सूत्र:
म्हानें चाकर राखोजी, म्हाने चाकर राखोजी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं, नित उठ दरसन पासूं।
बिन्द्राबन की कुंज गलिन में, तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसन पाऊं, सुमिरण पाऊं खरची।
भाव—भगति जागीरी पाऊं, तीनों बातां सरसी।।
मोरमुकुट पीताम्बर सोहे, गल बैजंती माला।
बिन्द्राबन में धेनु चरावें, मोहन मुरली वाला।।
ऊंचे—ऊंचे महल चिनाऊं, बिच—बिच राखूं बारी।
सांवरिया के दरसन पाऊं, पहर कुसुंबी सारी।।
जोगी आया जोग करण कूं, तप करने संन्यासी।
हरि भजन कूं साधु आया, बिन्द्राबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहर गंभीरा, सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दे हैं, प्रेम नदी के तीरा।
रमैया मैं तो थारे रंग राती।
औरों के पिया परदेस बसत हैं, लिख लिख भेजें पाती।
मेरे पिया मेरे हृदय बसत हैं, रोल करूं दिन—राती।
चूवा चोला पहिर सखी री, मैं झुरमुट रमवा जाती।
झुरमुट में मोहे मोहन मिलिया, घाल मिली गलबांथी।
और सखी मद पी—पी माती, मैं बिन पियां ही माती।
प्रेम भठी को मैं मद पीयो, छकी फिरूं दिन—राती।
सुरत निरत को दिवलो जोयो, मनसा पूरन बाती।
अगम घाणि को तेल सिंचायो, बाल रही दिन—राती।
जाऊंनी पहिरिए आऊंनी सासरिए, हरिसूं सेन लगाती।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणां चित लाती।
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ये जहाने रंगो बू जल्वागाहे आरजू
नाजनीनो दिलनशीं महवशो जौहरा जबीं
गुलरुखो लाला अजार अतरबेज व मुश्कबार
दिल फिरोजो दिल नवाज फितना रेजो फितना साज
इक मुजस्सम अरत आश शोला रेजो बर्क पाश
नूरो निकहत की परी जानो रुहे दिलबरी
हर कोई समझा यही बस अभी मेरी हुई
इसके सब नाजो अदा लुत्फ और मैहरो वफा
वक्फ में मेरे लिए इब्तदाए वक्त से
चार दिन की जिंदगी बस इसी में कट गई
ये अरूसे फितनाकार पास आई बार—बार
खेलती सबसे रही पर किसी की कब हुई
मेहरबां जिस पर हुई जिसकी किस्मत खोल दी
दर हकीकत वो मिटा काम से अपने गया
जो समझते हैं इसे इसको ठुकराते रहे
इक घड़ी इसकी बहार लम्हा भर का बस निखार
रंग लाई है उधार रूप भी है मुस्तआर
रौशनी खुर्शीद की बन गई है चांदनी
जिनको शौके दीद है
उनकी हद खुर्शीद है।
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मेरे जीवन का मरन का साथी
कब कोई मुझसे जुदा होता है
हर नफस साथ मेरे चलता है
हर कदम राहनुमा होता है
बख्श देता है खताएं मेरी
जामने लगजशे पा होता है
वही मंजिल है वही शौके सफर
वही खुद बांगे दिरा होता है
मैं जिसे कहता हूं मेरा—मेरा
सब उसी का तो दिया होता है।
है वही शमे सयाह खानाए दिल
वही आंखों की जया होता है
वही हर मौजे नफस में है रवां
दिल में जो जोशे वफा होता है
दर्दे दिल बन के कभी उठता है
बढ़ के फिर खुद ही दवा होता है
वही पैदा है सकूते लब में
वही नगमों में छुपा होता है
कभी बनता है सकूने साहिल
कभी तूफाने बला होता है
ला इला है वही इल्ला अल्ला है
वही हर बुत में बसा होता है
क्या कहूं हमदमे दैरीना मेरा
मुझसे मिलता है तो क्या होता है
शुक्र सद शुक्र कि मेरे लब पर
न शिकायत न गिला होता है
बेतलब उसकी नजर से मुझको
सागरे कैफ अता होता है।
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किस खाक से हुई है न जाने मेरी सरिश्त
दानिस्ता कुछ गुनाह किए जा रहा हूं मैं
चाहूं तो अपने हाथ से अमृत पिलाए तू
दुख है कि फिर भी जहर पीए जा रहा हूं मैं
ये है कशिश हयात की या खौफ मौत का
जी बुझ चुका है फिर भी जीए जा रहा हूं मैं
मस्ती हुई नसीब बड़ी मुश्किलों के बाद
दामन का चाक फिर भी सीए जा रहा हूं मैं
आया था ले के हसरतें दीदे जमाले दोस्त
दिल में उम्मीद वस्ल लिए जा रहा हूं मैं।
हकदार तो हो तुम अमृत पीने के—और उस प्यारे के हाथ से अमृत पीने के!
चाहूं तो अपने हाथ से अमृत पिलाए तू
दुख है कि फिर भी जहर पीए जा रहा हूं मैं!
लेकिन पी तुम जहर रहे हो।
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मेरी अक्लो खिरद सो गई है
वर्ना ऐसी न कुछ बेहुशी है
बंद है आंख पर देखती है
सो गया जिस्म, जां जागती है
रुक गई है मेरी सांस ऐसे
बेखुदी में हवैदा खुदी है
कैसी हालत है मैं क्या कहूं अब
मिट गए गम खुशी ही खुशी है
दूर जुल्मत हुई नूर फैला
चार सूं इक नई रोशनी है
बरकतो रहमते हक की बारिश
हर तरफ हर कहीं हो रही है
बोझ हलका हुआ जिंदगी का
नाचती खेलती जा रही है
रूह खुशियों से लबरेज होकर
सारी दुनिया का मुंह चूमती है
आज हर शै पे छाई है मस्ती
इक मुसर्रत में फितरत बसी है
कोहो दरियाओ शाखो शजर में
देखता हूं कि जां पड़ गई है
जर्रे—जर्रे में खुर्शीद लरजां
कतरे—कतरे में दरिया रवी है
जिंदगी इम्बसाते खुदी के
आज एहसास से कांपती है
असले तौहीद है ये नज्जारा
और यही जाने रंगे हुई है।
मेरी अक्लो खिरद सो गई है
वर्ना ऐसी न कुछ बेहुशी है।
आज हर शै पे छाई है मस्ती
इक मुसर्रत में फितरत बसी है
कोहो दरियाओ शाखो शजर में
देखता हूं कि जां पड़ गई है।
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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