Monday, 22 August 2016

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--06)

जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह पद्य है और तुम्हारे भीतर प्रार्थना बन सकता है। थोड़ी राह दो। थोडा मार्ग दो। तुम्हारे हृदय की भूमि में यह बीज पड़ जाये तो इसमें फूल निश्चित ही खिलने वाले हैं। यह पद्य ऊपर से प्रगट न हो, लेकिन यह पद्य तुम्हारे भीतर प्रगट होगा। और निश्चित ही जो मैं तुमसे कह रहा हूं वह मौन से आ रहा है। मौन से ही कहना चाहता हूं, लेकिन तुम सुनने में समर्थ नहीं हो। लेकिन जो मैं तुमसे कह रहा हूं, वह मौन के लिए है; मौन से है और मौन के लिए है। जो शब्द मैं तुमसे कहता हूं वह मेरे शून्य से आ रहा है, शून्य से सरोबोर है। तुम जरा उसे चबाना। तुम उसे जरा चूसना। तुम जरा उसे पचाना। और तुम पाओगे. शब्द तो खो गया, शून्य रह गया। ओशो

पद घूंघरू बांध--(प्रवचन--06)

मैं पाबगिल हूंसितारों की बात करता हूं,
खिजां जदां हूंबहारों की बात करता हूं।
दबी हुई हैजहां—सोज आग सीने में,
मैं राख हूंपै शरारों की बात करता हूं।
भंवर में है मेरा सफीना हैं बादबां मौजें
तलातमों में किनारों की बात करता हूं।
सबू ओ जाम गुलो नसतरन महो अंजुम
गरीब दिल के सहारों की बात करता हूं
हुई थी जिनसे मोहब्बत की इब्तदाए हसीं
मैं उन लतीफ इशारों की बात करता हूं।
हुई थी जिनसे मोहब्बत की इब्तदाए हसीं
मैं उन लतीफ इशारों की बात करता हूं
किसी के जलवा—ए—रुख का खयाल आते ही
मैं महरो मैं की सितारों की बात करता हूं।
तेरे खयाल से बाबस्तगी का उजरे हसीं
सगुफ्ता ताजा बहारों की बात करता हूं
दुआ करो कि मुझे ताबे दीद मिल जाए
मैं बेवशर हूंनज्जारों की बात करता हूं।
________________________________________
जाने क्या पिलाया तूनेबड़ा मजा आया
झूम उठी रे मैं मस्तानी दीवानी
पायल नहींघुंघरू नहीं,
छम—छम कैसे होने लगी!
ढूंढो मुझेमैं खोने लगी
हुआ क्या मुझेउई तौबा! मैं न जानी
झूम उठी रे मैं मस्तानी दीवानी
जाने क्या पिलायामुझे बड़ा मजा आया!
________________________________________
क्या जाने क्या से कर दिया है तूने क्या मुझे
ऐ दोस्त अब तो कुछ भी नहीं सूझता मुझे
क्यों मैं नहीं रहा हूं जमाने के काम का
अब पूछने लगा है जहांक्या हुआ मुझे
हालत बदल गई हैनहीं मैं रहा वो मैं
हालांकि देखने को नहीं कुछ हुआ मुझे
हर दिल का दर्द सौंप दिया मुझ गरीब को
अच्छा सिला ये इश्क का मेरा दिया मुझे
पर्दे हटे नजर से मिटे इम्तयाज सब
कोई नहीं है गैर नजर आ रहा मुझे
रौशन तमाम जिंदगी के रास्ते हुए
सब कुछ मिलामिला जो तेरा नक्शे पा मुझे।
सूझ जाएगीबूझ जाएगी—तुम खोओगे।
हालत बदल गई हैनहीं मैं रहा वो मैं
हालांकि देखने को नहीं कुछ हुआ मुझे
क्यों मैं नहीं रहा हूं जमाने के काम का
अब पूछने लगा है जहांक्या हुआ मुझे।
________________________________________
जला के राख कर अब मेरे सब खयालों को
खयाल तेरा ही बस एक मेरे सर में रहे
कशिश यह हुस्ने बुतां जिससे मांग लाया है
वही जमाले हकीकी मेरी नजर में रहे
तेरा ही जोर रहे मेरे दस्तो बाजू में
तेरी ही कुव्वते परवाज बालो पर में रहे
मुझे दिखा दे तू शहराए इश्क ऐ दोस्त!
कि सुबह ओ शाम मेरा हर कदम सफर में रहे।
________________________________________
इश्क का खेल आम है लेकिन
इश्के सादक जहां में आम नहीं
हर तरफ मय ही मय छलकती है
मस्त यकसर करे जोजाम नहीं।
हुस्न की हो रही है रुसवाई
इश्क को अपना एहतराम नहीं
आओ आदाबे इश्क फिर सीखें
सच्ची उलफत हवस का नाम नहीं।
इश्क में अपना खोना है सब कुछ
साजो सामां से कोई काम नहीं।
फिर मिटाना है अपना नामो—निशां
गैर—ए—महबूब कोई नाम नहीं
इससे आगे है इक मकाम ऐसा
जिसका कोई निशानो नाम नहीं
मस्तियां वां बरसती रहती हैं
खुम के खुम एक आध जाम नहीं।
_________________________________________
जबीने शौक को सजदों की आरजू है अभी
अभी ये सिलसिला—ए—इजजो नाज रहने दे
अभी नजर में फसूने जमाल बाकी है
अभी चमन में बहारे मजाज रहने दे
अभी कशिश रुखो गैसू की मिट नहीं पाई
अभी हजूमे तमाशा—ए—नाज रहने दे
अभी पसंद है जामो सबू की हर बंदिश
रसूमे मयकदा है चश्मे नाज रहने दे
अभी बसी है मेरे दिल में आरजू—ए—निशात
रगों में मेरे अभी सोजो साज रहने दे
खलिश में दर्दे मोहब्बत की लुत्फ बाकी है
इलाजे दर्द अभी चारासाज रहने दे
अभी सदा—ए—अनलहक नहीं उठी दिल से
मैं और तू का अभी इम्तियाज रहने दे
कमाले फन है यही पर अभी मेरी खातिर
शिकस्ते आइना आइनासाज रहने दे।
इन पंक्तियों पर ध्यान करना—
जबीने शौक को सजदों की आरजू है अभी
अभी ये सिलसिलाए इजजो नाज रहने दो।

_________________________________________
अभी पीने—पिलाने में रस हैअभी यह मधुशाला खुली रहने दो।
अभी बसी है मेरे दिल में आरजू—ए—निशात
रगों में मेरे अभी साजो साज रहने दे।
अभी मेरे भीतर बजने दो संगीत।
अभी बसी है मेरे दिल में आरजू—ए—निशात
अभी आकांक्षा है। अभी मेरा संगीत छीन मत लो।
खलिश में दर्दे मोहब्बत की लुत्फ बाकी है
और अभी मैंने प्रेम किया नहींअभी मोहब्बत नहीं की।
खलिश में दर्दे मोहब्बत की लुत्फ बाकी है।
इलाजे दर्द अभी चारासाज रहने दे।
तो अभी मेरे इस प्रेम की पीड़ा को हे चिकित्सक दूर न कर! अभी यह पीड़ा रहने दे।
अभी सदा—ए—अनलहक नहीं उठी दिल से
और अभी अनलहक का नादअहं ब्रह्मास्मि का उदघोष—जैसा मंसूर को हुआजैसे उपनिषद के ऋषियों को हुआजैसा बुद्ध—महावीर को हुआ—वैसा अभी मेरे भीतर नहीं उठ रहा है।
अभी सदा—ए—अनलहक नहीं उठी दिल से
मैं और तू का अभी इम्तियाज रहने दे।
अभी इतनी दूरी रहने दो कि मैं मैं रहूंतू तू रहे—और हमारे बीच प्रेम का सेतु बन सके।
कमाले फन है यही पर अभी मेरी खातिर
शिकस्ते आइना आइनासाज रहने दे।
मैं जानता हूं कि यही फन हैयही कमाल है कि टूटे हुए आईने को कोई इस तरह जोड़ दे कि पता भी न चले कि कभी टूटा था...।
कमाले फन है यही पर अभी मेरी खातिर
शिकस्ते आइना आइनासाज रहने दे।
अभी ये टुकड़े आईने के रहने दोमेरी खातिर अभी इन्हें जोड़ो मत।

No comments:

Post a Comment