही दिल की इक सदा हूं मैं
इन्तहाए कमाल हुस्न है तू
इश्क कामिल की इन्तहा हूं मैं
तू है आजाद हर तआल्लुक से
हर तआल्लुक में मुबतला हूं मैं
फिर भी मैं कोई दूसरा तो नहीं
तेरा ईमां तेरी रजा हूं मैं
जिंदगी मेरी—आरजू तेरी
जीते जी—तालिबे फना हूं मैं।
तुम सब कुछ हो। परमात्मा भी तुम्हारे भीतर विराजमान है। घर लौट आओ।
जिससे हर दो जहां मुनव्वर हैं
तेरे इस हुस्न की जमा हूं मैं।
जिससे यह सारी दुनिया का सौंदर्य भरा है, सारी दुनिया—यह दुनिया, वह दुनिया—दोनों दुनियाओं का सौंदर्य, उसकी जमा मेरी भीतर है।
नाज है अपनी जिस अदा पै तुझे
इसका इक अक्से हश्र जा हूं मैं
और परमात्मा से कहा जा रहा है कि तुझे जो नाज है अपने ऊपर, मैं भी उसी नाज की एक लहर हूं।
मैं तेरी आरजू की हूं तशकील
शौक तेरा तेरी दुआ हूं मैं
मैं तेरी अनुकंपा, तेरी करुणा हूं। तुझसे भिन्न नहीं।
तेरा ही नगमाए निशात हूं मैं
तेरा ही गीत हूं।
तेरे ही दिल की इक सदा हूं मैं
इन्तहाए कमाले हुस्न है तू
तू पूर्ण सौंदर्य है।
इश्क कामिल की इन्तहा हूं मैं
तो मैं भी पूर्ण प्रेम हूं!
प्रेम तुम बन जाओ। परमात्मा सौंदर्य है। दोनों का मिलन हो जाएगा। लेकिन खोज से नहीं—खो जाने से।
मिटो! मिटना ही उसे पाने का उपाय है।
आज इतना ही।
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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