जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा।
और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया।
ओशो
पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--03)
मैं तो गिरधर के घर जाऊं।
गिरधर म्हारो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं।
रैन पड़ै तब ही उठि जाऊं भोर भये उठि आऊं।
रैन-दिना बाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं वाहि रिझाऊं।
जो पहिरावै सोई पहरूं, जो दे सोई खाऊं।
मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं।
जहां बैठावे तित ही बैठूं, बेचैं तो बिक जाऊं।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार-बार बलि जाऊं।
मीरा मगन भई हरि के गुण गाए।
सांप पिटारा राणा भेज्यो, मीरा हाथ दियो जाए।
न्हाय-धोए जब देखन लागी सालिगराम गई पाए।
जहर का प्याला राणा भेज्यो, अमृत दीन्ह बनाए।
न्हाय-धोए जब पीवन लागी, हो अमर अंचाए।
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुलाए।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाए।
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन घटाए।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पै बलि जाए
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जैसे हवा में अपने को खोल दिया है इन फूलों ने
आकाश और किरणों और झोंकों को सौंप दिया है अपना रूप
और उन्होंने जैसे अपने में भर कर भी उन्हें छुआ नहीं है
ऐसा नहीं हो सकता क्या तुमसे मेरे प्रति?
नहीं हो सकता शायद, और इसी का रोना है
या ऐसा भी किसी दिन होना है?
तुम्हारे वातावरण में डाल दी है कितनी बार मैंने अपनी आत्मा
तुमने उसे या तो अपने अंक में ही नहीं लिया
या फिर इतना अधिक खींच लिया है, जितना तुम्हें न पा सकने पर
मैंने जीवन को छाती पर भींच लिया है
क्यों नहीं रह सकते हम परस्पर फूल और आकाश की तरह?
यह नहीं हो सकता शायद और इसी का रोना है
या ऐसा भी किसी दिन होना है?
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तू मुझे बता कि क्या था तू मेरे बयां से पहले,
तेरी थी तो क्या हकीकत थी मेरे गुमां से पहले,
मिला राजे लामकां भी तो मकां की ही आगही से,
न शऊरे लामकां था कहीं भी मकां से पहले,
इसे मैंने ही बसाया इसे मैंने ही सजाया,
यह चमन चमन नहीं था तेरा बागवां से पहले,
न पता था बिजलियों को कोई अपनी मंजिलों का,
यूं ही बस भटक रही थीं मेरे आशियां से पहले,
तेरे जोहए लनतरानी को अयां किया था मैंने,
तेरा जल्वा कब था जल्वा मेरे इम्तहां से पहले,
हुआ है दर्दे दिल से पैदा ये तसब्बरे मुसर्रत,
ये निशाते जहां कहां थीं गमें जावदां से पहले,
न फुगाने नीम शब थी न दुआए सुबहगाही,
तेरा जिक्र तक नहीं था मेरी दास्तां से पहले।
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न फुगाने नीम शब थी...
न तो संध्या को मंदिरों की घंटियां बजती थीं और संध्या की प्रार्थना या नमाज होती थी।
...न दुआए सुबहगाही
और न सुबह की कोई प्रार्थना थी।
तेरा जिक्र तक नहीं था मेरी दास्तां से पहले।
जब तक मेरी कहानी न घटी थी, तब तक तेरी किसी को खबर भी न थी,तेरा जिक्र भी नहीं था।
मेरे शौक-ए-बंदगी से बने दैर-औ-हरम सब,
तेरी सजदागाह कहां थी मेरे आस्तां से पहले,
भक्त कभी-कभी जूझता है और वह कहता है कि यह मैंने ही बनाए हैं--ये मंदिर और मस्जिद, ये गुरुद्वारे, ये गिरजे।
मेरे शौक-ए-बंदगी से बने दैर-औ-हरम सब
यह मेरा ही प्रेम है, यह मेरी ही पुकार है--जिसने ये सारे मंदिर-मस्जिद बनाए हैं।
तेरी सजदागाह कहां थी मेरे आस्तां से पहले
और जब तक मेरा माथा झुकने को नहीं था, तब तक कहां थी तेरी प्रतिमा और कहां था तेरा पूजा-स्थल। कहां था तू? तेरा होना मुझसे पहले नहीं हो सकता।
मेरे नक्शे पा से पैदा हुए जिंदगी के रस्ते,
मैं ही गामजन हुआ था यहां कारवां से पहले,
तेरा नाम तेरी हस्ती तेरी अस्ल तेरी सूरत,
ये तमाम लफ्जो मानी थे कहां बयां से पहले
मेरे कहने के पहले इन शब्दों में अर्थ ही क्या था!
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तू पास नहीं मेरे तो कुछ पास नहीं है,
तेरी जो नहीं आस कोई आस नहीं है,
लब पर है हंसी तेरे तो सब कुछ है मुझे रास,
रंजीदा अगर तू है तो कुछ रास नहीं है,
तेरे लिए हूं चाके गरेबां को छुपाए,
दुनिया का तो कुछ इतना मुझे पास नहीं है,
सुन लेते हो तो हो जाती है तसल्ली मेरे दिल की,
रूदादे मोहब्बत मेरी कुछ खास नहीं है,
तुमसे नहीं बाबस्ता मेरी कौन सी उम्मीद
कहने को मुझे तुमसे कोई आस नहीं है।
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राजी हो रजा पर तेरी, हुए मजबूर थे, हम मुख्तार बने,
ये हार हमारी हार है वो, जो जीत को भी शरमाती है।
ये हार हमारी हार है वो, जो जीत को भी शरमाती है,
ये नूरे जोहदो तायत है, जो बिजली बन कर गिरता है,
इसियां की काली बदली तो रहमत की घटा बन जाती है।
जो चाहे दुनिया कहने दो, तुम अपना काम किए जाओ,
मय्यार जमाने के हिम्मत इंसान की आप बनाती है।
बख्शी है मुसलसल एक तड़प तो इतना एहसां और करो;
हम पर भी नजर वो हो जाए जो दोनों जहां गरमाती है।
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पीए बगैर ही रहता हूं मस्त, मेरे लिए
ये जामो वादाओ पैमाना ओ सबू क्या है।
मेरी निगाह में रक्सां है मौजे हुस्ने अजल,
जमाल जोहरा जबीना की आबरू क्या है।
मेरी निगाह में रक्सां है मौजे हुस्ने अजल,
जमाल जोहरा जबीना की आबरू क्या है,
मेरे खयाल से तखलीक है बहारों की,
मैं जानता हूं ये अफ्सूं रंगो बू क्या है।
मेरे खयाल से तखलीक है बहारों की,
मैं जानता हूं ये अफ्सूं रंगो बू क्या है,
मेरे सकूत के पर्दों से राग उठते हैं
तिलस्म हुस्ने बयां सहरे गुफ्तगू क्या है
मेरे सकूत के पर्दों से राग उठते हैं!
मेरे ही शौके तमाशा का इक करश्मा है,
हजूमें जल्वाए अनवार चार-सू क्या है,
बिनाए जीस्त हूं अस्ले निशात है मुझसे,
मेरा ही खेल है तूफाने आरजू क्या है,
मेरे ही कदमों से मिलता है मंजिलों का पता,
ये देख जौके सफर शौके जुस्तजू क्या है,
मेरा मकाने फना है सकून, पर्दाए गैब,
बस इक जहूरे खुदी शौरशे नमूं क्या है,
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गरेबां चाक भी होगा फुगां तक बात आ पहुंची,
वहां तक जा ही पहुंचेगी जो यां तक बात आ पहुंची,
मिटा कर अपनी हस्ती तुझको आखिर पा ही लूंगा मैं,
जलेंगे बालो पर भी आशियां तक बात आ पहुंची,
बनाया था जलाने ही को आखिर आशियां अपना,
चमन में शुक्र है बर्केत्तपां तक बात आ पहुंची,
शरीके कारवां हूं मैं गुबारे कारवां होकर,
मेरे मिटने की मीरे कारवां तक बात आ पहुंची,
मुझे जो मुस्कुरा कर अपने हाथों जाम बख्शा था,
इनायत थी मगर अब दास्तां तक बात आ पहुंची,
चमन वालो उठो आराइशे महफिल का वक्त आया,
खिजां से अब बहारे बेखिजां तक बात आ पहुंची,
सजाएदार हो तजवीज अब मेरे लिए शायद,
जो कह बैठा हूं मैं पीरे मुगां तक बात आ पहुंची।
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