तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां।
तुम्हारी सांसों की गंध इन हवाओं में है।
प्यारे कदमों की आहट फिजाओं में है।
तुम्हें देखा किए ये जमीं—आसमां
तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां।
तुम्हें देखा तो सांसें रुकी ही रहीं
मेरे मालिक! ये आंखें झुकीं ही नहीं,
होश आते ही तुम छुप गए हो कहां!
तुम अभी थे यहां, तुम अभी थे यहां।
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जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो
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