Friday, 2 September 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--14)



लजते जीस्त को हम सोजे जिगर कहते हैं
राहले कल्ब को हम दीदए तर कहते हैं
तेरी ही यादे मुसलसल की हलावत है जिसे
अहले दिल मसलहतन दर्दे जिगर कहते हैं
दर्द बढ़ने से जो मिलती है हमें इक तसकीन
हम उसे अपनी दुआओं का असर कहते हैं
है ये तेरा ही मुअत्तर नफसो रंगे जमाल
सहने गुलशन में जिसे हम गुलेतर कहते हैं
रात कहते हैं जिसे है तेरी फुर्कत का खयाल
वस्ल की आस को हम नूरे सहर कहते हैं
मस्ति—ओ—हाल जिसे कहते हैं दुनिया वाले
तेरे दीवाने इसे तेरी नजर कहते हैं
एक ही बात है जलवा कहीं कहते हैं इसे
कहीं दीदार—ए—खुदी हुस्न—ए—नजर कहते हैं
तेरी रफ्तार ही अपनी है सकूने कामल
वही मंजिल है जिसे शौक—ए—सफर कहते हैं
लजते जीस्त को हम सोजे जिगर कहते हैं
जीने का स्वाद प्यार के दर्द के बिना मिलता ही नहीं।
लजते जीस्त को हम सोजे जिगर कहते हैं
राहते कल्ब को हम दीदए तर कहते हैं
और दिल का आराम कहां है?
जब आंखें आंसुओं से भरी होंतब!
राहते कल्ब को हम दीदए तर कहते हैं
भीगी आंख को ही हम हृदय का विश्राम कहते हैं।
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जिंदगी राहे गम से निकल जाएगी,
तेरी दुनिया ही यक्सर बदल जाएगी।
उनके कदमों में इस बार सर तो झुका,
उनकी चश्मे करम फिर मचल जाएगी।
दिल को मिल जाएगा तेरे अमनो सकूं
वक्त रुक जाएगा जां सम्हल जाएगी।
तेरे सर पर है जो आज मुश्किल खड़ी।
तू यकीं रख कि कल तक वो टल जाएगी।
चांदनी में धुली रात भी आएगी।
धूप रंजो अलम की भी ढल जाएगी।
तेरी रग—रग में दौड़ेगी सच्ची खुशी।
झूठी ख्वाहिश इक दिन दिल की जल जाएगी।
जिंदगी राहे गम से निकल जाएगी।
तेरी दुनिया ही यक्सर बदल जाएगी।
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रख केदेख—भाल के फरेबे जीस्त खाए जा
समझ केजान—बूझ के जहां से जी लगाए जा
यहां बनी है जो भी शै बिगड़ने को ही बनी है
ये देख के भी खूबतर हर इक शै बनाए जा
नहीं बना कोई कभी किसी का इस जहान में
ये जानते हुए भी सबको अपना तू बनाए जा
बुझे—बुझे हैं दिल यहां—दिमाग हैं धुआं—धुआं
तू इन स्याहियों में दीप प्रेम के जलाए जा
इक और हां इक और जाम की तलब है सबको यां
जो तश्नगी को दे मिटा वो जाम तू पिलाए जा
न सोच ये कि तेरी बात पा भी जाएगा कोई
है बात काम की अगर तू गलगला मचाए जा
यही सदा उठेगी नारा बन के कायनात में
कोई सुने नहीं सुने सदा—ए—हक लगाए जा

न सोच ये कि तेरी बात पा भी जाएगा कोई
है बात काम की अगर तू गलगला मचाए जा।

यही सदा उठेगी नारा बन के कायनात में
कोई सुने नहीं सुने सदाए हक लगाए जा
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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