Friday, 2 September 2016

पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--12)



पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--12)


गरज नहीं मुझे इससे कि सरवरी क्या है
मैं जानता हूं मगर शाने बंदगी क्या है
बुलंदियों को जो अर्शे बरीं की छू न सके
वो मौजे खाके फकीरी व आजिजी क्या है
खुदा है जिसके लिए बेकरार वो सजदा
जबीं में जिसकी न तड़पे वो आदमी क्या है
विसालो हिज्र की जो कैद से न हो आजाद
वो दोस्ती वो मोहब्बत वो आशकी क्या है
खयाले यार में खुद से भी वो रहे आगाह
वो जां सपुर्दगी क्या है वो बेदिली क्या है
जो इरतकाये खुदी से खुदा तक आ न गया
फरिश्ता रह गया बन कर वो आदमी क्या है
न बेखुदी को समोये जो अपने दामन में
जो राजे मर्ग न पा जाए वो खुदी क्या है
रहे जो दायराये हुसनों इश्क में महदूद
जो अपना आप न पाए वो आग ही क्या है,
जो शोरे जीस्त को अपने में जज्ब कर न सके
न जिसमें उठें तराने वो खामशी क्या है
नफस नफस में न जिसके बहारे ताजा हो
जो रंगो बू न बखेरे वो जिंदगी क्या है
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जनूने आगही हूं शोरसे हको सदाकत हूं
मैं इरफाने मोहब्बत हूंमैं तूफाने मुसर्रत हूं
सदा जो कामयाबों कामरा हो मैं वो लज्जत हूं
न हो जो आशनाये रन्जो कुल्फत मैं वो राहत हूं
वकूरे जल्वा मुझसे इश्क की सरमस्तियां मुझसे।
निशाने वस्ले पैहम हूं इलाजे दर्दे फुर्कत हूं
गुलिस्ताने जहां है मेरे दम से खुल्दे नज्जारा
गुलों की ताजगी हूं मैं हजूमे रंगो नहकत हूं
सितारों की चमक हूं रोशनी हूं चांद—सूरज की
फिजां की वसहतें बेइंतहा गरदूं की रिफअत हूं
मेरे नक्शे कदम से कहकशां का नूर है पैदा
समाए जिसमें हैं कौनेन वो दामाने वुसअत हूं
फना कर दे अदावत को मिटा डाले जो नफरत को
वो बर्के इश्क हूं वो शोलाए सोजे मोहब्बत हूं।
नहीं कुछ इम्तियाजे कुफ्रो ईमां ताअतो इसियां
खुला सबके लिए हो जिसका दामन वो सखावत हूं
जहां की पस्तियों में मौजे रिफअत मुझसे उठती है
गुनाह की वादियों में आबशारे अक्रूओ रहमत हूं।
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

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