अब तेरी शरण आयो राम।।
जबै सुनिया साध के मुख, पतितपावन नाम।।
यही जान पुकार कीन्ही, अति सतायो काम।।
विषय सेती भयो आजिज, कह मलूक गुलाम।।
सांचा तू गोपाल, सांच तेरा नाम है।
जहंवां सुमिरन होय, धन्य सो ठाम है।।
सांचा तेरा भक्त, जो तुझको जानता।
तीन लोक को राज, मनैं नहिं आनता।।
झूठा नाता छोड़ि, तुझे लव लाइया।
सुमिरि तिहारो नाम, परम पद पाइया।।
जिन यह लाहा पायो, यह जग आइकै।
उतरि गयो भव पार, तेरो गुन गाइकै।।
तुही मातु तुही पिता, तुही हितु बंधु है।
कहत मलूकदास, बिन तुझ धुंध है।।
कौन मिलावै जोगिया हो, जोगिया बिन रह्यो न जाई।।
मैं जो प्यासी पीव की, रटत फिरौं पिव पीव।।
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो, तो तुरत निकासूं जीव।।
गुरुजी अहेरी मैं हिरनी, गुरु मारैं प्रेम का बान।
जेहि लागै सोई जानई हो, और दरद नहिं जान।।
कहैं मलूक सुनु जोगिनी रे, तनहिं में मनहि समाय।
तेरे प्रेम के कारने जोगी सहज मिला मोहिं आय।।
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दुनिया जिसे कहते हैं, बच्चे का खिलौना है,
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है.
अच्छा—सा कोई मौसम, तन्हा—सा कोई आलम,
हर वक्त का रोना तो बेकार का रोना है!
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने,
किस राह से बचना है, किस छत को भिगोना है.
ये वक्त जो तेरा है ये वक्त जो मेरा है,
हर गाम पे पहरा है, फिर भी इसे खोना है.
गम हो कि खुशी दोनों कुछ दूर के साथी हैं,
फिर रस्ता ही रस्ता है, हंसना है न रोना है.
आवारा मिजाजी ने फैला दिया आंगन यों,
आकाश की चादर है, धरती का बिछौना है.
दुनिया जिसे कहते हैं, बच्चे का खिलौना है,
मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है.
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तन—मन—प्रान, मिटे सबके गुमान
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी
छिन गए बान, गिरी हाथ से कमान
एक टूटती कृपान का बयान हुआ आदमी
भोर में थकान, फिर शोर में थकान,
पोर—पोर में थकान पे थकान हुआ आदमी
दिन की उठान में था उड़ता विमान
हर शाम किसी चोट का निशान हुआ आदमी
तन—मन—प्रान, मिटे सबके गुमान
एक जलते मकान के समान हुआ आदमी।
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जुल्म हंस—हंस के सभी सहने लगा है आदमी,
गीदड़ों के रंग में रहने लगा है आदमी.
फूल औ कांटे में वो पहचान कर पाता नहीं,
भीड़ जो कहती है, वही कहने लगा है आदमी.
यह समय की धार से टकरायेगा कैसे भला,
जब कि तिनके की तरह बहने लगा है आदमी.
चंद सिक्कों के लिए संबंध सारे तोड़कर,
हर किसी की बांह को गहने लगा है आदमी.
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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