जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।
ओशो
पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—नौवां)
पद घुंघरू बाँध—(प्रवचन—नौवां)
राम नाम रस पीजै मनुआं
सूत्र: कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की, मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै, बांण पड़ी ललचावन की।
ए दोइ नैन कह्यौ नहिं मानै, नदिया बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु बस नहिं मेरो, पांख नहिं उड़ जावन की।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भइ हूं तेरे दामन की।
राम नाम रस पीजै मनुआं, राम नाम रस पीजै।
तज कुसंग सतसंग बैठि नित, हरि चरचा सुण लीजै।
काम क्रोध मद मोह लोभ कूं, चित्त से बहाय दीजै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, ताहि के रंग में भीजै।
दरस बिन दूखन लागे नैन।
जब के तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहु न पायो चैन।
सबद सुनत मेरी छतिया कांपै, मीठे—मीठे बैन।
विरह कथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न पड़त तल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख—मेटन, सुख—दैन।
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लाख
हुशियार बना कर खालिक
इक मखमूर बना देता है
इख्तयाराते जहां सौंप के सब कुछ
कितना मजबूर बना देता है
दौलते दर्दे दो आलम दे कर
दिले रंजूर बना देता है
फिर इनायत ये कि दर्दे दिल को
एक नासूर बना देता है
बालो पर करके सपुर्दे शोला
हमांतन नूर बना देता है
बेबसर आंख को तेरा जलवा
मतलाये नूर बना देता है।
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चोट पर चोट खाए जाते हैं
और हम मुस्कुराए जाते हैं
दाग दिल के जलाए जाते हैं
तीरगी यूं मिटाए जाते हैं
दर्द पर दर्द गम पे गम देकर
राजे उल्फत सिखाए जाते हैं
बख्श कर बेबसी ओ मजबूरी
इख्तयार आजमाए जाते हैं
खार फैला के बागे हस्ती में
गुंचाओ गुल खिलाए जाते हैं
बिजलियां गिर रही हैं हम पे इधर
वो उधर मुस्कुराए जाते हैं
दर्द पर दर्द गम पे गम देकर
राजे उल्फत सिखाए जाते हैं।
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चश्मे साकी की तरजमानी से
जिंदगी भर गई मआनी से।
एक बार झलक मिल जाए तो जिंदगी में बड़ा आनंद भर जाता है।
चश्मे साकी की तरजमानी से
उस प्यारे की जरा सी झलक मिल जाए।
जिंदगी भर गई मआनी से।
जहल में बस रहा है जोमे शऊर
अलअमां ऐसी नुक्तःदानी से।
सब फसूने जमाल कायम है।
इश्क की अपनी पासबानी से
जल्वाये दोस्त? रंगे हुस्ने यकीं
हिज्र पैदा है बदगुमानी से।
हमने पाई मुसर्रते अब दी
अपने ही सोजे जावेदानी से
हासिले जिंदगी हैं वो आंसू
जो गिरे फर्ते शदमानी से।
मुझको कहना हो राज की गर बात
काम लेता हूं बेजबानी से।
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जमा सब हुस्ने कायनात करो
इश्के जल्वा तलब की बात करो।
शाहिदे नौ से इश्के ताजा करो।
उस नये प्रीतम की बात करो।
अज सरे नौ तकल्लुफात करो।
खेल के अब जहान के गुजरो,
आओ कुछ तलफ तजरुबात करो।
यह हकीकत तो रोज मिटती है
इसको नजरे तवाहुम्मात करो।
छोड़ो इसे! इसको आंख से ओझल होने दो।
जिंदगी कर रही है मानी तलब
इश्क को मकसदे हयात करो।
देखो तुम खुद हो मतलाए अनवार
रोजे रोशन अंधेरी रात करो
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दुनिया की हकीकत से हरगिज इंकार नहीं मुझको लेकिन
हर दम के बिगड़ने—बनने से तसकीन नहीं आराम नहीं
अब दीदाओ दिल मुलताशी हैं इस हाजरो नाजरहस्ती के
जिसका न कोई आगाज कहीं और कोई कहीं अंजाम नहीं
जो दूर हो तो एक—एक घड़ी सदियों के बराबर होती है,
जो पास हो तो कुछ अपने लिए ये सुबह नहीं ये शाम नहीं।
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दुनियां ही बदल जाती है मेरी जब उनकी इनायत होती है
मिट जाते हैं दिल के गम सारे राहत ही राहत होती है
आते हैं नजर सब अपने ही यां कोई गैर नहीं होता
सब दिल की कदूरत मिटती है उल्फत ही उल्फत होती है
कुछ ऐसा अपनी आंखों में बस जाता है नूरे हुस्न—ए—अजल
हर वक्त निगाहों में रक्सां एक मोहनी सूरत होती है
दुख है तो यही मस्ती अपनी कायम नहीं होने पाई है
एहसासे दुई जब होता है बेहद ही कुल्फत होती है।
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