जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।
ओशो
पद घुंघरू बांध--(प्रवचन--08)
झुकाई कदमों से जब से तेरे खुदी मैंने
तो पाई जिंदगी में एक नई खुशी मैंने।
वह जो खुदी है, अहंकार है, वह जरा झुक जाए!
झुकाई कदमों में जब से तेरे खुदी मैंने
तो पाई जिंदगी में एक नई खुशी मैंने
न लुत्फ जुर्रते इंकार में रहा बाकी
तो फिर से सीखे हैं आदाबे बंदगी मैंने।
गमे जहां का असर दिल पे अब नहीं होता
बदल दिया है अब एहसासे जिंदगी मैंने
दिखाई देते थे चारों तरफ मुझे अगयार
रखी थी मुफ्त में ले सबसे दुश्मनी मैंने।
सब तरफ दुश्मन दिखाई पड़ते थे।
दिखाई देते थे चारों तरफ मुझे अगयारतेरी नजर से जो देखा तो सब हुए अपने
जहां में चारों तरफ पाई दोस्ती मैंने।
मेरी नजर से देखो। मेरी नजर तुम्हारी नजर बने!
तेरी नजर से जो देखा तो सब हुए अपने
जहां में चारों तरफ पाई दोस्ती मैंने
हंसी—खुशी में गमे इश्क को न भूला मैं
गमे जहां को सहा है हंसी—खुशी मैंने
ये पा के वादा कि अपनाओगे मुझे आखिर
तुम्हारे दर्द में होने न दी कमी मैंने।
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अगर तुम हंस दिए अहवाले—दिल पर, क्या ताज्जुब है
कि मैं खुद भी बमुश्किल जब्त करता हूं हंसी अपनी
अगर तुम हंस दिए अहवाले—दिल पर, क्या ताज्जुब है!
कि मैं खुद भी बमुश्किल जब्त करता हूं हंसी अपनी
हुई हैं बारिशें संगे मलामत की बहुत लेकिन
जहे वजए—जुनूं कायम है शौरीदासरी अपनी।
पत्थर तो बहुत गिरेंगे तुम्हारे सिरों पर।
हुई हैं बारिशें संगे मलामत की बहुत लेकिन
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जहां वालों का क्या है वो तो दीवाना समझते हैं
मुझे कुछ अक्ल से अपने भी बेगाना समझते हैं
अजब अंदाज से मेरे सकूते लब पे हंसते हैं
जो सच्ची बात कहता हूं तो अफसाना समझते हैं
बहारे जावेदां इसमें जमाले दो जहां इसमें
मेरी दुनिया को फिर भी लोग दीवाना समझते हैं।
बहारे जावेदां इसमें जमाले दो जहां इसमें
मेरी दुनिया को फिर भी लोग दीवाना समझते हैं
शऊरे फिक्र की मैं हर बुलंदी से गुजर आया
मुझे ये अकल वाले फिर भी दीवाना समझते हैं।
कभी का शामिले शोला हूं अहले महफिल क्यों
हयाते नौ को मेरी मर्गे परवाना समझते हैं
हुआ मुझको अबूरे वुसअते अक्लो खिरद हासिल
मगर सब मुझको दीवाने का दीवाना समझते हैं।
निगाहे मस्ते साकी ने किया है बेनियाजे मय
मुझे मयकश अभी पाबंदे पैमाना समझते हैं
अभी तक देख ले थामे हुए हैं होश का दामन
इशारों को तेरे हम पीरे मयखाना समझते हैं।
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रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
तमाम उम्र की बिगड़ी बना रहा हूं मैं
रविस रविस को सजाया था जिस गुलिस्तां की
उसी के शाखो—सजर को जला रहा हूं मैं
जो हार बनाया था हाथों से अपने खिस्त बा खिस्त
उसी को खाक में अक्सर मिला रहा हूं मैं
बड़े ही शौक से जो आशियां बनाया था
उसे खुद अपने ही हाथों जला रहा हूं मैं
दुआएं मेरी चली हैं कबूल होने को
कि खुद—ब—खुद तेरे कदमों में आ रहा हूं मैं।
रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
रहे फना पर—मिटने के मार्ग पर।
आत्मघात है संन्यास। आत्मघात है भक्ति।
रहे फना पे कदम अब बढ़ा रहा हूं मैं
तमाम उम्र की बिगड़ी बना रहा हूं मैं।
रविस रविस को सजाया था जिस गुलिस्तां की
उसी को खाक में अक्सर मिला रहा हूं मैं
बड़े ही शौक से जो आशियां बनाया था
वह जो घर अहंकार का बनाया था, नीड़! उसे खुद अपने ही हाथों जला रहा हूं मैं।
यह करना ही होता है। यही साधना है। बस यही! और यह जिस दिन पूरी हो जाए, उसी दिन सिद्धि उतर आती है।
दुआएं मेरी चली हैं कबूल होने को
कि खुद—ब—खुद तेरे कदमों में आ रहा हूं मैं।
आज इतना ही।
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